Rajasthan Patrika 07-10-2007 |
आगामी लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर, राहुल गाँधी के माध्यम से देश के किसानों और मजदूरों के लिये हजारों करोड़ रूपये की योजनाओं की घोषणाऐं की जा रहीं हैं। ताकि संदेश जाये कि युवराज राहुल गाँधी देश के किसानों के प्रति वाकई गंभीर हैं। इसमें कोई बुराई नहीं। पर समस्या ये है कि ऐसी घोषणाओं से किसानों के हालात सुधरने वाले नही। आज देश में किसान रासायनिक खाद के भारी संकट का सामना कर रहा है। एक तरफ तो इस खाद ने किसान की भूमि की उर्वरकता तेजी से घटायी है। उस पर कर्जे का बोझ बढ़ाया है। दूसरी ओर समय पर इसकी आपूर्ती न हो पाने के कारण किसान की तकलीफ काफी बढ़ी है।
आज पूरी दुनियk के समझदार कृषि वैज्ञानिक यह मानने लगे हैं कि आधुनिक तरीके से की जा रही खर्चीली कृषि न तो किसानों के हित में है और न ही दुनियां के लोगों के हित में। रासायनिक खाद पर आधारित कृषि के विनाशकारी परिणाम सारी दुनियां के सामने आ चुके हैं। इसलिये आज जैविक कृषि का प्रचलन तेजी से बढ़ता जा रहा है। दुनिया भर के कुलीन और सम्पन्न लोग रासायनिक खादों से उपजे अनाज, दालों व फल सब्जीयों का उपभोग नही करते। हर ओर जैवीक कृषि के उत्पादनों की मांग है। राजस्थान के नवलगढ़ जिले में एम0आर0 मुरारका फाउण्डेशन ने हजारों किसानों की जिंदगी बदल दी है। इस संस्था ने राजस्थान के जैविक कृषि उत्पादों का बाजार विदेशों मे खड़ा कर लिया है। ऐसी ही तमाम संस्थायें देश में किसानों का हित साधने में जुटी हैं। पर रासायनिक खादों के हामी केन्द्रीय कृषि मंत्री श्री शरद पवार ने अभी तक इस दिशा में कोई क्रांतिकारी कदम नही उठाया है। उधर अकसर किसान यह शंका करते हैं कि जैविक कृषि के लिये अभी बाजार परिपक्व नही हुआ है। पर यह गलत सोच है।
डा¡ भारत भूषण त्यागी पश्चिमी उत्तरप्रदेश के जिले के एक ऐसे किसान है जिन्होनें इस धारणा को झुठला दिया। उन्होनें मात्र 6 एकड़ जमीन में जैविक कृषि के माध्यम से न सिर्फ अपने परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति की है बल्कि 10 हजार किसान परिवारों की कृषि भी सुधार दी। डा¡ त्यागी का कहना है कि किसानों की समस्या का हल कृर्षि मंत्री या भारत सरकार के पास नहीं है। किसानों की समस्या का हल तो किसानों के ही पास है। उन्हे अपनी सोच बदलनी होगी। आज किसान को बीज बाहर की कंपनियो से खरीदना पड़ता है। खाद बाहर की कंपनियो से खरीदनी पड़ती है। कीटनाशक बाहर की कंपनियों से खरीदने पड़ते हैं। ट्रैक्टर बाहर की कंपनियांे से खरीदना पड़ता है। डीजल बाहर की कंपनियों से खरीदना पड़ता है। साबुन, तेल, मंजन सभी कुछ बाहर की कंपनियो से खरीदने पड़ते है। किसान की आमदनी से ज्यादा मुनाफा बाहर की कंपनियks उससे ले जाती है। किसान पर बचता क्या है कर्जा और बैंक का तकादा। मजबूरी में देश के लाखो किसान अपने परिवारों के साथ आत्महत्या कर रहे हैं। डा¡ त्यागी का कहना है कि खेती बाजार की मांग पूरी करने के लिये नहीं अपने परिवार और गाँव को सुखी बनाने के लिये की जायगी तो किसान की हर समस्या का हल निकल जायेगा।
डा¡ भारत भूषण त्यागी दिल्ली विश्वविद्यालय से ऊंची पढ़ाई पढ़ कर भी नौकरी करने नहीं निकले। पिछले 15 वर्षों से उ0प्र0 के बुलंदशहर के एक सघन वन में जाकर अपनी पुश्तैनी 6 एकड़ जमीन पर खेती करने लगे। पर ऐसी बेवकूफी की खेती नहीं जिसमें मुनाफा बाहर की कंपनियाँ कमाएं और किसान के जवान बेटे ताश खेलने में दिन बिता दें। उन्होनें खेती की नई विधि अपनाई। कुछ ही वर्षों में 6 एकड़ जमीन सोना उगलने लगी। वे बाजार से कुछ नहीं खरीदते, न बीज, न डीजल, न कीट नाशक, न खाद। केवल अच्छी पैदावार करते हैं और अपनी व अपने परिवार की सभी जरूरत घर बैठे पूरी कर लेते हैं। साल में 5-6 लाख रूपया बचता है सो अलग। यही तकनीकि उन्होंने 10 हजार किसान परिवारों को सिखाई। जो आज खुशहाल हैं और डा¡ त्यागी को देव पुरूष मानते हैं।
राहुल गाँधी अगर वास्तव में देश के किसानों के हालात बदलना चाहते हैं तो उन्हे केवल युवा सांसदो की टीम साथ लेकर चलने से कामयाबी नहीं मिलनी क्योंकि उन्हें ज्ञान देने और नीति बताने वाले लोग तो वही पोंगापंथी दिमाग वाले हैं। जो आज भी देश को विदेशी कंपनियों की नजर से देखते हैं। युवराज को तो डाॅ0 भारत भूषण त्यागी जैसे उन लोगों की सलाह लेनी चाहिये जिन्होने अपने अनूठे कार्यों से जनहित में सफलता के झंडे गाढ़े हैं। ऐसे लोगों की सलाह से जो विचार बनेंगे, जो नीति बनेगी और जो काम होगा उससे किसानों का ही नही देश की आम जनता का भी हित होगा। राजनैतिक विजय तो मिल ही जायेगी पर देश में जो एतिहासिक परिवर्तन दिखाई देगा वो युवराज को लंबे समय तक शासन करने का नैतिक आधार देगा। तकलीफ इस बात की है कि निहित स्वार्थ सत्ता केंन्द्र तक कभी सद्विचारों को पहुंचने ही नहीं देते। राहुल गाँधी के पिता श्री राजीव गाँधी भले, सरल और सच्चे इंसान थे पर उन्हे स्वार्थी तत्वों ने नाकाम कर दिया। अब राहुल गाँधी ऐसे लोगों से कैसे बचते हैं, समय ही बताएगा।