Monday, June 27, 2011

गाँधी नहीं हैं अन्ना !

8 जून को दिल्ली के राजघाट पर, जब अन्ना हजारे और उनके साथी उपवास पर बैठे थे तो किरण बेदी ने अपने भाषण में बार-बार अन्ना हजारे को दूसरा महात्मा गाँधी बताया। दरअसल जबसे टी.वी. मीडिया ने सक्रिय होकर अन्ना हजारे के उपवास को सफल बनाया है, तबसे अन्ना हजारे के सहयोगी बहुत उत्साहित हैं। इस उत्साह में वे बार-बार अन्ना हजारे की तुलना महात्मा गाँधी से कर रहे हैं। यह सही है कि अन्ना ने अपना जीवन अपने गाँव के सुधार के लिए समर्पित कर दिया। साथ ही वे भ्रष्टाचार के सवाल पर कुछ खास लोगों के खिलाफ महाराष्ट्र में सत्याग्रह करते रहे हैं। पर इसका अर्थ यह नहीं कि वे बापू जैसे अन्तर्राष्ट्रीय व्यक्तित्व के समकक्ष ठहराये जा सकते हैं। जिनका अध्ययन, ज्ञान, राजनैतिक सूझबूझ, विचारधारा, आचरण, जीवन मूल्य और अनुकरणीय व्यवहार का अन्ना हजारे के व्यक्तित्व से कोई तुलना नहीं है।

गत् 8 जून को दिल्ली के राजघाट पर, बापू की समाधि पर, अन्ना और उनके सहयोगियों ने जिस तरह का आचरण किया, जो भाषण दिये, जो शब्दावली प्रयोग की, उसका दूर-दूर तक बापू की शब्दावली और विचारधारा से कोई सम्बन्ध नहीं था। अन्ना और उनके साथियों ने बापू की गरिमा का भी ध्यान नहीं रखा। जो लोग उनके समर्थन में वहाँ जुटे, उन्होंने जिस तरह का हल्कापन और फूहड़पन अन्ना के समर्थन में प्रदर्शित किया, उसे देखकर ऐसा दूर-दूर तक नहीं लगा कि ये लोग आज़ादी की दूसरी लड़ाई में, शमां पर मर मिटने वाले परवाने हैं। टेलीविजन चैनलों के कैमरों को देखकर, जिस तरह का नाच-कूद वहाँ हुआ, उसे देखकर फिरोजशाह कोटला मैदान में होने वाले क्रिकेट के 20-20 मैच के दीवाने दर्शकों की छवि सामने आ रही थी। हमें वहाँ यह देखकर बहुत तकलीफ हुयी। निश्चित रूप से इन लोगों के इस आचरण से बापू की आत्मा को ठेस लगी होगी। इस सबसे तो यही लग रहा है कि अन्ना बापू का अभिनय करने की चेष्ठा कर रहे हैं, पर उनके अभिनय की पटकथा परदे के पीछे से कोई और लिख रहा है।

एक सवाल देश को और झकझोर रहा है। जिसका उत्तर उन्हें देश को देना ही होगा। अन्ना जानते हैं कि आजादी के बाद से आज तक देश में ऐसे हजारों समर्पित व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने देश के गरीब किसानों, भूमिहीनों, आदिवासियों व श्रमिकों के उत्थान के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। आज भी वे उसी जीवट से, निःस्वार्थ भाव से, निष्काम भावना से, तकलीफ सहकर, देश के विभिन्न हिस्सों में गाँधी जी के आदर्शोंं पर जीवन जी रहे हैं।

इन गाँधीवादियों ने बिना किसी यश की कामना के, बिना सत्ता की ललक के, बिना अपने त्याग के पुरूस्कार की अपेक्षा के, पूरा जीवन होम कर दिया। ये हजारों लोग बापू के शब्दों में जिन्दा शहीद हैं। क्या वजह है कि ये सब लोग अन्ना के इस नये अवतार में कहीं भी उनके इर्द-गिर्द नहीं दिखाई दे रहे हैं? क्या ये माना जाए कि अन्ना का मौजूदा स्वरूप, कार्यकलाप और वक्तव्य देश के समर्पित गाँधीवादियों का विश्वास नहीं जीत पाया है या अन्ना को उन पर विश्वास नहीं है? अगर अन्ना को गाँधी जी के मूल्यांे और विचारधारा में तिलभर भी आस्था है, तो उनका पहला प्रयास देशभर के गाँधीवादियों को ससम्मान अपने साथ खड़ा करने का होना चाहिए।

हमने 4 और 8 जून को अन्ना हजारे, बाबा रामदेव व इन दोनों के सहयोगियों को दो खुले पत्र लिखे थे। जिनकी प्रतियाँ हमने दिल्ली के मीडिया जगत में भी बंटवायी। इन पत्रों में हमने इन दोनों से ही भ्रष्टाचार विरोधी इनकी मुहिम को लेकर कुछ बुनियादी सवाल पूछे थे। जिसका उत्तर हमें आज तक नहीं मिला। इस बीच अन्ना ने सप्रंग की अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गाँधी को एक पत्र लिखकर कई नये सवाल खड़े कर दिये हैं। अन्ना ने इस पत्र में श्रीमती सोनिया गाँधी से शिकायत की है कि उनके लोगों ने अन्ना को ‘राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ’ से जुड़ा हुआ बताया है। इसे अन्ना ने निश्चित रूप से अपमानजनक माना है। अन्ना से पूछा जाना चाहिए कि राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से उन्हें इतना परहेज क्यों है? क्या संध ने देशद्रोह का कोई काम किया है, जिसका प्रमाण उनके पास है? अगर है तो उन्हें देश के सामने प्रस्तुत करना चाहिए ताकि आस्थावान हिन्दू और भारत के नागरिक ऐसे ‘देशद्रोहियों’ के खिलाफ इस लड़ाई को मजबूती से लड़ सकें।

यह तो पता नहीं है कि श्रीमती सोनिया गाँधी को अन्ना ने पत्र में क्या लिखा है? क्योंकि उसकी प्रति शायद उन्होंने सार्वजनिक नहीं की है। लेकिन इस विषय में जो समाचार छपे हैं, उससे ऐसा लगता है कि अन्ना सोनिया जी से अपने गाँधीवादी होने का प्रमाणपत्र चाहते हैं। अन्ना इसे अन्यथा न लें, तो यह उनकी मानसिक कमजोरी का परिचायक है।

अन्ना के सहयोगियों का दावा है कि वे दूसरे महात्मा गाँधी हैं। अन्ना खुद को भी गाँधीवादी मानते हैं और देश में आजादी की दूसरी लड़ाई का शंखनाद कर चुके हैं। ऐसे में देश जानना चाहता है कि केवल संघ से जुड़ा कह देने भर से वे इतने तिलमिला क्यों गये? बापू ने तो सहनशीलता की मिसाल कायम की थी। अन्ना इतने कमजोर क्यों हैं कि किसी के कुछ भी कह देने से उनका अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है?

अन्ना ने 4 लोग साथ लेकर यह कैसे मान लिया कि वे 120 करोड़ हिन्दुस्तानियों के भाग्य नियंता हैं? मीडिया के एक हिस्से के सहयोग से उन्होंने जो माहौल बनाया है, उससे यह कतई दिखाई नहीं दे रहा कि देश की जनता को राहत की कोई किरणें मिलेंगी, सिवाय हताशा और निराशा के बढ़ने के। हमें लगता है कि उन्हें अपनी सोच और रणनीति में बुनियादी बदलाव लाने की जरूरत है।

2 comments:

  1. इस समय किसी व्यक्ति की तुलना गाँधी जी से करना मुख्या मुद्दा नहीं है.यदि इसी प्रकार से हम मुख्य विषय को अन्य बातो से जोड़ेंगे तो और कौन आगे आयेगा.
    हमारी आजादी में क्रन्तिकारी श्री मंगल पाण्डेय जो बाद में रानी झाँसी सी जुड़े,चंदर शेखर आजाद ,सुभाष चन्द्र बोस भगत सिंह आदि आदि का भी योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण था. निसंदेह गाँधी जी का त्याग और उनकी विचारधारा महत्वपूर्ण थी तो उनकी विचारधारा को अनुकरण करने के प्रयास करने में क्या बुराई है .
    आज हम हर भगवाधारी,वेशधारी को भगवान का अवतार माननें में देर नहीं लगाते तो क्या वे भगवान हैं?

    देश सबसे बड़ा और ऊपर है तो यदि अन्ना हजारे,राम देव या किसी और के प्रयास से देश का भला हो तो किसी के प्रयास में बुराई क्या है.
    कृपा होगी यदि मुख्य विषय को प्राथमिकता दें .
    धन्यवाद
    अवतार सिंह

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  2. इस समय किसी व्यक्ति की तुलना गाँधी जी से करना मुख्या मुद्दा नहीं है.यदि इसी प्रकार से हम मुख्य विषय को अन्य बातो से जोड़ेंगे तो और कौन आगे आयेगा.
    हमारी आजादी में क्रन्तिकारी श्री मंगल पाण्डेय जो बाद में रानी झाँसी सी जुड़े,चंदर शेखर आजाद ,सुभाष चन्द्र बोसे भगत सिंह आदि आदि का भी योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण था. निसंदेह गाँधी जी का त्याग और उनकी विचारधारा महत्वपूर्ण थी तो उनकी विचारधारा को अनुकरण करने के प्रयास करने में क्या बुराई है .
    आज हम हर भगवाधारी,वेशधारी को भगवान का अवतार माननें में देर नहीं लगाते तो क्या वे भगवान हैं?

    देश सबसे बड़ा और ऊपर है तो यदि अन्ना हजारे,राम देव या किसी और के प्रयास से देश का भला हो तो किसी के प्रयास में बुराई क्या है.
    कृपा होगी यदि मुख्य विषय को प्राथमिकता दें .
    धन्यवाद
    अवतार सिंह

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