Sunday, August 26, 2007

मायावती के बदले तेवर

Rajasthan Patrika 26-08-2007
चैथी बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी सुश्री मायावती के प्रशासनिक निर्णयों की धमक प्रदेश के नगरों में सुनी जाने लगी है। गत दिनों पश्चिमी उ.प्र. के बुलंदशहर जिले में एक जैविक फार्म देखने जाते हुए हम कपड़ा उद्योग के लिए प्रसिद्ध पिलखुआ में रूके तो वहां के कुछ उद्यमियों से बात हुई। सबका एक स्वर से कहना था कि नई सरकार के आते ही उनके इलाके से गqडों का आतंक समाप्त हो गया है। पहले ये उद्यमी दिन छिपते ही अपने कारखाने बंद करके घर भागते थे। वरना घर के रास्ते में लुट जाने या अपहरण हो जाने का खतरा था। पर अब रात के 12 बजे तक भी फैक्ट्री चला रहे हैं और बेखौफ घर जाते हैं। यह एक सुखद सूचना थी। ऐसी ही सूचनाएं प्रदेश के अन्य नगरों से भी मिल रही हैं। दरअसल सुश्री मायावती के तेवर इस बार काफी बदले हुए हैं। उ.प्र. में बहुत लंबे समय के बाद बहुमत की सरकार बनी है। वे सबकी अपेक्षाओं के विपरीत अपने दमखम पर सत्ता में आई हैं। इतना ही नहीं उनकी सोशल इंजीनियरिंग ने इंका व भाजपा के जनाधार को भी झकझोर दिया है। इससे इन दोनों बड़े दलों में घबड़ाहट है।

राजनैतिक विश्लेश्क यह मान रहे हैं कि अगर वे ऐसे ही चलती रहीं तो अगले लोक सभा चुनाव में देश की एक सशक्त नेता के रूप में उभरेंगी। शायद अपने इसी दूरगामी लक्ष्य को ध्यान में रखकर वे अपनी सरकार चला रही हैं। जिससे देश के मतदाताओं को अपने कुशल और प्रभावशाली प्रशासक होने का संदेश दे सकें। सत्ता में आते ही अपने ही दल के सांसद को अपने घर पुलिस बुला कर गिरफ्तार करवाने का जो अभूतपूर्व ऐतिहासिक काम उन्होंने किया उसका एक जोरदार संदेश पूरे प्रदेश में गया। ये सांसद गिरफ्तारी से बचते फिर रहे थे। सुश्री मायावती ने अपने दल के सभी सांसदों और विधायकों को कड़े निर्देश दिए हैं कि वे नेतागिरी के नाम कानून व्यवस्था से छेड़छाड न करें। प्रशासनिक अधिकारियों को सिफारिशों से परेशान न करें। उन्होंने दल के कार्यकर्ताओं को दलाली के लिए सरकारी दफ्तरों में चक्कर काटने से साफ मना किया है। प्रदेश में गुंड़ों, अपराधियांे, अपहर्णकर्ताओं के खिलाफ कड़े प्रशासनिक कदम उठा कर उन्होंने जनता को भयमुक्त प्रशासन देने का वायदा पूरा किया है। जिसका असर प्रदेश में साफ दिखाई दे रहा है। वैसे भी सुश्री मायावती की कार्यशैली से वाकिफ अफसरशाही उनके फरमानों की उपेक्षा करने की हिम्मत नहीं करती।

भारत के इतिहास में ये शायद पहली बार हुआ कि सुश्री मायावती ने प्रदेश के आईएएस अधिकारियों के उपर एक गैर आईएएस टेक्नोक्रेट श्री शशांक शेखर को कैबिनेट सचिव बना कर बैठा दिया। अभी तक कैबिनेट सचिव का पद केवल भारत सरकार में हुआ करता था। श्री शेखर एक अनुभवी और योग्य अधिकारी हैं। जिनपर सुश्री मायावती को पूरा भरोसा है और प्रदेश के आईएएस अधिकारी ये कह कर मन को तसल्ली दे रहे हैं कि श्री शेखर की नियुक्ति राजनैतिक है नाकि प्रशासनिक। सबसे बड़ी बात तो यह है कि, ‘तिलक तराजू और तलवार, इनकी मारो जूते चार’ का नारा देने वाली सुश्री मायावती आज सभी सर्वर्णों को साथ लेकर चल रहीं हैं और उनकी सत्ता में पूरी भागीदारी सुनिश्चित कर रही हैं जिससे जनता में उनकी छवि एक सर्वमान्य नेता के रूप में बनने लगी है।

उधर उनके विरोधियों का कहना है कि यह सब केवल लोक सभा चुनाव तक ही चलेगा। उनके आलोचकों का यह भी कहना है कि इन प्रशासनिक कदमों से प्रदेश के आर्थिक विकास और प्रशासनिक कार्यकुशलता में कोई स्थायी सुधार नहीं होगा। यह केवल लोकप्रियता हासिल करने के हथकंडे हैं। पर लखनऊ स्थित राज्य सचिवालय का दौरा करने पर कुछ और ही माहौल नजर आता है। सभी आला अफसर अपने कमरों में मिले। हैरत यह देखकर हुई कि हर अफसर अपने विभाग के कामों को तेजी से निपटाने में जुटा है और आगंतुकों को संतुष्ट करके ही भेज रहा है। हर आगंतुक की समस्या के समाधान लिए प्रमुख सचिव भी अपने अधीनस्थ अधिकारियों को फौरी निर्देश देते जा रहे हैं। इतना ही नहीं स्वयं श्री शशांक शेखर प्रदेश के आर्थिक विकास में गति लाने के लिए काफी उत्साहित नजर आए।

कहते हैं कि हर नई सरकार का हनीमून छह महीने तक होता है फिर तलाक का माहौल बनने लगता है। यदि सुश्री मायावती की भी सरकार का यही होना है तो जनता को निराशा हाथ लगेगी। पर शायद ऐसा है नहीं। सुश्री मायावती की अल्पआयु, सामाजिक पृष्ठभूमि, संगठनात्मक सूझबूझ और नेतृत्व क्षमता ने उनका आत्मविश्वास काफी बढ़ा दिया है। यहां तक कि वे स्वयं को देश के भावी प्रधानमंत्री के रूप में देखने लगी हैं। इसलिए उनके व्यक्तित्व में तेजी से बदलाव आ रहा है। वे देश की सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक, भौगालिक और राजनैतिक बहुलता के फायदों को और दबावों को भी समझने लगी हैं। वे स्वयं को उ.प्र. की सीमाओं के बाहर परखने लगी हैं। इस बात के पूरे संकेत हैं कि राजस्थान के आगामी विधानसभा चुनाव में वे ऐतिहासिक भूमिका निभाने जा रही हैं।

उपरोक्त परिवर्तन तो प्रशंसनीय हैं ही पर आम जनता तक सरकार की योजनाओं का लाभ पहुंचाना इतना आसान नहीं। प्रदेश की प्रशासनिक व्यवस्था वही औपनिवेशिक मानसिकता वाली है। राज्य की आर्थिक मजबूरियां भी कम नहीं हुई हैं। योजनाओं के निर्माण और क्रियान्वयन में मौलिक सोच नहीं है और फिलहाल कोई क्रांतिकारी बदलाव भी नहीं आया है। जिसके बिना कुछ ठोस और स्थायी हो पाना संभव नहीं हैं। ऐसी हालत में उपलब्धियों का भी फाइलों में सिमटे रह जाने का खतरा बना हुआ है। यदि सुश्री मायावती वास्तव में भारत में इतिहास रचना चाहती हैं तो उन्हें तुर्की के मुस्तफा कमाल पाशा या सिंगापुर या कोरिया के पूर्व राष्ट्रपतियों की जीवनी पढ़नी चाहिए। कैसे इन नेताओं ने अपनी नेतृत्व क्षमता के बल पर ही अपने देशों की तकदीर बदल दी। सुश्री मायावती को चाहिए कि वे केवल डा.अम्बेडकर के प्रति आसक्त न रहे बल्कि श्री चैतन्य महाप्रभु, गुरूनानक देव, संत कबीर दास, संत तुका राम जैसे मध्ययुगीन संतों की वाणी की भी समझ पैदा करें। इन महान संतों ने सामाजिक विषमताओं से त्रस्त आम जन को बहुत राहत दी थी। उन्हें समाज के निम्न से निम्न वर्ग को उपर उठाया पर बिना द्वेष पैदा किए। आज फिर से देश में वैसी ही भावना की आवश्यकता है। जिससे सामाजिक सौहार्द स्वतः ही पैदा हो जाता है। किसी एक जाति और विचारधारा से बंध कर नहीं बल्कि सबको साथ लेकर चलने से ही किसी नेतृत्व का जनाधार व्यापक बनता है। सुश्री मायावती को चाहिए कि वे सम्राट अकबर की तरह अपने सलाहकारों के मंडल में हर क्षेत्र के योग्य व्यक्तियों को लेकर अपने नवरत्न तैयार करें जो उनकी भावी भूमिका के अनुरूप उन्हें सही सलाह, सही दृष्टि और सही शब्द देकर आगे बढ़ाएं। अगर वे ऐसा कर पाती हैं तो उनकी राजनैतिक उपलब्धियों को कोई शतरंज का खिलाडी शह नहीं दे पाएगा।

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