Sunday, October 31, 2010

मुसलमानों ने नरेन्द्र मोदी को वोट क्यों दिया ?


Rajasthan Patrika 31st Oct 2010
हाल ही में सम्पन्न हुए नगर निकायों के चुनावों में भाजपा को गुजरात में भारी विजय मिली है। जिसका श्रेय हमेशा की तरह गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को दिया जा रहा है। इन परिणामों से एक बार फिर यह तय हो गया है कि गोधरा काण्ड को लेकर दिल्ली में बैठे लोग चाहें जितना शोर मचाते रहें, गुजरात की जनता पर उसका कोई असर नहीं पड़ता। इसलिए अपने गढ़ में ही नहीं इंका के गढ़ में भी संेध लगाने में नरेन्द्र मोदी सफल रहे हैं। इस हफ्ते मैंने गुजरात के कुछ शहरों का दौरा किया और आम लोगों से इसकी वजह पूछी। जाहिर है कि गुजरात की जनता चाहे वो हिन्दू हो या मुसलमान नरेन्द्र मोदी के काम के तरीके से खुश है। मुसलमानों का कहना है कि गोधरा और सोहराबुद्दीन का नाम चाहे जितना उछाला जाए, हमें उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि जबसे नरेन्द्र भाई ने सूबे की बागडोर संभाली है, तब से पूरे सूबे में अमन चैन कायम है। कोई दंगे नहीं हुए। गुण्डे और मवालियों को राजनीति में संरक्षण नहीं है। तरक्की के रास्ते हरेक के लिए बराबर खुले हैं। इसलिए इस चुनाव में भी पिछले विधानसभा चुनावों की तरह गुजरात के मुसलमान मतदाताओं ने नरेन्द्र मोदी का खुलकर साथ दिया है। जब उनसे यह पूछा कि क्या आपका समर्थन भाजपा को है? तो उनका सीधा जबाव था, नहीं, नरेन्द्र भाई को।
Punjab Kesari 1st Nov. 2010
 
मुम्बई से अहमदाबाद की हवाई यात्रा में मेरे साथ गुजरात के कुछ उद्योगपति थे। उनका कहना था कि नरेन्द्र भाई ने गुजरात में तरक्की के द्वार सबके के लिए खोल दिए हैं और व्यवस्था को इतना जिम्मेदार, पारदर्शी और प्रभावी बना दिया है कि बिना रिश्वत दिए बड़े-बड़े काम मिनटों में हो जाते हैं। ये सहयात्री मुम्बई में रहते हैं और गुजरात में कपड़े की मिल लगाना चाहते थे। इन्हें गुजरात के औद्योगिक क्षेत्र में जमीन की तलाश थी। उन्होंने इण्टरनेट पर आवेदन भरा और सारी सूचनाऐं इण्टरनेट पर ही डाल दीं। जमीन आवण्टन के कार्यालय में एक बार भी चक्कर लगाये बिना, किसी भी नेता से सिफारिशी फोन करवाये बिना, किसी भी अधिकारी को घूस दिए बिना इन्हें विभाग से हफ्ते भर में फोन आ गया कि आप मौके पर जाकर जमीन पसन्द कर लीजिए। इन्होंने जमीन पसन्द की तो एक अधिकारी इनके साथ गया और अगले दिन इनका पंजीकरण हो गया। यानि बिना किसी परेशानी के जमीन आवण्टित हो गयी। इन सहयात्री का चुनौती देकर कहना था कि मैं आपको हिन्दुस्तान के किसी भी राज्य में ले चलने को तैयार हूँ, जहाँ मुझे आप ऐसा दूसरा उदाहरण दिखा सकें।
 



खुद नरेन्द्र मोदी गुजरात में निरन्तर बिजली आपूर्ति बने रहने का ताल ठोककर दावा करते हैं। जिसकी गुजराती भी सराहना करते हैं। दरअसल गुजराती स्वभाव से ही व्यापारी होते हैं। आपको दुनिया के हर कोने में गुजरात के लोग बहुत मेहनती और उद्यमशील मिलेंगे। धर्म बदलने से सामाजिक संस्कार नहीं बदल जाते। इसलिए गुजरात के हिन्दु हों या मुसलमान, दोनों ही इस बात से बेहद खुश हैं कि उनको व्यापार में तरक्की करने का भरपूर मौका नरेन्द्र भाई दे रहे हैं। नरेन्द्र मोदी की पूरी रणनीति गुजरात को तरक्की के रास्ते पर ले जाने की है। ये बात यहाँ का हर नौजवान भी कहता है। वह उदाहरण देता है गुजरात की सड़कों का, जिनका विस्तार और गुणवत्ता नरेन्द्र मोदी के शासनकाल में तेजी से बढ़ी है। यहाँ के लोग बताते हैं कि केन्द्र से जो हजारों करोड़ रूपया विकास के लिए गुजरात में आता है। उसका अच्छा खासा भाग जमीन पर खर्च होता हुआ दिखायी देता है। यूं निचले स्तर पर व्यवस्था को पूरी तरह भ्रष्टाचार मुक्त करने का दावा तो कोई नहीं करेगा। पर ये भी सही है कि गुजरात में आपको घूमते हुए सत्ता के दलाल नहीं मिलेंगे। जो आपको ये आश्वासन दे सकें कि अगर आपका कोई बड़ा काम अटका है तो वे पैसे लेकर नरेन्द्र मोदी से करवा देंगे। नरेन्द्र मोदी दलालों से बात नहीं करते। जिसकी गरज होती है, वो खुद उनके पास जाता है और वो उसकी समस्या का तुरत हल निकालने की ईमानदार कोशिश करते हैं। फिर वो चाहें छोटे उद्योगपति हों या बंगाल से नैनो गुजरात लाने वाले रतन टाटा।
 

यहाँ आकर मालूम चलता है कि नरेन्द्र मोदी ने मजबूत नेतृत्व, जिम्मेदार प्रशासन और विकास की अपनी रणनीति के माध्यम से गुजरात के समाज में अपनी जड़ें गहरी जमा ली हैं। नरेन्द्र मोदी के बिना भाजपा यहाँ कुछ भी नहीं है और विपक्ष में भी कोई नेता उनके कद का नहीं बचा है।

 
नरेन्द्र मोदी की एक खास बात यह भी है कि अविवाहित होने के कारण उन्हें अपने युवराजों के लिए धन संग्रह की जरूरत नहीं है। वे तो उपहार में मिली वस्तुओं को भी नीलाम कर उससे प्राप्त आमदनी को मुख्यमंत्री राहत कोष में डलवा देते हैं। चुनाव लड़ने के लिए तो धन चाहिए ही और इस धन का जुगाड़ वे चार-पाँच बड़े औद्योगिक घरानों से पूरा कर लेते हैं और फिर दबंगाई से हुकूमत करते हैं।
 
सर्वोच्च न्यायालय ने नरेन्द्र मोदी के मामलों में निचली अदालतों के आदेश पर लगी रोक हटा ली है। इससे दिल्ली में सुगबुगाहट है कि नरेन्द्र मोदी अब नहीं बच पायेंगे। पर हकीकत यह है कि अगर नरेन्द्र मोदी के खिलाफ कोई भी कार्यवाही होती है तो उसका विपरीत असर ही गुजरात की जनता पर पड़ेगा। क्योंकि गुजरात की जनता नरेन्द्र मोदी को ही अपना मुख्यमंत्री देखना चाहती है।
 
आश्चर्य की बात यह है कि नरेन्द्र मोदी की छवि को लगातार राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया में एक कट्टरपंथी मुस्लिम विरोधी की बनाये जाने के बावजूद गुजरात के मुसलमान नरेन्द्र मोदी के साथ खड़े हैं। इस बात पर भी आश्चर्य होता है कि नरेन्द्र मोदी की इस उपलब्धि पर टी.वी. चैनलों में या अखबारों में बोला और लिखा क्यों नहीं जा रहा? तो इससे ये मतलब निकाला जाए कि उनके बारे में जो लिखा और बोला जाता है, वह सही नहीं है, और सही है उस पर खामोशी साध ली जाती है।
 



Wednesday, October 27, 2010

श्रीनगर घाटी ही पूरा कश्मीर नहीं


Rajasthan Patrika 5 Sep 2010
fiNys g¶rs d”ehj ij fy[ks gq, ys[k dh dkQh izfrfØ;k,sa vk;haA pwafd ;g ys[k ns”k ds fofHkUu izkarksa esa fofHkUu Hkk’kkvksa esa Nirk gS] blfy, d”ehj esa yksdfiz; mnwZ v[kckj esa bls d”ehj ds ckf”kUnksa us fnypLih ls i<+k vkSj blesa d”ehj leL;k ds gy ds fy, lq>k, x;s jkLrksa ls bRrsQkd trk;kA ij mUgsa ukjktxh bl ckr ls Fkh fd lkjk ehfM;k d”ehj ds ckjs esa tks dqN fy[k jgk gS ;k Vhoh ij fn[kk jgk gS] og dsoy Jhuxj ?kkVh ds yksxksa ds c;kuksa vkSj dkjukeksa ij vk/kkfjr gSA mudk dguk Fkk fd vki lc ehfM;k okys Jhuxj ds vkxs ugha tkrs gks] blfy, vkidks vklikl ds dLcksa] igkM+ksa vkSj taxyksa esa clus okys d”ehfj;ksa ds t+Tckr dk irk ugha gSA ;g lgh vkSj jkspd vkSj rF; Fkk] ftlds fy, ge ehfM;kdehZ okdbZ nks’kh gSaA eSaus vusd lEidksZa ds ek/;e ls d”ehj ds vyx&vyx fgLlksa esa dqN yksxksa dks Qksu djds tc muds t+Tckr tkuus pkgs rks ,d vyx gh rLohj ut+j vkbZA
Punjab Kesri 6 Sep 2010

d”ehj esa cM+h rknkn xwtjksa dh gSA ;s xwtj Jhuxj ds vklikl ds bykdksa ls ysdj nwj rd igkM+ksa esa jgrs gSa vkSj HksM+&cdjh pjkrs gSaA Åu vkSj nw/k dk dkjksckj buls gh pyrk gSA d”ehj esa jgus okys d”ehjh xwtj vkSj tEew ds {ks= esa jgus okys Mksxjs xwtj dgykrs gSaA budh rknkn dkQh T;knk gS] yxHkx 30 yk[kA nksuksa gh bykdksa ds xwtj bLyke dks ekuus okys gSaA ij jkspd ckr ;g gS fd ?kkVh ds vyxkooknh usrk gksa ;k vU; eqlyeku usrk] xwtjksa dks eqlyeku ugha ekursA fiNys fnuksa lS;n vyh ”kkg fxykuh us ,d c;ku Hkh buds f[kykQ fn;k Fkk ftlls xwtj HkM+d x;sA ckn esa fxykuh dks ;g dgdj lQkbZ nsuh iM+h fd ehfM;k us muds c;ku dks xyr is”k fd;kA gdhdr ;gh gS fd ?kkVh ds eqlyeku xwtjksa dks gefuokyk ugha ekursA 1990 ls vkt rd vkradokfn;ksa }kjk d”ehj esa ftrus Hkh eqlyekuksa dh gR;k gqbZa gSa] muesa ls vf/kdrj xwtj jgs gSaA tEew vkSj d”ehj {ks= ds xwtj u rks vkt+knh ds i{k esa gSa vkSj u gh ikfdLrku ftUnkckn ds ukjs yxkrs gSaaA os Hkkjr ds lkFk veu vkSj pSu ds lkFk jgus ds gkeh gSaA dM+d tkM+s esa tc cQZ dh eksVh rg d”ehj ds igkM+ksa dks <d ysrh gS] rc ;s xwtj uhps eSnkuksa esa pys vkrs gSa rkfd eosf”k;ksa dks pkjk f[kyk ldsaA budk eSnku ls N% eghus lky dk ukrk gSA vyxkookfn;ksa ds ftrus laxBu vkt tEew d”ehj esa lfØ; gSa vkSj ftuds c;ku vk;s fnu ehfM;k esa Nk;s jgrs gSa] mu laxBuksa esa ,d Hkh xwtj usrk ugha gSA blh rjg d.Mh cSYV ds tks yksx gSa] oks igkM+h cksyrs gSa] d”ehjh ughaA mudk Hkh ?kkVh ds vyxkookfn;ksa ls dksbZ ukrk ugha gSA mjh] rax/kkj vkSj xqjst+ tSls bykdksa ds jgus okys eqlyeku ?kkVh ds eqlyekuksa ls bŸksQkd ugha j[krsA bUgsa Hkh Hkkjr ds lkFk jguk Bhd yxrk gSA

;g rks txtkfgj gS fd mRrjh d”ehj dk ysg yn~nk[k dk bykdk cq) /kekZoyafc;ksa ls Hkjk gqvk gS vkSj tEew dk bykdk Mksxjs Bkdqjksa] czkã.kksa o vU; tkfr ds fgUnqvksa lsA t+kfgju ;g lc Hkh d”ehj dks Hkkjr dk vax ekurs gSa vkSj Hkkjr ds lkFk gh feydj jguk pkgrs gSaA bu yksxksa dk dguk gS fd vxj bZekunkjh ls vkSj iwjh esgur ls losZ{k.k fd;k tk, rks ;g lkQ gks tk;sxk fd vyxkooknh ekufldrk ds yksx dsoy Jhuxj ?kkVh esa gSa vkSj eqV~BhHkj gSaA budk nkok gS fd vkradokn ds uke ij xq.Ms vkSj eokfy;ksa ds lgkjs turk ds eu esa Mj iSnk djds ;g yksx iwjh nqfu;k ds ehfM;k ij Nk;s gq, gSaA lc txg buds gh c;ku Nkis vkSj fn[kk;s tkrs gSaA blfy, ,d ,slh rLohj lkeus vkrh gS ekuks iwjk tEew&d”ehj Hkkjr ds f[kykQ cxkor djus dks rS;kj gSA tcfd vlfy;r fcYdqy mYVh gSA ;s lc yksx iz”kklfud Hkz’Vkpkj ls ukjkt gSaA d”ehj dh jktuhfr esa yxkrkj gkoh jgs vCnqYyk ifjokj vkSj eq¶rh ifjokj dks Hkh ilUn ugha djrs vkSj LFkkuh; jktuhfr dks c<+kok nsus ds i{k/kj gSaA ij ;s vyxkookfn;ksa vkSj vkradokfn;ksa ds lkFk drbZ ugha gSaaA

d”ehj ds jktkSjh {ks= ls jktLFkku vkdj ogk¡ ds nkSlk lalnh; {ks= esa Lora= mEehnokj ds :Ik esa pquko yM+us okys xwtj usrk dej jCckuh dks bl pquko esa rhu yk[k oksV feysA Jh jCckuh dk dguk gS fd] ^^nkSlk ds xwtj] pkgs fgUnq gksa ;k eqlyeku] gesa viuk ekurs gSaA blhfy, eq> tSls d”ehjh dks mUgksaus rhu yk[k oksV fn,A ge ckdh fgUnqLrku ds xwtjksa ds lkFk gSa] ?kkVh ds vyxkookfn;ksa ds lkFk ughaA** 

d”ehj ds fofHkUu {ks=ksa ds yksxksa ls ckr djus ij ,d lq>ko ;g Hkh lkeus vk;k fd vxj dsUnz ljdkj d”ehj esa jk’Vªifr “kklu ykxw dj ns vkSj N% eghus cf<+;k “kklu djus ds ckn fQj pquko djok, rc mls t+ehuh gdhdr dk irk pysxkA gk¡ mls bl yksHk ls cpuk gksxk fd oks viuk gkFk us”kuy dkaQzsl ;k ih-Mh-ih- tSls fdlh Hkh ny dh ihB ij u j[ksA ?kkVh ds gj bykds ds yksxksa dks viuh ethZ dk vkSj vius bykds dk usrk pquus dh [kqyh vkt+knh gksA oksV cs[kkSQ Mkyus dk bartke gksA rks d”ehj esa ,d vyx gh fut+ke dk;e gksxkA

*fouhr ukjk;.k (5 flrEcj]10 dks dbZ Hkk’kkvksa esa izdkf”kr)

क्या हो कश्मीर का हल ?


Jag Baani 30 Aug 2010
gky gh esa Tkks Hkh d”ehj dh ?kkVh ls gksdj ykSVk gS] mldk dguk gS fd gkykr cgqr ukt+qd gSaA mej vCnqYyk dh ekStwnk ljdkj muls fuiVus esa v{ke gSA yxkrkj iqfyl vkSj lsuk dh ekStwnxh ls ?kkVh ds yksx vkft+t vk x;s gSaA mUgsa yxrk gS fd Hkkjr dh yksdrkaf=d] lEizHkqrk lEiUu ljdkj us muds lkFk fd;k x;k viuk ok;nk ugha fuHkk;kA d”ehj 15 vxLr 1947 dks Hkkjr dk vax ugha FkkA dbZ eghus ckn dchykbZ geyksa ls ?kcjkdj d”ehj ds jktk gjh flag us Hkkjr ds lkFk ,d le>kSrk fd;k ftlds rgr d”ehj dks fo”ks’k ntkZ nsrs gq, Hkkjrh; x.kjkT; esa “kkfey dj fy;k x;kA bl le>kSrs ds rgr d”ehj dks x`g] fons”k] lapkj vkSj j{kk tSls ekeys NksM+dj ckdh esa Lok;Ÿkrk ns nh x;h FkhA ij ckn ds o’kksZa esa /khjs&/khjs mldh ;g Lok;Ÿkrk lekIr dj nh x;hA ftlls ?kkVh dh jktuhfr esa ,d ,slh vfLFkjrk iSnk gqbZ tks vkt rd Fke ugha ik;hA
Rajasthan Patrika 29 Aug 2010

mYys[kuh; gS fd d”ehj ds lanHkZ esa lafo/kku dh /kkjk 370 lekIr djus dh tks ekax tula?k ;k ckn esa Hkktik mBkrh jgh gS] mlus ges”kk ?kkVh ds yksxksa dks mRrsftr fd;k gSA ;g ml le>kSrs ds f[kykQ gS tks foy; ds le; fd;k x;k FkkA dkuwu dk lEeku djus okys jk’Vª vUrjkZ’Vªh; fcjknjh esa ,sls le>kSrksa dks rksM+k ugha djrsA oSls Hkh /kkjk 370 lekIr djus dh ctk; vxj foy; ds le>kSrs dh “krksZa dks iwjk lEeku fn;k tk;s rks Hkh d”ehj Hkkjr dk gh vax jgrk gSA ftldk vFkZ ;g gqvk fd ikfdLrku dk d”ehj ij dksbZ Hkh dkuwuh gd u dHkh Fkk] u vkt gS vkSj u gksxkA d”ehj ds ftl fgLls dks ikfdLrku us fQygky nck j[kk gS] mls ikfdLrku dk fgLlk ugha ekuk tkrk] cfYd ^ikd vf/kd`r d”ehj* ekuk tkrk gSA ikfdLrku] d”ehj] Hkkjr vkSj iwohZ ikfdLrku ¼ckaXykns”k½ fczfV”k laln ds ftl dkuwu ls cus Fks] ml dkuwu dh vxj voekuuk djds ikfdLrku d”ehj ij fdlh Hkh rjg dk nkok dgha Hkh is”k djrk gS rks bldk eryc ;g gqvk fd ml dkuwu esa ikfdLrku dh vkLFkk ugha gSA bldk eryc ;g Hkh gqvk fd nf{k.kh ,f”k;k ds bu ns”kksa dh vktknh ds fy, tks dkuwu cuk Fkk] oks ikfdLrku dks Lohdk;Z ugha gSA mYys[kuh; gS fd ,slk djus ij ikfdLrku dk ot+wn gh lekIr gks tkrk gSA D;ksafd ;g dkuwu gh gS ftlus ikfdLrku dks ,d Lora= jk’Vª dk ntkZ fn;k] ojuk rks og Hkkjr dk vax FkkA

iwoZ dsUnzh; ea=h dey eksjkjdk dk dguk gS fd Hkktik tSls Hkkjr ds dqN jktuSfrd ny xyr eqn~ns mNky dj d”ehj ds ekeys esa Hkkjr dk i{k detksj djrs jgs gSaA nwljh rjQ ?kkVh ds dkaxzslh usrk vius LokFkksZa ds fy, fnYyh njckj dks cjxyk dj viuh jksfV;k¡ lsasdrs jgs gSaA budk ekuuk gS fd vxj ?kkVh ls dkaxzsl o Hkktik tSls ny viuh fl;klrh “krjat ds eksgjs mBk ysa vkSj ?kkVh ds yksxksa dks vius gh jktuSfrd nyksa ds chp pquko djus ds fy, NksM+ nsa] rks os T;knk vkt+kn eglwl djsaxsA D;ksafd rc mudh jktuhfr “ks’k Hkkjr dh jktuhfr ls izHkkfor ugha gksxhA blls euksoSKkfud :Ik ls Hkh vius jkT; ds fo”ks’k ntsZ dh gSfl;r dk vglkl gksrk jgsxkA blds lkFk gh Hkkjr ds lHkh jktuSfrd ny ;g djsa fd iwjh nqfu;k ds gj eap ij ,dtqV gksdj ,d gh vkokt mBk,sa fd d”ehj o Hkkjr ds chp gq, f}i{kh; le{kkSrs dk iwjh nqfu;k lEeku djs vkSj ikfdLrku dks etcwj djs fd og d”ehj dk tcju dCtk;k fgLlk [kkyh djds ogk¡ ls fudy tk;sA mYys[kuh; gS fd tgk¡ Hkkjr us d”ehj ds lkFk 1948 esa gq, djkj dk lEeku djrs gq, vkt rd d”ehj esa Hkkjrh;ksa dks vpy lEifRr [kjhnus dh bt+kt+r ugha nh] tcfd d”ehfj;ksa dks Hkkjr esa dgha Hkh lEifRr [kjhnus dh bt+kt+r gS] ogha ikfdLrku us vf/kd`r d”ehj esa tcju lEifRr;k¡ [kjhnokdj iatkfc;ksa dks Hkkjh ek=k esa clk fn;k gS vkSj LFkkuh; turk dks Mjk&/kedkdj d”ehj ds ml fgLls dk lkekftd rkukckuk gh rkj&rkj dj fn;k gSA lkQ t+kfgj gS fd d”ehj ds vkoke ds lkFk >wBh gennhZ fn[kkus okyk ikfdLrku gh mudk vlyh nq”eu gSA blfy, d”ehj ls mls fudkys tkus ds fy, iwjh nqfu;k esa ncko cukuk pkfg,A vxj og u ekus rks u flQZ ikfdLrku dh lkoZtfud HkRlZuk dh tk;s cfYd mldks la;qDr jk’Vª ls fudkyus dh Hkh /kedh nh tk;s vkSj mlds lkFk vUrjkZ’Vªh; O;kikj ij dM+s izfrca/k yxk;s tk;saA vkfFkZd raxh] vkradokn] Hkz’V lsuk] ukdkjk flfoy iz”kklu vkSj {ks=h; xqVokn ls xzLr ikfdLrku dh vkSdkr ugha gS fd oks ,sls nckoksa dks >sy ik;sA tks ikfdLrku vius ns”k dh nks djksM+ ck<+xzLr turk dks jln rd ugha igq¡pk ldrk] oks ,sls izfrca/kksa ds vkxs fdrus fnu Bgj ik;sxk \

bl rjg d”ehj ls ikfdLrku dk gVuk vkSj Hkkjr ds eq[; jktuSfrd nyksa dk ?kkVh dh jktuhfr ls vius dks lesVuk] ?kkVh ds yksxksa esa ,d u;s mRlkg dk lapkj djsxk vkSj rc os vius {ks= ds fodkl vkSj jktuSfrd O;oLFkk ds ckjs esa [kqn fu.kZ; ysus esa l{ke gksaxsA ;g lgh gS fd ?kkVh ds dV~VjiafFk;ksa ds pyrs ogk¡ ls fgUnqvksa dk tks tcju iyk;u gqvk mldks ysdj ;g vk”kadk mB ldrh gS fd ,slh fLFkfr esa tEew d”ehj fj;klr ds vYila[;dksa dk D;k gky gksxk ftuesa fgUnq] ckS)] flD[k vkSj bZlkbZ “kkfey gSaA rks mlds ckjs esa fj;klr dh ljdkj ij ekuokf/kdkj ds nk;js esa dke djus ds fy, ncko cuk;k tk ldrk gSA ;g ncko tEew vkSj yn~nk[k dh turk Hkh cuk;sxh] ehfM;k Hkh vkSj “ks’k Hkkjr ds yksx HkhA

;g ,slh lksp gS tks ns”k esa cgqr ls yksxksa dks ukjkt dj ldrh gSA os bu fopkjksa dks Hkkjr fojks/kh Hkh eku ldrs gSaA ij d”ehj ds vkt tks gkykr gSa] muls fuiVus dk nwljk D;k mik; gS\ oSls Hkh d”ehj ds ofj’B usrk Qk:[k vCnqYyk dk rkt+k c;ku Hkh ;gh dgrk gS fd d”ehj dk Hkfo’; vkSj fu;fr Hkkjr ds lkFk lqjf{kr gSA gesa ^^vktknh ugha Lok;Ÿkrk** pkfg,A gk¡ ,d mik; vkSj gS fd QkSt vkSj iqfyl dks xksyh pykus dh [kqyh NwV ns nh tk;s vkSj gj flj mBkus okys dk flj dqpy dj fn;k tk;sA ij ,slk rkuk”kkg ljdkjksa ds v/khu ;k dV~VjiaFkh ns”kksa esa rks gks ldrk gS] yksdra= esa lEHko ughaA 

fouhr ukjk;.k (29 vxLr]10 dks dbZ Hkk"kkvksa esa izdkf”kr)

Sunday, October 24, 2010

कट्टरपंथ और छद्म धर्म निरपेक्षता से आगे बढ़ें


Rajasthan Patrika 24 Oct. 2010
,d t+ekuk Fkk tc Hkkjr&ikd fØdsV eSp lhek ij ;q) dh Hkkouk ls [ksyk tkrk FkkA vkt gekjh ts+gfu;r bruh cny x;h fd jk’Vªdqy [ksyksa ds mn~?kkVu esa tc ikfdLrku ds tRFks us izos”k fd;k rks lkB gtkj Hkkjrokfl;kas us [kwc t+ksjnkj djry /ofu ls mudk vfHkoknu fd;kA Hkkjrh; tRFks ds ckn lcls T;knk Lokxr ikfdLrkfu;ksa dk gh gqvkA ;g Lo%LQwrZ FkkA blds ihNs u rks fons”k ea=ky; dh dwVuhfr Fkh vkSj u gh x`gea=ky; dh dksbZ pkyA lc dqN bruk lgt+ vkSj LokHkkfod Fkk fd ljgn ds nksuksa vksj ds yksxksa dk fny Hkj vk;kA vkf[kj gS rks ,d gh feV~Vh dsA nl&chl lky ugha] ik¡p gtkj lky dk lk>k bfrgkl gSA dqN ckS) cu x;s] dqN tSu] dqN eqlyeku] dqN bZlkbZ rks dqN flD[kA gSa lHkh blh vkcksgok esa iys&c<+sA blfy, tc dHkh jktusrkvksa vkSj QkSth gqDejkuksa dh LokFkZijd jktuhfr ls eqDr gksus dk ekSdk feyrk gS] Hkkjr vkSj ikfdLrku ds yksx ,sls feyrs gSa tSls nks tqM+ok HkkbZ cjlksa fcNM+s jgus ds ckn feys gksaA ;Fkk fiaMs rFkk czãk.MsA ;gh gky v;ks/;k dh Hkwfe dks ysdj yM+us okys fgUnw vkSj eqlyekuksa dk gSA ftUgksaus eqdnek Hkys gh 60 cjl yM+k gks] ij nksuksa ds chp u rks dksbZ uQjr gS vkSj u gh nwljs dks feVk nsus dh [okfg”kA ;gh gky iwjs ns”k ds fgUnw vkSj eqlyekuksa dk gSA ftUgsa fl;klr ls oksV ;k uksV ugha dekus oks iwjs eqYd ds gd esa lksprs gSaA oks vkoke ds gd esa lksprs gSaA

fiNys fnuksa lqUuh oDQ cksMZ] ckcjh efLtn ,D”ku desVh] आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड o vusd nwljs eqlyeku laxBuksa us v;ks/;k ds QSlys ij cSBd dhA blesa dkQh cM+h rknkn mu oDrkvksa dh Fkh tks bl yM+kbZ dks ;gha [kRe dj vkxs lkspus dh lykg ns jgs FksA jkT;lHkk lkaln jkf”kn vYoh us ,d nSfud esa bl eqn~ns ij tks ys[k fy[kk oks ,d lPps eqlyeku ds tT+ckr FksA mUgksaus eqlyekuksa dks ;kn fnyk;k fd vktknh ds ckn /keZ ds uke ij cus ikfdLrku us [kqn dks bLykeh ns”k ?kksf’kr dj fn;kA ml oDr tks eqlyeku Hkkjr esa jg x;s Fks] os brus Mjs gq, Fks fd mUgksaus jkrksa&jkr yhxh >.Ms mrkjdj frjaxk >.Mk Qgjk fn;kA fgUnqLrku dk rRdkyhu usr`Ro pkgrk rks vkt+kn Hkkjr dks fgUnw jk’Vª ?kksf’kr dj ldrk FkkA D;ksafd eqYd dk caVokjk gh /keZ ds vk/kkj ij dj fn;k x;k FkkA ij ,slk ugha gqvkA cgqla[;d fgUnqvksa us [kqn dks /keZfujis{k jk’Vª ?kksf’kr dj fn;kA vYoh dh eqlyekuksa dks lykg Fkh fd ,slh nfj;kfnyh v;ks/;k ds ekeys esa eqlyekuksa dks Hkh fn[kkuh pkfg,A jkf”kn HkkbZ us bl ys[k esa eqlyekuksa dks ;kn fnyk;k fd iwjs iatkc esa lSadM+ksa ,slh efLtn Fkha tks vkt+knh ds ckn cjlksa misf{kr iM+h jghaA fQj ,d ckcjh efLtn dks ysdj bruk coky D;ksa fd;k tk,\

njvly v;ks/;k fookn gh ugha] fgUnw&eqlyekuksa ds ikjLifjd fj”rksa ds loky ij Hkh ,d u;h lksp dh t:jr gS tks vkilh eksgCcr vkSj rjDdh nsus okyh gksA rdyhQ dh ckr gS fd bl ns”k ds nksuksa i{kksa ds eq[kj oDrk vkSj e”kgwj psgjs mu yksxksa ds gSa tks ;k rks dV~VjiaFkh gSa] ;k Nn~e /keZfujis{krk ds gkehA buesa dbZ e”kgwj i=dkj Hkh gSaA ftudk eSa lEeku Hkh djrk gw¡ vkSj muls esjs iqjkus vkSj xgjs fj”rs Hkh gSaA ij tc Hkh eSa mUgsa lqurk ;k i<+rk gw¡] rks eq>s yxrk gS fd mudh /keZfujis{krk ,d LVaV gSA mlesa u rks tehuh gdhdr dh le> gS vkSj u gh t+Tckr ij[kus dh dkfcfy;rA ;g yksx ckj&ckj ;s rdZ ns jgs gSa fd efLtn vkSj efUnj lkFk&lkFk D;ksa ugha cu ldrs\ ;g :ekfu;r Hkjk [;ky gSA ,d rjQ rks ge pkgrs gSa fd nksuksa /keZ ds ekuus okys ,d nwljs ds izfr izse] nfj;kfnyh vkSj lEeku dk Hkko j[ksa vkSj tks chr x;k mls Hkwy tk,saA nwljh rjQ ge ,d ,slh lykg ns jgs gSa tks dHkh Hkh nksuksa /kekZsa ds chp HkkbZpkjk gksus gh ugha nsxhA

bl fopkj ds iSjksdkj ,d e”kgwj i=dkj ls eSaus loky fd;k fd dksbZ tcju vkidh dksBh esa ?kql tk, vkSj vkids cSM:e ds lkeus viuk Msjk tek ysA cjlksa vkidk eqdnek pys vkSj vkf[kj esa QSlyk gks fd dksBh rks vki gh dh gS ij vc tks ?kql vk;k gS mls ogha jgus lksus nks vkSj HkkbZpkjs vkSj I;kj ls jgksA rks D;k vki ,slk dj ik;saxs\ ;k gj ckj tc vki ?kj esa ?kqlsaxs vkSj vius cSM:e dh rjQ :[k djsaxs rks ,su njokts ds lkeus r[kr Mkys ;s O;fDr vkidk CyM izs”kj c<+k nsxk\ ;gh ckr v;ks/;k] dk”kh vkSj eFkqjk ds lUnHkZ esa gSA bl ckr ls dksbZ eqlyeku ukbRrQkdh ugha j[k ldrk fd ;s rhuksa gh LFkku fgUnqvksa ds ijevkjk/; jke] f”ko vkSj d`’.k ds gSaA os ;s Hkh ekurs gSa fd eqfLye vkØkarkvksa us ;gk¡ fLFkr HkO; efUnjksa dk fo/oal dj efLtnsa rkehy djok;ha FkhaA tc rd ;s efLtnsa ;gk¡ jgasxh rc rd fgUnq HkM+drs jgsaxs vkSj oSlh dksf”k”k djrs jgsasxs tSls dkjlsodksa us v;ks/;k esa dhA nwljh rjQ vxj bLyke dks ekuus okys “kfj;r ds bl dkuwu dk lEeku djsa fd fooknkLin LFky ij efLtn rkehy ugha dh tk ldrh vkSj bfrgkl esa tks xyrh gqbZ mls nwj djus dk dke os djsa rks blds dbZ nwjxkeh Qk;ns gksasxsA

,d rks nksuksa i{kksa ds dV~VjiafFk;ksa dh nqdkus cUn gks tk;saxhA nwljk lgh ek;us esa lkEiznkf;d lkSgknZ dh ,d ,sfrgkfld felky dk;e gksxhA rhljk tks rkdr vkt bl yM+kbZ esa yx jgh gS og rjDdh esa yxsxhA ij lcls cM+k Qk;nk rks ;g gksxk fd fgUnqLrku ds ,d lkS nl djksM+k okf”kUns bl igy ls brus vfHkHkwr gks tk;saxs fd ftldk c;ku “kCnksa esa ugha fd;k tk ldrkA rc ikfdLrku ds f[kykM+h tRFks dks gh ugha] gj eqlyeku dks pkgsa oks fgUnqLrku dk gks] ikfdLrku dk gks] ;k fdlh nwljs eqYd dk] gj fgUnq ds ?kj vkSj ekSgYys esa ,slk bLrdcky feysxk tSlk “kk;n [kqn [kqnk dks ;k Hkxoku dks Hkh u feysA rc “kq: gksxk vlyh HkkbZpkjkA rc pedsxk gj fgUnqLrkuh dh fdLer dk flrkjkA rc ukSdfj;ksa ds p;u esa ;s vkjksi ugha yxsaxs fd Qyka us Qyka dks /keZ ds vk/kkj ij udkj fn;kA bl Bksl dne ls bLyke dk drbZ uqdlku ugha gksxkA D;ksafd ;g QkewZyk eDdk enhuk ds fy, ugha cuk;k tk jgk tgk¡ efUnj rkehy djus dh is”kd”k dh tk jgh gksA ;g QkewZyk rks fgUnqvksa ds dkck&v;ks/;k] dk”kh vkSj eFkqjk dks lkEiznkf;drk ds f”kdats ls fudkydj mudh okft+c gSfl;r dks iquLFkkZfir djus dk gSA ,slk gksuk lEHko gS vxj nksuksa i{kksa ds dV~VjiaFkh usrk bl izfØ;k ls vyx gV tk;saA oDr vk x;k gS fd eqYd dh vke turk bl igy ds fy, [kqn dks vkSj vius usr`Ro dks rS;kj djsA 

*fouhr ukjk;.k  (24 vDVwcj]10 dks dbZ Hkk"kkvksa esa izdkf”kr)

Sunday, September 26, 2010

प्लेसमेंट एजेंसियों पर शिकंजा कसे

पिछले हफ्ते कोलकाता के एक अंग्रेजी दैनिक में खबर छपी की एक 27 वर्षीय महिला मध्यप्रदेश में एक परिवार में मई 2010 में नौकरी करने गई थी, तीन महीने से लापता है. उसके बूढ़े पिता और बच्चे उसके लौटने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं. उन्होंने 20 सितम्बर को कोलकाता के थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी है. यह खबर पढ़ कर वह परिवार जिसने उसे नौकरी पर रख था घबरा गया. क्योंकि नौकरी पर आने के दूसरे ही दिन यह बंगाली महिला ज़िद करने लगी कि उसे वापिस कोलकाता जाना है. प्लेसमेंट एजेंसी से फोन पर उसकी बात करवा कर, जैसे वह आई थी वैसे ही उसे ट्रेन का टिकट दिलाकर ट्रेन में बिठा दिया गया. पर वह कोलकाता नहीं पहुंची तो इसकी खबर नौकरी देने वाले को कैसे हो? क्यों नहीं तीन महीने से उसके परिवार या प्लेसमेंट एजेंसी ने खोज खबर ली ? चिंता में उन्होंने अपने बाकी स्टाफ से पूछा कि वो जाते समय क्या कह कर गई थी ? तो इस पर सिक्यूरटी गार्ड ने बताया कि कह रही थी कि, दक्षिण दिल्ली के कोटला क्षेत्र में एक प्लेसमेंट एजेंसी है मैं वहाँ जाउंगी और दिल्ली में रहूंगी.

खोज करने पर वह एजेंसी मिल गई और पता चला कि यह महिला तीन महीने से इसी एजेंसी के माध्यम से दिल्ली में नौकरी कर रही है. दिल्ली पुलिस की दबिश के बाद उस एजेंसी ने दो घंटे में उस महिला को वहां प्रस्तुत कर दिया. दिल्ली पुलिस ने कोलकाता पुलिस को सूचना दी और उसे दिल्ली के नारी निकेतन में भेज दिया.

सामान्य सी दिखने वाली यह कहानी बड़ी गहरी साजिश की ओर इशारा करती है. जिसकी गहराई से पड़ताल होनी चाहिए. सिने स्टार शाइनी आहूजा कि नौकरानी ने पहले बलात्कार का आरोप लगाया, उसे जेल भिजवाकर फिर अब कहती है कि उसने झूठा आरोप लगाया था. जानकारी मिली है कि प्लेसमेंट एजेंसियां इसी तरह का ताना-बाना बुनकर संपन्न परिवारों को फंसा लेती हैं फिर उन्हें कानून का डर दिखा कर उनसे मोटा पैसे ऐंठती हैं. तीन तरह के आरोप लगते हैं नाबालिग लड़की से छेड़-छाड़ के, गर्भधान कर देने के या गायब कर देने के. आरोप लगते ही और मामला पुलिस में जाते ही नौकरी देने वाला घबरा जाता है. घबराहट में वो इनके जाल में फंस जाता है.

उपरोक्त मामले में तो परिवार के ऊँचे संपर्क पुलिस में होने के कारण वे बच गए और महिला बरामद हो गई पर ज़्यादातर लोग इस गिरफ्त आसानी से नहीं छूट पाते. यह गंभीर समस्या बनती जा रही है. एक तरफ बंगाल, झारखण्ड, उड़ीसा, केरल, बिहार, मध्यप्रदेश के गरीब परिवार नौकरी की तलाश में संपन्न राज्यों की तरफ मुंह करते है और दूसरी तरफ कामकाजी व्यस्त जीवन जीने वाले परिवार या संपन्न परिवार घरेलू काम के लिए ऐसी महिलाओं को ढूँढ़ते हैं जो विश्वसनीय हों. प्लेसमेंट एजेंसियां इसी दूरी को पाटती हैं. कायदे से उन्हें अपनी व्यवस्था पारदर्शी और विश्वसनीय बनानी चाहिए. पर जैसा उपरोक्त मामले में हुआ. क्या कोटला की एजेंसी ने इस महिला को रखने से पहले उसकी तहकीकात की ? क्या उसके परिवार से रजामंदी ली ? यदि हाँ तो उसका परिवार कैसे कह सकता है कि वो गायब हो गई ? अगर यह रजामंदी लिए बिना ही उसे रख लिया तो क्या यह नए मालिक के साथ धोखाधड़ी नहीं है कि किसी महिला का अतीत और अता पता जाने बिना उसे किसी के घर में नौकरी पर रखवा दिया. कल कोई ऊंच-नीच हो जाये और यह महिला कोई अपराध करके भाग जाए तो उसे कहाँ से ढूंढेगे ? इसका कोई जवाब एजेंसी के पास नहीं है.

जांच का विषय है कि ऐसी एजेंसियां आपस में एक नेटवर्क से जुडी रहती हैं और फिर मिलकर ब्लैकमेलिंग का यह खेल खेला जाता हैं. कहीं प्लेसमेंट की आड़ में इन महिलाओं को वैश्यावृत्ति के धंधे में तो नहीं डाला जाता ? यह सब जांच का विषय होना चाहिए. ऐसे लोग जिन्हें अपने घरेलू नौकर के झूठे आरोपों को झेल कर ब्लैक मेल का शिकार होना पड़ा हो, अगर इस अखबार के नाम पत्र लिखते हैं तो यह जांच करना और आसान हो जायेगा.

पर तस्वीर का दूसरा पहलू भी है. ऐसी गरीब लाचार महिलाओं को नौकरी देने वाले अक्सर उनका शोषण भी करते हैं. उन्हें यातना या शारीरिक कष्ट देते हैं. उनसे वासना तृप्ति करते हैं. उनको छुट्टी नहीं देते. उनका वेतन मार लेते हैं. इसीलिए ऐसी महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए हर शहर में जागरूक महिलाओं को एक साझा मंच बनाना चाहिए. हर शहर में तमाम ऐसी संपन्न पढ़ी-लिखी महिलाएं रहती हैं जिनके पास दिन भर करने को कुछ खास नहीं होता. ताश के पत्ते या किट्टी पार्टी में दिन गुज़र जाता है. दूसरी तरफ इन्हें अपने ही बच्चे पालने कि फुर्सत नहीं होती. बच्चे आयाओं के सहारे पलते हैं. ऐसे में आयाएं संपन्न परिवारों का अहम हिस्सा बन चुकी हैं. इनकी मांग हमेशा पूर्ती से ज्यादा रहती हैं. इसलिए भी अगर संपन्न महिलाएं एक संस्था बना कर इस समस्या से निपटती हैं तो उनका और उनके परिवार का काम अच्छी तरह चलेगा. हर बात के लिए सरकार कि ओर मुह ताकना कोइ अकलमंदी नहीं है. जब तक समाज में आर्थिक विषमता हैं घरेलू नौकरों की ज़रूरत बनी रहेगी. ऐसे में इस समस्या का हल समाज को ढूँढना चाहिए वरना एक तरफ गरीबों का शोषण होगा और दूसरी तरफ संपन्न लोग नाहक ब्लैकमेल का शिकार होंगे.

Sunday, September 19, 2010

क्या हर तीसरा भारतीय भ्रष्ट है?

हाल ही में सेवानिवृत्त हुये मुख्य सतर्कता आयुक्त प्रत्यूश सिन्हा ने यह कहकर कि भारत में रहने वाला हर तीसरा भारतीय भ्रष्ट है, खासा विवाद खड़ा कर दिया है। केन्द्रीय कानून मंत्री वीरप्पा मोईली ने इस बयान पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। श्री सिन्हा का आशय शायद उन लोगों से था जो सत्ता से जुड़े हैं। वरना अगर पूरे भारत की बात की जाए तो भ्रष्टाचार के बारे में कुछ और ही समझ बनती है।

भ्रष्ट कौन है? जो अनैतिक साधनों से धन कमाता है। देश की 70 फीसदी आबादी कृषि पर आधारित है। किसान छोटा हो या बड़ा या फिर भूमिहीन कृषि मजदूर। रात-दिन खेत में कड़ी मेहनत करता है, तपती धूप, जमाने वाली सर्दी झेल कर भी अनाज उपजाता है। वर्षा में अपना खेत, अनाज, पशु यहां तक कि अपने घर की रक्षा में महीनों जाग-जाग कर रात काट देता है। कहीं बाढ़ में उसका यह छोटा सा संसार ही न बह जाए। इतना ही नहीं खाद, पानी और बीज के लिए बैंक या महाजन के कर्जे में डूबा रहता है। इस सबके बाद जो फसल पैदा होती है, उसे जब मंडी में बेचने जाता है तो यह गारंटी नहीं कि उसे आढ़तिया अनाज के पूरे दाम दे दे। अब बताइये इस बेचारे किसान को भ्रष्ट होने का अवसर कहां मिलता है?

इसी तरह खदानों में काम करने वाले मजदूर हों या भवन निर्माण में काम करने वाले मजदूर, कारखानों में काम करने वाले मजदूर हों या छोटे और मजले दुकानदारों के यहां काम करने वाले मजदूर, यह सब रात-दिन कड़ी मेहनत करते हैं। इनके मालिक कोई ठेकेदार या ऐसे लोग होते हैं जो इनसे काम तो पूरा लेते हैं लेकिन पैसे खींच कर देते हैं। श्रमिकों की सुरक्षा के नियमों की अवहेलना करके इनकी जान जोखिम में डालकर इनसे काम करवाते हैं। एक राज्य के मजदूरों को दूसरे राज्य में ले जाकर काम करवाते हैं, ताकि अगर वो दुर्घटना में मर जाए तो उसकी लाश को ठिकाने लगा दे या उसके घर भिजवा दे। पर स्थानीय जनता में कोई आक्रोष न पनपने दें। इन अमानवीय दशाओं में काम करने वाले करोड़ों मजदूरों को भ्रष्ट होने का मौका कहां मिलता है?

देश की आधी आबादी महिलाओं की है। जिनमें से बहुत थोड़ी महिलायें सरकारी नौकरी में है। ज्यादातर अपने घर, खेत-खलियान या कुटीर उद्योग में लगी हैं। यह सब महिलायें सूर्याेदय से लेकर देर रात तक अपने परिवार की धुरी की तरह निरंतर काम में लगी रहतीं हैं और घर की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। यह सब करने वाली इन महिलाओं को भ्रष्ट होने की गुंजाइश कहां है?

इसी तरह देश के वनों में रहने वाले जन-जातीय समुदाय न्यूनतम साधनों में गुजारा करते हैं और वन संपदा की रक्षा करते हुए उसके उत्पादनो पर ही निर्भर रहते हैं। इन वनवासियों के नैसर्गिक अधिकारों की अवहेलना करके जंगल का माफिया जंगल काटता है और खदान का माफिया खनन करता है। पर इन वनवासियों की थाने से कचहरी और संसद तक कहीं नहीं सुनी जाती। तो इन बेचारों को भ्रष्ट होने का कहां मौका है?

इसी तरह फौज के सिपाहियों या सरकारी महकमों में भी काम करने वाले वो सब लोग जिनसे कसकर काम लिया जाता है और जिन्हें अपने विवके से आर्थिक निर्णय लेने की कोई छूट नहीं है, कैसे भ्रष्ट हो सकते हैं?

साफ जहिर है कि भारत की 90 फीसदी आबादी भ्रष्ट नहीं है। दरअसल भ्रष्ट वही हो सकता है या होता है जिसे अपने विवेक से आर्थिक निर्णय या नीतिगत निर्णय लेने का अधिकार मिला हुआ है। जैसे सरकार, सार्वजनिक क्षेत्र, सेवा क्षेत्र या निजी क्षेत्र में काम करने वाले अधिकारी। जो लेागों को नियुक्ति देने से लेकर बड़ी-बड़ी खरीद, ठेके आवंटित करना, विकास की नीति बनाना, विकास के लिए किसी क्षेत्र को चुनना और उसे विकसित करना या अंतर्राष्ट्रीय व्यापार जैसे क्षेत्रों में निर्णय लेते है। चूंकि इनके निर्णय से किसी को फायदा और किसी को घाटा हो सकता है, इसलिए इन्हें भ्रष्ट होने का हर क्षण अवसर मिलता रहता है। जिन्हें लाभ होने की संभावना होती है वह अपने लाभ का एक हिस्सा इन्हें रिश्वत के रूप में एडवांस देकर इनसे अपने हक में निर्णय करवाने की फिराक में रहते हैं।

अब यहां आदमी के संस्कार, उसकी चेतना, उसके परिवेश और उसकी पारिवारिक आवश्यकताओं के सम्मलित दबाव का परिणाम होता है कि वह भ्रष्ट मानसिकता से निर्णय ले या सदाचार से। ऐसे लोगों की संख्या पूरे भारत की आबादी की 2 फीसदी से ज्यादा नहीं होगी। इन 2 फीसदी में ही हर तीसरा भारतीय भ्रष्ट हो सकता है और है भी। इसलिए श्री सिन्हा का यह दुखभरा बयान सही ठहराया जा सकता है। जो उन्होंने अपने लंबे प्रशासनिक जीवन के अनुभवन के बाद इस हताशा में दिया कि केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त होते हुए भी वे ऐसे भ्रष्ट लोगों का कुछ खास बिगाड़ नहीं सके। शायद बयान देते समय वे यह तथ्य स्पष्ट करना भूल गये अथवा उनके बायान को सही संदर्भ में प्रस्तुत नहीं किया गया।

Sunday, September 12, 2010

मनमोहन सिंह का लेखा-जोखा

पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री डा¡. मनमोहन सिंह ने अपनी सालाना रस्म अदायगी के तहत संपादकों से बात करते हुए अपना मन खोला। डा¡. सिंह की पहली चिंता कश्मीर के हालात को लेकर है। साथ ही उनकी इच्छा है कि अपनी जन्मभूमि पाकिस्तान से भारत के संबंधों का सुधार हो। पर इसके अलावा भी अगर उनकी सरकार के काम का लेखा जोखा किया जाए तो कोई बहुत प्रभावशाली रिपोर्टकार्ड नहीं बनता। राष्ट्रकुल खेलों में 70 हजार करोड़ रूपये का चूना लग चुका है। इसमें भारी भ्रष्टाचार हुआ है। जिसकी जांच अब खेलों के बाद केन्द्रीय सतर्कता आयोग करेगा। इधर अप्रत्याशित वर्षा ने न सिर्फ खेल के इंतजाम में पलीता लगा दिया है बल्कि कि देशभर में मुश्किल पैदा कर दी है। हालाकि जल प्रबंधन के मामले में डा¡. सिंह को दोषी करार नहीं दिया जा सकता क्योंकि यह बदहाली तो आजादी के बाद बनी हर सरकार की लापरवाही और भ्रष्टाचार का परिणाम है। जो हम एक तरफ तो जल संकट के लिए हाय तोबा मचाते हैं और दूसरी तरफ नदी परियोजनाओं पर खरबों रूपया खर्च करके भी वर्षा के जल का संचय नहीं कर पाते।

अपने ही दल के केन्द्रीय मंत्रीमंडल के मंत्रियों के बीच पारस्परिक छीटाकशी ने डा¡. सिंह बार-बार असहज स्थिति में डाला है। हालाँकि वाजपेयी सरकार के मंत्रिमंडल में हुए झगडों के मुकाबले यह कहीं बेहतर स्थिति हैण् पर दूसरी तरफ डा सिंह की सरकार की आर्थिक विकास की दर अपेक्षित 9 फीसदी के निकट ही रही है। जो डा¡. सिंह के लिए संतोष की बात होगी। हालाकि कई क्षेत्रों में अपेक्षित विकास का कोई संकेत नहीं मिल रहा। मसलन केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ का हर दिन 20 किमी0 राजमार्ग बनाने का दावा अधर में लटका है। क्योंकि उन्हें भारत के योजना आयोग व पर्यावरण मंत्रालय से अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा।

शिक्षा के क्षेत्र में भी मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने घोषणायें और कार्यक्रम तो बहुत से चालू किये हैं पर जमीनी हकीकत अभी नहीं बदली है। शिक्षा के अधिकार को मूल भूत अधिकार बनाने के बावजूद राज्य सरकारें ऐसी योजनाओं पर काम करने को तब तक तैयार नहीं है जब तब उन्हें केन्द्र पैसा न दे।

हालाकि प्रधानमंत्री ने अपने गृहमंत्री की पीठ थपथपाई है पर जनता का आंकलन यही है कि नक्सलवाद की समस्या को हल करने में पी चिदाम्बरम को कोई सफलता नहीं मिल पाई है। आये दिन नक्सलवादी युवा पुलिसकर्मियों की हत्या करके पुलिस फोर्स का मनोबल गिरा रहे हैं। हालाँकि आतंकवाद के मामले में डा सिंह की सरकार का रिकोर्ड बेहतर रहा है जबकि वाजपेयी सरकार के दौरान आतंकवादियों ने रघुनाथ मंदिर जम्मूए अक्षरधाम मंदिर गांधी नगर ही नहीं भारत की संसद तक पर खतरनाक हमले किये थेण्

डा¡. सिंह की भलमनसाहत के कायल लोग हैरान है कि वे कुछ जादुई करिश्मा क्यों नहीं दिखा पा रहे हैं। पर ऐसा नहीं है कि वे कुछ कर ही न पाये हों। हम उनकी आर्थिक या परमाणु नीति के समर्थक हों या न हों यह सच है कि 90 के दशक में अल्पमत की इंका सरकार के वित्तमंत्री के रूप में उन्होंने बड़ी होशियारी से भारत में आर्थिक उदारीकरण का रास्ता साफ किया था। इसी तरह अमरीका से परमाणु संधि के मामले में उन्होंने पूरी कड़ाई दिखाते हुए और वामपंथियों के भारी विरोध के बावजूद जो चाहा सो करवा लिया। फिर क्या वजह है कि वे अपने कार्यकाल में ठोस उपलब्धियां नहीं दिखा पा रहे हैं?

यह सब जानते हैं कि मौजूदा यूपीए सरकार की कमान दरअसल 10 जनपथ के हाथ है। पर हकीकत यह है कि हर मामले में सोनिया गांधी दखल नहीं देती। बहुत सारे ऐसे मामले हैं जिन्हें प्रधानमंत्री अपनी पहल पर देखते हैं। जिसमें उन्हें उनके द्वारा चुने गये सलाहकारों की टीम मदद करती है। ऐसी सभी क्षेत्रों में उनसे अपेक्षित कार्यकुशलता का प्रमाण न मिलना लोगों के मन में २kaका पैदा करता है।

आर्थिक उदारीकरण तो इन्होंने कर दिया पर भारत सरकार में व्याप्त लालफीताशाही में कोई कमी नहीं आई। डा¡. सिंह नेता न होकर एक सीईओ की तरह हैं, इसलिए उन्हें लालफीताशाही को खत्म करने की ठोस पहल करनी चाहिए। इसी तरह भ्रष्टाचार के मामले में वैसे तो कोई भी सरकार अपवाद नहीं रही, चाहे वह अटल बिहारी वाजपेयी की ही सरकार क्यों न हों, पर डा¡. सिंह की सरकार के मामले में जो भी विवाद सामने आये हैं उनसे निपटने में उन्होंने अपनी छवि के अनुरूप मुस्तैदी नहीं दिखाई, ऐसा क्यों?

जबसे डा¡. सिंह दूसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं लोग अक्सर सवाल पूछते हैं कि क्या उन्हें उनके कार्यकाल के बीच में ही हटाकर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बना दिया जायेगा? इसका जवाब प्रधानमंत्री यह कह कर देते हैं कि वे युवाओं के आगे आने को खुद बढ़ावा देना चाहते हैं। राहुल गांधी भी इसका जवाब टाल जाते हैं। वे कहते हैं कि देश में एक प्रधानमंत्री है जो अच्छा काम करते हैं। अंदर की बात जानने वाले कुछ और ही कहते हैं। उनका कहना है कि राहुल गांधी इस सरकार की नैया मझधार में खेने को तैयार नहीं है। उन्हs डर है कि ऐसा करने से अगले लोकसभा चुनाव में उन्हें इस सरकार की नाकामयाबियों का बोझ ढोना पड़ेगा। जो उनकी अपेक्षित सफलता में पंक्चर कर सकता है। इसलिए वे अपना पूरा ध्यान पार्टी का युवा जनाधार बढ़ाने में लगा रहे हैं। ताकि एक लहर बना कर बड़ी सफलता के साथ चुनाव में जीते और अगली सरकार के प्रधानमंत्री का पद संभाले। इस दृष्टि से डा¡. सिंह के पास “ksष पूरा कार्यकाल है। यह बात वह भी जानते हैं। इसलिए उन्हें अपनी सरकार का आत्मविश्लेषण कर इसके तौर तरीके में ठोस सुधार करना चाहिए। अपने मंत्रियों को भी अपने-अपने मंत्रालय के लक्ष्य निधारित कर हर सप्ताह अपना रिपोर्ट कार्ड पेश करना चाहिए।