Sunday, November 2, 2008

राज ठाकरे जवाब दो

Rajasthan patrika 2-11-2008
बिहार के लोग मुम्बई में छठ का पर्व नहीं मना सकते। ये कहना था राज ठाकरे का। उनका मानना है कि हर त्यौहार उसी प्रान्त में मनाया जाना चाहिए जहाँ का वो है। जब उनसे एक पत्रकार सम्मेलन में पूछा गया कि गणेश चतुर्थी तो सारा देश मनाता है तो क्या बाकी देश को यह त्यौहार नहीं मनाना चाहिए? वे हँस कर टाल गए। राज ठाकरे को यह लाइन भारी पड़ेगी। अगर मराठी मानस व मराठी संस्कृति पर उनका इतना ही आग्रह है तो सबसे पहले उन्हें अपनी पेंट और कमीज उतार देनी चाहिए और धारण करनी चाहिए मराठी धोती, कुर्ता और पगड़ी। दूसरा उनको अपनी पत्नी श्रीमती शर्मिला ठाकरे को भी समझाना चाहिए कि वे सलवार कुर्ता पहनकर मुम्बई में न डोलें। क्योंकि ये तो पंजाब की भेषभूषा है। उन्हें तो मराठी लांगदार साड़ी पहनकर ही बाहर निकलना चाहिए। सारे देश ने टीवी पर देखा कि जब राज ठाकरे एक रात के लिए गिरफ्तार हुए तो उनकी पत्नी सलवार कमीज में उनसे मिलने पहुँचीं।

राज ठाकरे को देश को यह भी बताना चाहिए कि क्या उनके बच्चे बचपन से आज तक मराठी भाषी स्कूल में पड़े हैं या किसी दूसरी संस्कृति में पले बढ़े हैं? राज ठाकरे को इस बात का भी जवाब देना चाहिए कि अपने चाचा से मौहब्बत के दिनों में उन्होंने जो विश्वविख्यात पाॅप गायक माइकल जैक्सन का शो मुम्बई में करवाया था, क्या वो मराठी संस्कृति का ही हिस्सा था?

राज ठाकरे को ईमानदारी से यह भी बताना पड़ेगा कि वे सुबह नाश्ते से रात के खाने तक कहीं गैर मराठी भोजन तो नहीं करते? कहीं ऐसा तो नहीं कि उन्हें दक्षिण भारत का इडली दोसा, लखनऊ का बटर चिकन, कश्मीर का रूमाली कबाब, हैदराबाद की बिरयानी, कलकत्ता का रोसोगुल्ला और पंजाब का आलू परांठा बेहद पसंद हो? अगर ऐसा है तो उन्हें यह सब त्यागने का व्रत लेना पड़ेगा और इस बात की सरेआम माफी मांगनी पड़ेगी कि आज तक वे दूसरे राज्यों के व्यंजन क्यों खाते रहे हैं। उन्हें संकल्प लेना पड़ेगा कि वे और उनका परिवार अब शेष जीवन केवल श्रीखण्ड और पूरनपूरी जैसे मराठी व्यजंन खाकर ही रहेंगे। देश नहीं विदेश के भी किसी व्यंजन को कभी नहीं चखेंगे। क्योंकि ऐसा करने से उनका मराठी मानस खतरे में पड़ जायेगा।

राज ठाकरे को अपने स्कूल और यूनिवर्सिटी के सर्टिफिकेट भी खंगाल कर देखने होंगे। कहीं ऐसा न हो कि ये प्रमाण पत्र औपनिवेशिक भाषा अंगे्रजी में लिखे हों? मराठी मानस के स्वाभिमान के लिए तो यह बहुत ही शर्मनाक बात होगी। उन्हें अपने ऐसे सभी प्रमाण पत्र फाड़कर रद्दी में फेंक देने चाहिए या फिर एक जनसभा में खेद प्रकट करना चाहिए कि वे ऐसे संस्थानों में पढ़े जहाँ उन्हें मराठी संस्कृति की उपेक्षा करनी पड़ी।

आज राज ठाकरे छठ मनाने को मना कर रहे हैं। कल बोलेंगे कि गोविन्दा आला रे भी मुम्बई में नहीं मनाया जायेगा क्योंकि भगवान कृष्ण का जन्म तो उत्तर प्रदेश में हुआ और राजपाट गुजरात में। फिर उनका जन्मदिन में मुम्बई में क्यों मनाया जाए? इतना ही नहीं उन्हें लता मंगेशकर, आशा भोंसले जैसे गायक कलाकारों के उन सब गानों को प्रतिबन्धित करना होगा जो उन्होंने गैर मराठी भाषा में गाए और विश्वभर में ख्याति अर्जित की। राज ठाकरे को फिर तो यह भी अपील करनी होगी कि गैर मराठी राज्यों में महान राजा छत्रपति शिवाजी महाराज के विषय में विद्यालयों में कुछ न पढ़ाया जाये। उनकी मूर्तियाँ इन राज्यों से हटा दी जाऐं। यह सूची बहुत लम्बी हो सकती है।

राज ठाकरे का यह सरासर अहमकपन है। ऐसा विष बोकर वे भारतीय समाज में नाहक वैमनस्य और तनाव पैदा कर रहे हैं। एक ऐसा तनाव जो आने वाले समय में भारत को बहुत कमजोर कर देगा। फिर मराठा स्वाभिमान भी अछूता नहीं रहेगा। दरअसल अपने दिल में राज ठाकरे भी जानते हैं कि जो वो कर रहे हैं वह सही नहीं है। केवल मराठी संस्कृति के शिकंजे में कसे रहकर ठाकरे परिवार भी साँस नहीं ले सकता। सांस्कृतिक विविधता जीवन को रसमय बनाती है। भारत विविधता का देश रहा है। यहाँ अनेक संस्कृतियाँ आकर एक हो गईं। आज भारत के हर कोने में शेष भारत का प्रतिनिधित्व इतनी प्रमुखता से दिखाई देता है कि लगता ही नहीं हम दूसरे क्षेत्र में हैं। उदाहरण के तौर पर दक्षिण भारत के लोग शेष भारत में अपना खाना खा सकते हैं। इसी तरह पंजाब का परांठा भारत के हर शहर व कस्बे में मिलता है। स्थानीय पहचान के साथ शेष भारत से जुड़कर हम सांस्कृतिक रूप से और भी समृद्ध होते हैं। इस तरह के अहमकपन से राजनेता अपना भविष्य तो बना सकते हैं पर करोड़ों का वर्तमान बिगाड़ देते हैं। राज ठाकरे  भी कुछ ऐसा ही खतरनाक खेल खेल रहे हैं। पर इस खेल में वे अकेले नहीं हैं। हर क्षेत्रीय नेता आगे बढ़ने के लिए ऐसे शगूफे छोड़ता रहा है। मंजिल हासिल होने के बाद न तो ये धार बचती है और न ही ये आग। सब पहले जैसा हो जाता है। पर ये चुनावी दौर है। वोटों के धु्रवीकरण के लिए राज ठाकरे को इस

बेहतर हथियार मिल नहीं सकता। इसलिए कोई लाख समझाये या निन्दा करे, वे अगले चुनाव तक तो मानने वाले नहीं। कानून ऐसे लोगों का कुछ बिगाड़ नहीं पाता, ये वे अच्छी तरह जानते हैं। इसलिए जेल जाने से नहीं डरते। वे तो चाहते हैं कि सरकार उन्हें जेल भेजे और वे जिन्दा शहीद बनकर अपनी राजनैतिक रोटियाँ सेकें। ऐसे में महाराष्ट्र की जनता को ही समझदारी दिखानी होगी और राज ठाकरे को ये बताना होगा कि अगर वे वास्तव में मराठी मानस का भला चाहते हैं तो उसकी जिन्दगी में बुनियादी बदलाव लाने के तरीके सुझाऐं, उनकी और बाकी प्रान्तों में रह रहे मराठी मानसों की जिन्दगी खतरे में न डालें। आजादी की लड़ाई में और समाज परिवर्तन के आन्दोलनों में महाराष्ट्र की महत्वपूर्ण ऐतिहासिक भूमिका रही है। उस महान विरासत को भूलकर रातों-रात पूरा मराठी समाज राज ठाकरे की तरह अहमक और वहशियाना नहीं हो सकता। इसलिए ये पागलपन जल्द ही खत्म हो जायेगा।


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