Monday, December 28, 2015

प्रधानमंत्री, आडवाणीजी और हवाला कांड

 पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अरूण जेटली से संबंधित भ्रष्टाचार के आरोपों को यह कहकर खारिज कर दिया कि जेटली भी उसी तरह इन आरोपों से मुक्त हो जाएंगे, जैसे आडवाणीजी हवाला कांड में मुक्त हो गए थे। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि आडवाणी जी को कांग्रेसियों ने हवाला कांड में फंसाया था। शायद प्रधानमंत्रीजी को ब्रिफिंग देने वालों ने ठीक तथ्य नहीं बताए, वरना वे ऐसा न कहते। यह इतफाक है कि 16 जनवरी, 1996 को भारत के इतिहास में पहली बार दर्जनों केंद्रीय मंत्री (कांग्रेस), विपक्ष के नेता (भाजपा, जनता दल आदि) व आला अफसर जैन हवाला कांड में सीबीआई द्वारा आरोपित हुए थे और उन्हें अपने पदों से इस्तीफे देने पड़े थे। अगले 2 हफ्तों में इस ऐतिहासिक घटना को पूरे 20 वर्ष हो जाएंगे।

इस दौरान भ्रष्टाचार, आतंकवाद और हवाला कारोबार घटने की बजाय कई गुना बढ़ा है। इसलिए 16 जनवरी, 2016 को पूरे देश में यह चिंतन होना चाहिए कि आखिर सीबीआई व अदालतों के बावजूद ऐसा क्यों हो रहा है ? रही बात आडवाणी जी के आरोपमुक्त होने की, तो उन्हें किन हालातों में आरोपमुक्त किया गया, यह बात उस समय से ऐसे मामलों पर निगाह रखने वाले राजनेता, पत्रकार, वकील और अधिकारी सब जानते हैं। नई पीढ़ी के लिए भी इसे जानना मुश्किल नहीं है। www.vineetnarain.net बेवसाइट पर जाकर मेरी हिंदी पुस्तक ‘भ्रष्टाचार, आतंकवाद और हवाला कारोबार’ पढ़ी जा सकती है। जिसमें इस कांड को लेकर सर्वोच्च न्यायपालिका तक के अनैतिक आचरण का सप्रमाण खुलासा किया गया है। फिर भी कुछ बिंदु यहां याद दिलाना उचित रहेगा। हवाला कांड को अपनी कालचक्र वीडियो मैग्जीन के माध्यम से (उन दिनों निजी टीवी चैनल नहीं थे) उजागर करने का जोखिम 1993 में मैंने ही उठाया था और पूरी व्यवस्था के विरूद्ध अकेले शंखनाद कर किया था। इसमें सबसे ज्यादा तो कांग्रेस के केंद्रीय मंत्री, राज्यों के मुख्यमंत्री व राज्यपाल आरोपित हुए थे, तो फिर ये कांग्रेस का षडयंत्र कैसे हो सकता है ?

 आडवाणीजी उन दिनों लोकसभा में विपक्ष के नेता थे। अगर यह षडयंत्र था, तो उन्होंने 1993 से 1996 के बीच (जब यह केस चलता रहा) लोकसभा में इस पर आवाज क्यों नहीं उठाई ? इससे पहले बोफोर्स को लेकर तो वे बहुत आक्रामक रहे थे। हवाला कांड तो कश्मीर के हिजबुल मुजाहिद्दीन नामक आतंकवादी संगठन के दुबई और लंदन से आने वाले अवैध धन के हवाला कारोबार से जुड़ा मामला था। फिर आडवाणीजी ने देशद्रोह के इस कांड की ईमानदारी से जांच करवाने की मांग कभी क्यों नहीं की ? 1997 और 1999 में मैंने सार्वजनिक रूप से दो प्रश्नावलियां जारी की थीं, जिन्हें उक्त पुस्तक में भी पढ़ा जा सकता है। इन प्रश्नावलियों में मैंने आडवाणीजी से देशद्रोह के इस कांड पर खतरनाक चुप्पी साधने की वजह पूछी थी। जिनका उत्तर उन्होंने आजतक नहीं दिया। यह बात दूसरी है कि उन्हीं के सहयोगी और हवाला कांड में आरोपित हुए दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना ने खुलकर स्वीकार किया था कि यह पैसा उन्होंने और आडवाणीजी ने सुरेंद्र जैन से चुनावों के लिए लिया। आज की चुनावी व्यवस्था ही ऐसी है कि अगर आप मोटा पैसा नहीं खर्च कर सकते तो आप चुनाव नहीं जीत सकते। अगर आडवाणीजी भी यह बात सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर लेते, तो उनको इतना सबकुछ न झेलना पड़ता। दूसरी तरफ देवीलाल, शरद यादव और राजेश पाइलट ने सार्वजनिक रूप से यह मान लिया था कि उनके नाम के आगे जैन बंधुओं के खातों में जो रकम लिखी है, वह सही है और उन्होंने जैन बंधुओं से यह ली थी। इस तरह जैन डायरी (अवैध खाते) की विश्वसनीयता भी स्थापित हो जाती है, क्योंकि उसमें वही दर्ज है, जो वास्तव में लेन-देन हुआ।

 इस केस का एक रोचक पहलु और भी है। जरा-जरा सी बात पर संसद को हफ्तों न चलने देने वाले सांसद हर घोटाले पर जमकर शोर मचाते रहे हैं। पर, हवाला कांड को लेकर किसी भी दल ने आजतक कोई आंदोलन नहीं चलाया और न ही संसद में हंगामा किया। क्योंकि जब हर बड़े दल के नेता इस कांड में शामिल हैं, तो कौन किसके खिलाफ शोर मचाता ? इसलिए हवाला कांड आजतक उजागर हुए सभी घोटालों से अलग और बड़ा है। क्योंकि इसमें देश के महत्वपूर्ण राजनेता शामिल रहे हैं।

 इस केस का एक और रोचक पहलु यह है कि 1993 में जब मैंने इस मामले को लेकर सीबीआई की निष्क्रियता के विरूद्ध सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की थी, तब मुख्य न्यायाधीश जे.एस. वर्मा ने इसी जैन डायरी की महत्ता बताते हुए कहा था कि, ‘ये इतने बड़े सुबूत हैं कि अगर इसके बावजूद हम आरोपियों को सजा न दे पाएं, तो हमें देश की अदालतें बंद कर देनी चाहिए।’ पर जब 1996 में जस्टिस जेएस वर्मा को आरोपियों द्वारा प्रभावित कर लिया गया, तो वही अदालत कहने लगी कि इस केस में कोई सुबूत ही नहीं है। क्योंकि जस्टिस वर्मा के जैन बंधुओं से मुकदमे के दौरान हुए मेलजोल का भी खुलासा मैंने 1997 में किया था और जस्टिम वर्मा को यह मानना पड़ा कि मेरे आरोप सही थे और वे उस व्यक्ति से मिलते रहे थे। 

 कुल मिलाकर यह मामला बहुत गंभीर है। क्योंकि यह राष्ट्र की सुरक्षा और आतंकवाद से जुड़ा है, फिर भी इसकी आजतक जांच नहीं हुई। आज भी हर नेता इसका नाम लेने से बचता है। इसी से इसकी महत्ता सिद्ध होती है। उपरोक्त तथ्यों को जानने के बाद और मेरी पुस्तक आॅनलाइन पढ़ने के बाद आप खुद ही फैसला कर लेंगे कि आडवाणजी न तो किसी षडयंत्र में फंसाए गए थे और न ही उनको नैतिक रूप से आरोपमुक्त किया गया था। आशा है कि प्रधानमंत्रीजी अपनी भूल सुधार करेंगे। इतना ही नहीं भ्रष्टाचार के विरूद्ध युद्ध लड़ने की शपथ लेकर इस पद पर आरूढ़ हुए मोदीजी से देश की अपेक्षा है कि जैन हवाला कांड की ईमानदार जांच के आदेश दें, ताकि दूध का दूध और पानी का पानी सामने आ जाए। आपराधिक मामलों में जब तक केस पूरी तरह बंद न हो जाए, दोबारा खोला जा सकता है। जैन हवाला केस आजतक ईमानदार जांच का इंतजार कर रहा है।
 

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