जब से प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने योग, भगवत्गीता और वैदिक संस्कृति का प्रचार पूरे दमखम के साथ अंतर्राष्ट्रीय पटल पर किया है, तब से दुनिया के तमाम राष्ट्राध्यक्ष और नागरिक भारत की सनातन संस्कृति के प्रति पहले से अधिक उत्सुकता और सम्मान व्यक्त करने लगे हैं। मोदी जी न केवल नवरात्रि का व्रत रखते हैं, बल्कि किसी सरकारी भोज में मांस नहीं परोसने देते। आज विश्वभर में ‘करोना वायरस’ का आतंक है। अभी इसकी भयावहता का पूरा अनुमान नहीं है। भगवान करें कि ये आपात स्थिति नियंत्रण में आ जाऐ। अगर नहीं आई तो ये विश्व में लाखों लोगों को लील जाऐगी। इस संदर्भ में दो महत्वपूर्णं बाते सामने आई हैं एक तो ये कि अभिवादन के लिए हाथ मिलाना आज खतरे से खाली नहीं माना जा रहा। दूसरा इस वायरस का स्रोत मांसाहार है। इसलिए दुनियाभर में बहुत बड़ी तादाद नें फिलहाल मांसाहार का परित्याग कर दिया है। मोदी जी ने विश्व जनसमुदाय से अपील की है कि वे अभिवादन में अब भारतीय परंपरा के अनुसार ‘नमस्ते’ को अपना ले, जो एक सुरक्षित और विनम्र तरीका है। इजराइल के राष्ट्रपति और इंग्लैंड के प्रिंस चॉर्ल्ज ने ‘नमस्ते’ को सार्वजनिकरूप से स्वीकार कर लिया है। इसके साथ ही मोदी जी को चाहिए कि दुनियाभर से मांसाहार छोड़ने की अपील भी करें।
किसी शादी की दावत या नए साल की दावत में अगर माँस न हो तो यार दोस्त कहते हैं क्या घास-कूड़ा खिला दिया।
एक ओर जहां भारत के सभी महानगरों से लेकर छोटे-छोटे कस्बों में यह देखकर आश्चर्य होता है कि किस ललचाई नजरों से लोग मांसाहार के लिए आतुर रहते हैं। वहीं दूसरी ओर अगर आप देश के बहुत ही संपन्न लोगों की संगति में बैठे हों तो आप पाएंगे कि बहुत से बड़े लोग मांसाहार छोड़ते जा रहे हैं। और तो और अमरीका और यूरोप के देश जहां बीस वर्ष पहले तक शाकाहार का नाम तक नहीं जानते थे। वहीं आज काफी तादाद में लोग मांसाहार पूरी तरह छोड़ चुके हैं। जानते हैं क्यों ? पहली बात तो यह कि मानव शरीर शाकाहार के लिए बना है मांसाहार के लिए नहीं। यह बात हम अपनी तुलना शाकाहारी और मांसाहारी पशुओं से करने पर समझ सकते हैं। शेर, कुत्ता, घड़ियाल व भेड़िया मांसाहारी हैं। गाय, बकरी, बंदर व खरगोश शाकाहारी हैं। मांसाहारी पशुओं को कुदरत ने दोनों जबड़ों में तेज नुकीले कीलनुमा दांत और खतरनाक पंजे दिए हैं। जिनसे ये शिकार करके उसमें से मांस नोच कर खा सकें। पर गाय और बंदर की ही तरह मानव को कुदरत ने ऐसे दांतों और पंजों से वंचित रखा है, क्यों ?
मांसाहारी पशु जैसे कुत्ता जीभ से पसीना टपकाता है। इसलिए हाॅफता रहता है। शाकाहारी पशुओं और मानव के बदन से पसीना टपकता है। मांसाहारी पशुओं की आंते काफी छोटी होती है ताकि मांस जल्दी ही पाखाने के रास्ते बाहर निकल जाए जबकि शाकाहारी जानवरों और मानव की आंते अनुपात में तीन गुनी बड़ी और ज्यादा घुमावदार होती है ताकि अन्न, फल, सब्जियों का रसा अच्छी तरह सोख ले। यदि आप मांसाहारी है तो आपने नोट किया होगा कि रेफ्रिजरेटर के निचले खाने में इतनी ठंडक होने के बावजूद मांस कुछ ही घंटों में सड़ने लगता है। फिर मानव शरीर की गर्मी में मांस के आंत में अटक-अटक चलने में इसकी क्या गति होती होगी, कभी सोचा आपने? वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि मांसाहारी पशुओं के आमाशय में जो तेजाब रिसता है वह शाकाहारी पशुओं और मानव के आमाशय में रिसने वाले तेजाब से बीस गुना ज्यादा तीखा होता है, ताकि मांस जल्दी गला सके। ऐसे तेजाब के अभाव में हमारे आमाशय में पड़े मांस की क्या हालत होती होेगी ?
भारत जैसे देश में, बहुसंख्यक आबादी किसी न किसी रोग से ग्रस्त है। हमारे शरीर में तरह-तरह की बीमारियां पल रही हैं, तो जो जानवर काटे जा रहे हैं उनके वातावरण, भोजन और रख-रखाव में जो नर्क से बदतर जिंदगी होती है, उससे कैसा मांस आप तक पहुंचता है? फिर आप तो जानते हैं कि भारत में कितना भ्रष्टाचार है। जिन भी इंस्पेक्टरों की ड्यूटी कसाईखानों में लगी होती है उनसे क्या आप राजा हरिशचन्द्र होने की उम्मीद कर सकते हैं? या वक्त के साथ-साथ चलने वाला होशियार आदमी। मतलब ये हुआ जो हाकिम यह देखने के लिए तैनात किए जाते हैं कि भयानक बीमारियों से घिरे हुए घायल या गंदे पशु मांस के लिए न काटे जाएं वो निरीक्षक ही अगर आंख बंद किए हुए हों तो आपकी क्या हालत हो रही है, आपको क्या पता ?
अक्सर तर्क दिया जाता है कि लोग मांसाहार नहीं करेंगे तो दुनिया में खाने की कमी पड़ जाएगी। पर क्या कभी सोचा आपने कि व्हेल मछली, हाथी, ऊॅट व जिराफ से बड़े कोई जानवर हैं? ये कभी भूखे पेट नहीं सोते।
अमरीका के अर्थशास्त्रियों ने आंकड़ों से सिद्ध कर दिया है कि एक बकरा कटने से पहले जितना अन्न व सब्जी खाता है उससे एक परिवार का महीने भर का भोजन पूरा हो सकता है। जबकि काटने के बाद एक बकरे को एक परिवार दो-तीन वक्त में खा-पीकर निपटा लेता है। दुनिया भर में मांसाहारियों के लिए जानवरों को खिला-पिला कर मोटा किया जाता है और फिर काट दिया जाता है। यह तो आपको पता ही होगा कि विकसित देशों में गेंहू, सब्जियां, मक्खन, पनीर, पानी के जहाजों में भर कर दूर समुद्र में फेंका जाता है ताकि दुनिया में इनके दाम नीचे न गिरें। कहावत है कि दुनिया में सबके लिए काफी अन्न है पर लालचियों के लिए फिर भी कम है।
अमेरिकन मैडिकल एसोसिएशन के जर्नल ने यह छापा था कि अमरीका में दिल के दौरों से ग्रस्त होने वालों में 97 फीसदी मांसाहारी हैं। यानी शाकाहारी लोगों को दिल की बीमारी काफी कम होने की संभावना है। एक और मशहूर वैज्ञानिक शेलों रसेल ने 25 देशों के अध्ययन के बाद बताया कि इनमें से 19 देशों में कैंसर की मात्रा बहुत ज्यादा थी। यह सभी देश वो हैं जिनमें मांसाहार का प्रतिशत काफी ऊंचा है। एक भ्रांति है कि मांसाहार से ज्यादा ताकत मिलती है। हकीकत यह है कि मांस आधारित भोजन को पचाने में शरीर की बहुत ऊर्जा बेकार चली जाती है।
अब आते हैं शुद्ध विज्ञान पर। विज्ञान में एक सिद्धांत है कि हर क्रिया की समान और विपरीत प्रतिक्रिया होती है। ‘एवेरी एक्शन हैज इक्वल एंड अपोजित रिएक्शन‘। याद रखिए ‘एक्शन’ यानी हर क्रिया की, तो पशु वद्ध करने की भी समान और विपरीत प्रतिक्रिया होगी। सनातन धर्म के शास्त्रों में लिखा है कि जीव हत्या करने वाले को अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता है। शिकागो दुनियां की सबसे बड़ी मांस की कटाई और बिक्री वाला शहर है और दुनिया में सबसे ज्यादा मानव हत्याएं, चाकूबाजी और बलात्कार की वारदातें भी वहीं होते हैं।
भगवान् श्रीकृष्ण गीता का उपदेश देते हुए अर्जुन से कहते हैं-
पत्रम पुष्पम फलम तोयम यो मंे भक्त्या प्रयच्छति।
तदहम भक्त्युपह्तमश्रामि प्रयतातमनः।।
तदहम भक्त्युपह्तमश्रामि प्रयतातमनः।।
9वें अध्याय के इस 26वें श्लोक में भगवान् अपने शुद्ध भक्त और सखा अर्जुन से ये कहते हैं कि यदि कोई प्रेम तथा भक्ति से मुझे पत्र, पुष्प, फल या जल प्रदान करता है तो मैं उसे स्वीकार करता हूं। याद रखिए भगवान् अन्न, फल ही स्वीकार करते हैं। पर आपको ऐसे तमाम लोग मिलेंगे जो कृष्ण, महावीर की अराधना का दावा करेंगे और जम कर मांसाहार करेंगे। यह जानते हुए भी कि हिंदु शास्त्रों में इसके भयंकर परिणाम बताए गए हैं।
ईसाई-धर्म की पवित्र-पुस्तक बाईबिल में ईसामसीह जीवों पर करूणा करने का आदेश देते हैं और मांसाहार को मना करते हैं। हर धर्म में दूसरे को कष्ट पहुंचाना पाप कर्म बताया गया है। तो जिस जीव को भोजन के लिए काटा जाए उसे क्या चाकू की धार गर्दन पर चलवाने में आनंद आता होगा ? फिर मांस का उत्पादन कितना महंगा है उसका एक उदाहरण है कि एक किलो मांस बनकर तैयार होने में कुदरत का पचास हजार लीटर पानी खर्च होता है और एक किलो गेंहू कुल आठ लीटर पानी में ही उपज जाता है।
गुरू ग्रंथ साहिब में गुरू श्री नानक देव कहते हैं कि यदि किसी घायल लाश के खून का छींटा तुम्हारे कपड़ों पर पड़ जाता है तो तुम कपड़ा बदल लेते हो। पर जब लाश को अपने शरीर के अंदर ले जाते हो तो तुम्हारा शरीर कितना गंदा हो जाता है, कभी सोचा सिंह साहब?
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