Amar Ujala 11 July |
शुरू-शुरू में लोगों को लगा था कि लोकपाल कोई रामबाण है या जादुई छड़ी है, जिसे फिराते ही देश से भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा। इसलिए जब टीवी चैनल वालों ने लोगों को उकसाया तो उनमें से कुछ लोग घरों से निकलकर लोकपाल के समर्थन में टी.वी. कैमरों के आगे नारे लगाने लगे। लेकिन इन चार महीनों में जब अखबारों व टी.वी. के जरिए ‘जन लोकपाल विधेयक’ के प्रारूप की जानकारी लोगों तक पहुंची, तब उन्हें असलियत पता चली। फिर चाहे टी.वी. पर होने वाली बहसों में न्यायविदों, राजनीतिज्ञों या पत्रकारों की टिप्पणियाँ हों या इस विधेयक को बनाने वाली समिति के सदस्य पाँच केन्द्रीय मंत्रियों की मीडिया पर की गयीं प्रस्तुतियाँ हों, इनसे यह साफ होने लगा कि ‘जन लोकपाल विधेयक’ भी आज तक बनते आये काूननों की तरह ही एक और कानून होगा और उससे देश में हर स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार से निपटने में कोई खास कामयाबी नहीं मिलेगी। लोगों के दिल में इस अहसास के घर करते ही उनमें निराशा बढ़ चली है।
चार महीने पहले, जन्तर-मन्तर पर भ्रष्टाचार के खिलाफ हुए धरने से देश के शहरों में बड़े कुतूहल का माहौल बना था। रोज-रोज की बहसों और खबरों के बाद आज आलम यह है कि लोग इस दुविधा में पड़ गये हैं कि हजारे और उनके लोग आखिर चाहते क्या हैं? यह भी लोगों को हैरान करने वाली बात है कि राजनेताओं की देशभर में भत्र्सना करने के बाद, लोकपाल विधेयक को लेकर सक्रिय अन्ना हजारे की टीम अब एक-एक कर उनके ही दरवाजे पर क्यों जा रही है? अब वे राजनेताओं को यह बताने में लगे हैं कि उनका प्रस्तावित विधेयक सरकारी विधेयक से ज्यादा कारगर कैसे है।
इन चार महीनों में अन्ना हजारे की टीम जनता के बीच यह सन्देश फैला पायी है कि सरकार प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश को लोकपाल के दायरे में नहीं लाना चाहती। पर बुधवार को संपादकों से वार्ता में प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया कि उन्हें इससे कोई गुरेज नहीं है। वैसे भी यदि एकबार को यह मान लें कि ‘जन लोकपाल विधेयक’ के सभी प्रस्ताव सही हैं और इसको यथावत स्वीकार कर लिया जाए तो क्या अन्ना की समिति देश को गारण्टी दे सकती है कि कितने दिनों में भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा? कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि जो भी प्रधानमंत्री की गद्दी पर बैठता जाएगा, उसे चोर बताकर हटाया जाता रहेगा? और इस तरह दर्जनों प्रधानमंत्री बदलने के बाद कहीं स्थिति यह तो नहीं आ जाएगी कि लोकपाल यह तय करने लगे कि प्रधानमंत्री की कुर्सी पर अब कौन बैठेगा?
पिछले दिनों एक अंगे्रजी चैनल के टी.वी. टाॅक शो में इस मुद्दे पर मेरी टीम अन्ना से तीखी बहस हुई। दोनों भूषण पिता-पुत्र, अरविंद केजरीवाल और अन्ना हजारे इस बहस में मेरे साथ थे। जब उनसे पूछा गया कि आप यह कैसे सुनिश्चित करेंगे कि लोकपाल बेदाग हो? तो प्रशांत भूषण इसका जबाव देने की बजाए बोले कि प्रधानमंत्री, विपक्ष का नेता, भारत का मुख्य न्यायाधीश व अन्य सदस्य ईमानदार लोकपाल का चयन करेंगे। अब सवाल यह उठा कि इनके द्वारा चुना गया लोकपाल ईमानदार ही होगा, यह कैसे सुनिश्चित होगा? मैंने उन्हें याद दिलाया कि भारत के मुख्य न्यायाधीश डॉ. एएस आनंद के पद पर रहते हुए मैंने उनके छह घोटाले प्रकाशित किए थे। जिसके बाद न तो उनके खिलाफ महाभियोग चला और न ही कोई आपराधिक मामला दर्ज हुआ। हालांकि इस मुद्दे पर देश-विदेश के मीडिया में भारी बवाल मचा और केन्द्रीय कानून मंत्री को भी जाना पड़ा। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री व विपक्ष के नेता ने मिलकर ऐसे अनैतिक आचरण वाले डॉ. आनन्द को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया और तत्कालीन राष्ट्रपति ने इस नियुक्ति पर स्वीकृति की मुहर भी लगा दी। तो फिर क्या गारण्टी है कि लोकपाल के चयन में भी ऐसा नहीं होगा? इस सवाल का टीम अन्ना के पास कोई जबाव नहीं था। अंग्रेजी में हुई यह बहस दिल्ली के कमानी ऑडिटोरियम में एक हजार लोगों की मौजूदगी में रिकॉर्ड की जा रही थी और ये वैसे लोग थे जिन्हें टीम अन्ना ही अपने समर्थन के लिए वहाँ लाई थी। पर ऐसे तर्कों को सुनकर इन दर्शकों ने बार-बार सहमति में करतल ध्वनि की। चैनल के अनुसार यह डिबेट इतनी लोकप्रिय हुई कि इसे दो हफ्ते में कई बार प्रसारित किया गया। साफ जाहिर है कि लोगों तक सही बात पहुंची नहीं है। लेकिन जब उनके सामने पूरी बात ईमानदारी से रखी जाती है, तब उन्हें समझ में आता है कि भावनाऐं भड़काने से और एक और कानून बनाने से भ्रष्टाचार नहीं रोका जा सकता।
ये तो एक चैनल था, जिसने एक घण्टा ऐसी खुली बहस करवायी। पर ज्यादातर टी.वी. चैनलों के पास पूरी बात कहने देने का समय ही नहीं होता। आधी-अधूरी बात में वक्ता चैंचैं लड़ाते ज्यादा दिखते हैं और मुद्दे की बात खुलकर सामने नहीं आ पाती। इसे टी.वी. की मजबूरी माना जा सकता है। पर यहां सवाल उठता है कि भ्रष्टाचार के कारण और निवारण की बात फिर कौन करे? यूं तो हर व्यक्ति अपनी राय देने के लिए स्वतंत्र है, पर अगर आपको दिल के रोग का इलाज करवाना हो तो क्या आप अस्थिरोग विशेषज्ञ के पास जाएंगे? जाहिर है कि भ्रष्टाचार, जिसे अपराध शास्त्र में ‘व्हाईट कॉलर क्राइम’ कहा जाता है, एक पेचीदगी भरे अध्ययन का विषय रहा है। पुलिस विभागों के अलावा अकादमिक रूप से इसका अध्ययन और अध्यापन मध्य प्रदेश के सागर विश्वविद्यालय के अपराध शास्त्र एवं न्यायायिक विज्ञान विभाग में पिछले चार दशकों से किया जा रहा है। आश्चर्य की बात है कि इतने महीनों से भ्रष्टाचार पर शोर मचाने वालों ने या भ्रष्टाचार के समाधान बताने वालों ने कभी इसके विशेषज्ञों की राय जानने की कोशिश नहीं की।
सामाजिक स्तर पर ही इस कमी को पूरा करने का प्रयास अब किया जा रहा है। राजधानी दिल्ली के कुछ वरिष्ठ पत्रकार, विभिन्न विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर, गहरी समझ रखने वाले सामाजिक कार्यकर्ता और भ्रष्टाचार से जूझने वाले कुछ योद्धा मिलकर आगामी 16-17 जुलाई को देशभर से उन विशेषज्ञों को दिल्ली बुला रहे हैं, जो इस विषय पर गम्भीर चर्चा करेंगे और अपने अध्ययन और अनुभव से भ्रष्टाचार के कारण और निवारण बताने का प्रयास करेंगे। अब देखना यह है कि यह गम्भीर प्रयास इस समस्या का क्या हल सुझा पाता है?
चार महीने पहले, जन्तर-मन्तर पर भ्रष्टाचार के खिलाफ हुए धरने से देश के शहरों में बड़े कुतूहल का माहौल बना था। रोज-रोज की बहसों और खबरों के बाद आज आलम यह है कि लोग इस दुविधा में पड़ गये हैं कि हजारे और उनके लोग आखिर चाहते क्या हैं? यह भी लोगों को हैरान करने वाली बात है कि राजनेताओं की देशभर में भत्र्सना करने के बाद, लोकपाल विधेयक को लेकर सक्रिय अन्ना हजारे की टीम अब एक-एक कर उनके ही दरवाजे पर क्यों जा रही है? अब वे राजनेताओं को यह बताने में लगे हैं कि उनका प्रस्तावित विधेयक सरकारी विधेयक से ज्यादा कारगर कैसे है।
इन चार महीनों में अन्ना हजारे की टीम जनता के बीच यह सन्देश फैला पायी है कि सरकार प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश को लोकपाल के दायरे में नहीं लाना चाहती। पर बुधवार को संपादकों से वार्ता में प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया कि उन्हें इससे कोई गुरेज नहीं है। वैसे भी यदि एकबार को यह मान लें कि ‘जन लोकपाल विधेयक’ के सभी प्रस्ताव सही हैं और इसको यथावत स्वीकार कर लिया जाए तो क्या अन्ना की समिति देश को गारण्टी दे सकती है कि कितने दिनों में भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा? कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि जो भी प्रधानमंत्री की गद्दी पर बैठता जाएगा, उसे चोर बताकर हटाया जाता रहेगा? और इस तरह दर्जनों प्रधानमंत्री बदलने के बाद कहीं स्थिति यह तो नहीं आ जाएगी कि लोकपाल यह तय करने लगे कि प्रधानमंत्री की कुर्सी पर अब कौन बैठेगा?
पिछले दिनों एक अंगे्रजी चैनल के टी.वी. टाॅक शो में इस मुद्दे पर मेरी टीम अन्ना से तीखी बहस हुई। दोनों भूषण पिता-पुत्र, अरविंद केजरीवाल और अन्ना हजारे इस बहस में मेरे साथ थे। जब उनसे पूछा गया कि आप यह कैसे सुनिश्चित करेंगे कि लोकपाल बेदाग हो? तो प्रशांत भूषण इसका जबाव देने की बजाए बोले कि प्रधानमंत्री, विपक्ष का नेता, भारत का मुख्य न्यायाधीश व अन्य सदस्य ईमानदार लोकपाल का चयन करेंगे। अब सवाल यह उठा कि इनके द्वारा चुना गया लोकपाल ईमानदार ही होगा, यह कैसे सुनिश्चित होगा? मैंने उन्हें याद दिलाया कि भारत के मुख्य न्यायाधीश डॉ. एएस आनंद के पद पर रहते हुए मैंने उनके छह घोटाले प्रकाशित किए थे। जिसके बाद न तो उनके खिलाफ महाभियोग चला और न ही कोई आपराधिक मामला दर्ज हुआ। हालांकि इस मुद्दे पर देश-विदेश के मीडिया में भारी बवाल मचा और केन्द्रीय कानून मंत्री को भी जाना पड़ा। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री व विपक्ष के नेता ने मिलकर ऐसे अनैतिक आचरण वाले डॉ. आनन्द को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया और तत्कालीन राष्ट्रपति ने इस नियुक्ति पर स्वीकृति की मुहर भी लगा दी। तो फिर क्या गारण्टी है कि लोकपाल के चयन में भी ऐसा नहीं होगा? इस सवाल का टीम अन्ना के पास कोई जबाव नहीं था। अंग्रेजी में हुई यह बहस दिल्ली के कमानी ऑडिटोरियम में एक हजार लोगों की मौजूदगी में रिकॉर्ड की जा रही थी और ये वैसे लोग थे जिन्हें टीम अन्ना ही अपने समर्थन के लिए वहाँ लाई थी। पर ऐसे तर्कों को सुनकर इन दर्शकों ने बार-बार सहमति में करतल ध्वनि की। चैनल के अनुसार यह डिबेट इतनी लोकप्रिय हुई कि इसे दो हफ्ते में कई बार प्रसारित किया गया। साफ जाहिर है कि लोगों तक सही बात पहुंची नहीं है। लेकिन जब उनके सामने पूरी बात ईमानदारी से रखी जाती है, तब उन्हें समझ में आता है कि भावनाऐं भड़काने से और एक और कानून बनाने से भ्रष्टाचार नहीं रोका जा सकता।
ये तो एक चैनल था, जिसने एक घण्टा ऐसी खुली बहस करवायी। पर ज्यादातर टी.वी. चैनलों के पास पूरी बात कहने देने का समय ही नहीं होता। आधी-अधूरी बात में वक्ता चैंचैं लड़ाते ज्यादा दिखते हैं और मुद्दे की बात खुलकर सामने नहीं आ पाती। इसे टी.वी. की मजबूरी माना जा सकता है। पर यहां सवाल उठता है कि भ्रष्टाचार के कारण और निवारण की बात फिर कौन करे? यूं तो हर व्यक्ति अपनी राय देने के लिए स्वतंत्र है, पर अगर आपको दिल के रोग का इलाज करवाना हो तो क्या आप अस्थिरोग विशेषज्ञ के पास जाएंगे? जाहिर है कि भ्रष्टाचार, जिसे अपराध शास्त्र में ‘व्हाईट कॉलर क्राइम’ कहा जाता है, एक पेचीदगी भरे अध्ययन का विषय रहा है। पुलिस विभागों के अलावा अकादमिक रूप से इसका अध्ययन और अध्यापन मध्य प्रदेश के सागर विश्वविद्यालय के अपराध शास्त्र एवं न्यायायिक विज्ञान विभाग में पिछले चार दशकों से किया जा रहा है। आश्चर्य की बात है कि इतने महीनों से भ्रष्टाचार पर शोर मचाने वालों ने या भ्रष्टाचार के समाधान बताने वालों ने कभी इसके विशेषज्ञों की राय जानने की कोशिश नहीं की।
सामाजिक स्तर पर ही इस कमी को पूरा करने का प्रयास अब किया जा रहा है। राजधानी दिल्ली के कुछ वरिष्ठ पत्रकार, विभिन्न विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर, गहरी समझ रखने वाले सामाजिक कार्यकर्ता और भ्रष्टाचार से जूझने वाले कुछ योद्धा मिलकर आगामी 16-17 जुलाई को देशभर से उन विशेषज्ञों को दिल्ली बुला रहे हैं, जो इस विषय पर गम्भीर चर्चा करेंगे और अपने अध्ययन और अनुभव से भ्रष्टाचार के कारण और निवारण बताने का प्रयास करेंगे। अब देखना यह है कि यह गम्भीर प्रयास इस समस्या का क्या हल सुझा पाता है?