Rajasthan Patrika 17-02-2008 |
जिस सोवियत यूनियन में सब्जी, अनाज, प्रसाधन सामिग्री, खनिज, दवाऐं, इलैक्ट्रोनिक उपकारण औ कपड़ा सब भरत से जाता था। भारत के रक्षा बलों को ज्यादातर आपूर्ति सोवियत यूनियन से होती थी। उसी सोवियत यूनियन का 1991 में 15 देशों में रूस समाजवादी से पूंजीवादी हो गया। पहले वहां सारे व्यपार पर सरकार का निंयत्रण होता था और सरकार सामरिक व आर्थिक दृष्टि से भरत को अपना साथी मानकर भरत से ही ज्यादातर आयात करती थी। पूंजीवाद में बाजार खुल गया। भारत के कई शहरों में इसका बुरा असर पड़ा। जैसे लुधियाना का हौज़री उत्पादन काफी हद तक बंद हो गया।
जहां पहले सोवियत यूनियन में कोई लखपति नहीं होता था वहीं रातें रात अरबपति और खबपति पैदा हो गये। माफया ने रूस की अर्थव्यवस्था को अपने शिकंजे में ले लिया। पहले डेढ़ सौ रूबल रोजाना एक पर्यटक मास्के में मजे से दिन बिता लेता था। पूंजीवाद के दौर में डेढ़ सौ रूबल में चाय का प्यला Hkh नहीं मिलतk Fkk । जहां पहले बढि़या कार किसीके पास नहीं होती थी। वहां आज यूरोप और अमरीका की सबसे महंगी कारें पेरिस से पहले मास्को की सड़कों पर दौड़ती है। रूस के नवधनाड्य अब फ्रांस, साइप्रस, स्विटजरलैंड और यहां तक कि अमरीका में आलीशान फार्म हाऊस बनवा रहे हैं।
इधर भारत में सोवियत यूनियन से व्यापार का नियंत्रण पहले सरकारी संस्था स्टेट ट्रेडिंग कारपोरेशन के हाथ में था। किसी को स्वतंत्र व्यापार करने की छूट नहीं थी । पर 1992 के बाद डा. मनमोहन सिंह की पहल पर भारत में उदारीकरण का दौर शुरू हुआ। हमें वैश्विक बाजार से मुकाबला करना था। इसलिए स्टेट ट्रेडिंग काफरपोरेशन की पकड़ ढीली कर दी गई और भरत के कारोबारयिों को दुनिया की दौड़ में मुक्त छोड़ दिया गया। इन हालातों में रूस हमारे हाथ से छूट गया ।उसे पश्चिमी देशों ने अनेक आर्थिक संधियों में फंसा कर उस पर पूरा नियंत्रण कर लिया। अब वो भारत का माल खरीदने को स्वतंत्र नहीं था। लेकिन अब रूस सभंल गया है। विघटन के बाद के दौर में जिन संधियों में फंस गया था उनसे निकल रहा है। उसकी आर्थिक रीढ़ इसलिए मजबूत है क्योंकि उसके पस बिजली, तेल और वन की विशाल संपदा है। उसकी सैन्य व्यवस्था पहले से ही मजबूत है।
इधर विश्व बाजार की दृष्टि से भारत की स्थिति भी मजबूत हुई है। भारत के लिए यह संतोष की बात है कि अब दुनिया में उसकी हैसियत बहुत बढ़ गई है। पश्चिमी देशों की नजर में भारत अब सपेरों और बजीगरों का देष नहीं बल्कि मजबूत और जेती से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था वाला देश है।
इसी परिस्थिति को समझते हुए दोनों देशों के प्रधान मंत्रियों ने एक दूसरे के देशों की यात्राऐं की। जवाहरलाल नेहरू विरूवविद्यालय के रूसी भाषा के विद्वान प्रो. वरियाम सिंह का मानना है कि अब दानों देशों के के बीच रिश्तों का नया दोर फिर से शुरू होगा। इसका संकेत इसीबात से मिल रहा है कि भारत में अब फिर से रूसी भाषा पढ़ने वाले छात्रों की भीड़ बढ़ने लगी है। वैसे भी भरत में दर्जनों विश्व विद्यालययों में रूसी भाषा वर्षों से पढ़ाई जा रही है। किंतु विछले 15 वर्षों से इन केंन्द्रो में छात्रों की संख्या में काफी गिरावट इा गई थी। भरत रूस व्यापार काफी गिर जाने के कारण रूसी जानने वालों के लिए रोजगार के अवसर भी काफी कम हो गये थे। पर अब रूस से व्यापार भी बढ़ने के हालात पैदा हो गए हैं। रूसी धनाड्य भारत में निवेश करने के लिए घूम रहे हैं। गोवा में तो काफी संपत्तियां रूसियों ने खीद ली है।
यही मौका है जब हस्त कला उद्योग, पर्यटन, स्वास्थ्य सेवाओं, औद्योगिक उत्पादनों, कला? संस्कृति व शिक्षा के क्षेत्र में भरत के डद्यमी रूस में नया बाजार तलाश सकते हैं। दोनों देशों के बीच भौगोलिक दूरी भी इतनी कम है कि ऐसा करना दोनों के लिए फायदे का सौदा रहेगा। यही वजह कि रूसी प्रधानमंत्री विक्टर ए. जबकोव ने दोनों देशों के नागरिकों को एक दूसरे को समझने की जरूरत पर जोर दिया। यह हम पर हे कि हम इस बदली परिस्थति में अपनी संस्कृति इसक मूल्यों से कटे बिना ही दुनिया के आर्थिक रूप से सक्षम देशों से कारोबार करके अपनी आर्थिक दशा को और कितना बेहतर बना सकें।