Monday, September 20, 2021

अबला जीवन हाय तेरी यही कहानी


इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक को जो कड़े शब्द कहे वो उत्तर प्रदेश पुलिस की कार्यप्रणाली पर बहुत शर्मनाक टिप्पणी थी। दो साल पहले मैनपुरी में बलात्कार के बाद मार दी गई एक लड़की के मामले में आजतक उत्तर प्रदेश पुलिस ने जो लापरवाही दिखाई उससे माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय सख़्त नाराज़ हुआ। पुलिस महानिदेशक का यह कहना कि उन्होंने इस केस की एफ़आईआर तक नहीं पढ़ी है, उत्तर प्रदेश सरकार के नम्बर वन होने के दावों पर प्रश्न चिन्ह लगा देता है।
 



दरअसल छोटी लड़कियों या महिलाओं की स्थित दक्षिण एशिया, पश्चिम एशिया और अफ़्रीका के देशों में बहुत दयनीय है। ताज़ा उदाहरण अफगानिस्तान का ही लें। वहाँ के तालिबान शासकों ने महिलाओं पर जो फ़रमान जार किए हैं वो दिल हिला देने वाले हैं। महिलाएँ आठ साल की उम्र के बाद पढ़ाई नहीं कर सकेंगी। आठ साल तक वे केवल क़ुरान ही पढ़ेंगी। 12 साल से बड़ी सभी लड़कियों और विधवाओं को जबरन तालिबानी लड़ाकों से निकाह करना पड़ेगा। बिना बुर्के या बिना अपने मर्द के साथ घर से बाहर निकलने वाली महिलाओं को गोली मार दी जाएगी। महिलाएँ कोई नौकरी नहीं करेंगी और शासन में भागीदारी नहीं करेंगी। दूसरे मर्द से रिश्ते बनाने वाली महिलाओं को कोड़ों से पीटा जाएगा। महिलाएँ अपने घर की बालकनी में भी बाहर नहीं झाँकेंगीं। इतने कठोर और अमानवीय क़ानून लागू हो जाने के बावजूद अफगानिस्तान की पढ़ी लिखी और जागरूक महिलाएँ बिना डरे सड़कों पर जगह-जगह प्रदर्शन कर रही हैं।


भारत में भी जब कुछ धर्म के ठेकेदार हिंसात्मक और आक्रामक तरीक़ों से महिलाओं को सार्वजनिक जगहों पर नैतिकता का पाठ पढ़ाते हैं तो वे भी तालिबानी ही नज़र आते हैं। कोई क्या पहने, क्या खाए, किससे प्रेम करे और किससे शादी करे, ये फ़ैसले हर व्यक्ति या हर महिला का निजी मामला होता है। ये अदातें भी कह चुकीं हैं। इसमें दख़ल देना लोकतांत्रिक मूल्यों के ख़िलाफ़ है। रोचक बात यह है कि जो लोग ये नैतिक शिक्षा देने का दावा करते हैं उनमें से बहुत से लोग या उनके नेता महिलाओं के प्रति कितनी कुत्सित मानसिकता का परिचय देते आये हैं, ये तथ्य अब किसी से छिपा नहीं है। इनके चरित्र का यह दोहरापन अब जगज़ाहिर हो चुका है। इनके विरुद्ध भारत की पढ़ी लिखी, कामकाजी और जागरूक महिलाएँ भी खुल कर लिखती और बोलती हैं। उन्हें सोशल मीडिया पर अभद्र शब्दों से गलियाने की एक नई ख़तरनाक प्रवृत्ति देश में विकसित हो चुकी है। 


हम दुनिया की महिलाओं को तीन वर्गों में बाँट सकते हैं। पहला वर्ग उन महिलाओं का है जो अपने पारम्परिक सांस्कृतिक परिवेश के अनुरूप जीवन जीती हैं। फिर वो चाहे भारत की महिला हो या अफ़्रीका की। बच्चों का लालन-पालन और परिवार की देखभाल ही इनके जीवन का लक्ष्य होता है। अपवादों को छोड़ कर ज़्यादातर महिलाएँ अपनी पारम्परिक भूमिका में संतुष्ट रहती हैं । चाहे उन्हें जीवन में कुछ कष्ट भी क्यों न भोगने पड़ें। 


दूसरे वर्ग की महिलाएँ वे हैं जो घर और घर के बाहर, दोनों दुनिया सम्भालती हैं। वे पढ़ी लिखी और कामक़ाज़ी होती हैं और पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर हर क्षेत्र में अपनी सफलता के झंडे गाढ़ती हैं। फिर वो चाहे प्रशासन हो, सैन्य बल हो, शिक्षा, चिकित्सा, मीडिया, विज्ञान, व्यापार, प्रबंधन कोई क्षेत्र क्यों न हो वे किसी मामले में पुरुषों से पीछे नहीं रहती। सभ्य समाजों में इनका प्रतिशत क्रमशः लगातार बड़ता जा रहा है। फिर भी पूरे समाज के अनुपात में ये बहुत कम है। महिलाओं का यही वर्ग है जो दुनिया के हर देश में अपनी आवाज़ बुलंद करता है, लेकिन शालीनता की सीमाओं के भीतर रहकर। 


महिलाओं का तीसरा वर्ग, उन महिलाओं का है जो महिला मुक्ति के नाम पर हर मामले में अतिवादी रवैया अपनाती हैं। चाहे वो अपना अंग प्रदर्शन करना हो या मुक्त रूप से काम वासना को पूरा करना हो। ऐसी महिलाओं का प्रतिशत पश्चिमी देशों तक में नगण्य है। विकासशील देशों में तो ये और भी कम है। पर इनका ही उदाहरण देकर समाज को नैतिकता का पाठ पढ़ाने का ठेका लेने वाले धर्म के ठेकेदार पूरे महिला समाज को कठोर नियंत्रण में रखने का प्रयास करते हैं। 


वैसे मानव सभ्यता के आरम्भ से आजतक पुरुषों का रवैया बहुत दक़ियानूसी रहा है। उन्हें हमेशा दोयम दर्जे का नागरिक माना जाता है। उनकी हैसियत समाज में केवल सम्पत्ति के रूप में होती है। उनकी भावनाओं की कोई कद्र नहीं की जाती। अनादिकाल से युद्ध जीतने के बाद विजेता चाहे राजा हो या उसकी सेना, हारे हुए राज्य की महिलाओं पर गिद्धों की तरह टूट पड़ते हैं। बलात्कार और हत्या आम बात है। वरना उन्हें ग़ुलाम बना कर अपने साथ ले जाते हैं और उनका हर तरह से शोषण करते हैं। शायद इसीलिए महिलाओं को अबला कह कर सम्बोधित किया जाता है। 


नेता, प्रशासक और राजनैतिक दल महिलाओं के हक़ पर बोलते समय अपने भाषणों में बड़े उच्च विचार व्यक्त करते हैं। किंतु आए दिन ऐसे नेताओं के विरुद्ध ही महिलाओं के साथ अश्लील या पाशविक व्यवहार करने के समाचार मिलते हैं। हाल के दशकों में दरअसल, पश्चिम से आई उपभोक्ता संस्कृति ने महिलाओं को भोग की वस्तु बनाने का बहुत निकृष्ट कृत्य किया है। ऐसे में समाज के समझदार व जागरूक पुरुषवर्ग को आगे आना चाहिए। महिलाओं को सम्मान देने के साथ ही उन पर होने वाले हमलों का सामूहिक रूप से प्रतिरोध करना चाहिए। संत विनोबा भावे कहते थे कि एक पुरुष सुधरेगा तो केवल स्वयं को सुधारेगा पर अगर एक महिला सुधरेगी तो तीन पीढ़ियों को सुधार देगी। भारत भूमि ने महिलाओं को दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती के रूप में पूजा है। सृष्टि के रचैया ब्रह्मा जी के पश्चात इस भूतल पर मानव को वितरित करने वाली नारी का स्थान सर्वोपरि है। फिर भी यहाँ हज़ारों महिलाएँ हर रोज़ बलात्कार या हिंसा का शिकार होती हैं और समाज मूक दृष्टा बना देखता रहता है। जब तक हम जागरूक और सक्रिय हो कर महिलाओं का साथ नहीं देंगे, उनकी बुद्धि को कम आंकेंगे, उनका उपहास करेंगे, तो हम अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारेंगे।  

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