Sunday, May 18, 2008

बयानों से नहीं रुकेगा आतंकवाद

Rajasthan Patrika 18-05-2008
  जयपुर की तरह देश में जब कभी जेहादी हिंसा होती है तो जांच के बाद यही हकीकत सामने आती है कि इन जेहादियों को आर्थिक मदद बाहर के मुल्कों से मिलती है। मदद की ये रकम हवाला के जरिए हिन्दुस्तान की सरहदों के भीतर पहुंचती है। जह इसका बंटवारा जेहादियों, राजनेताओं और आलाअफसरों के बीच होता है। इस कारोबार में मध्यमवर्गीय व्यापारी से लेकर बड़े उद्योगपतियों तक शामिल होते है। इसलिए कभी कोई जांच अपराध की जड़ तक नहीं पहुंचती। जो पकड़े जाते हैं वो हवाला कारोबार के प्यादे भर होते है। शह और मात का खेल खेलने वाले बड़े खिलाड़ी कभी बेनकाब नही होते। इसलिए इन प्यादों को भी बेफिक्री होती है कि मारे गए तो जन्नत मिलेगी और अगर पकड़े गये तो कुछ समय के कानूनी झंझट के बाद मुक्ति मिल जाएगी। इसलिए ये बेखौफ इस खेल में कूद पड़ते हैं। पर हमारी सरकारों को क्या हो गया है। भारत के हजारों लाखों लोग जेहादी हमलks में मारे जा चुके हैं। अरबों रूपये की संपत्ति तबाह हो चुकी है। पर सरकार और उसकी खुफिया जांच ऐजेंसियां असली मुल्जिमों को आज तक पकड़ नही पायी। क्या ये ऐजेंसियां नाकाबिल है या इन्हें जानबूझ कर पंगु बना दिया गया है।
एक विश्वसनीय सूचना के अनुसार मुंबई पुलिस ने देश में तेजी से आ रहे नकली नोटों के एक बड़े कांड की जांच की तो हैरत में आ गई। क्योंकि पता ये चला कि लाखों करोड़ रुपए के नकली नोट देश में लाने के इस कारोबार में महाराष्ट्र के एक प्रभावशाली नेता का हाथ है। विश्वस्त सूत्रों के अनुसार जब इस नेता के खिलाफ कारवाही करने की मांग शासन में बैठे आला हाकिमों के पास पहुंची तो फाइल पर लिख दिया गया एनएफए यानी आगे कोई कारवाही न की जाए। इससे ज्यादा खतरनाक बात क्या हो सकती है कि कोई बाहरी ताकत देश में जेहादी खून खराबा करवाने के लिए मोटी रकम और नकली नोट छापकर भेज रही है और सरकार उसकी जांच भी नहीं करवाना चाहती। यह पहली बार नहीं हुआ। 1993 में उजागर हुए जैन हवाला कांड से लेकर आज तक जेहादियों और हवाला कारोबारियों को पकड़ने के सारे प्रयास खोखले और नाटकीय ही सिद्ध हुए है। कोई हुक्मरान नहीं चाहता कि हवाला कारोबारी पकड़े जाएं और उस आग में वो भी झुलस जाएं। इसलिए हवाला कारोबार भी पनपता है, हुक्मरान भी पनपते हैं और आतंकवाद भी। मारा जाता है तो आम इंसान चाहे वो अहमदाबाद के श्री स्वामीनारायण मंदिर में मारा जाए, या बनारस के संकट मोचन मंदिर में या जयपुर के हनुमान मंदिर में।
नकली नोटों के कारोबार ने और हवाला कारोबारियों ने हिन्दुस्थान की अर्थव्यवस्था में घुन लगा दिया है। अंदर ही अंदर ये खोखली होती जा रही है। पर किसी को चिंता नहीं। इसका सबसे ज्यादा असर आम आदमी की जिंदगी पर पड़ रहा है। नकली नोटों ने झूठी मांग पैदा कर दी है। एक उदाहरण काफी होगा। एक मध्यमवर्गीय व्यक्ति जीवन भर की बचत का 10-12 लाख रूपया लेकर अपने लिए एक आशियाना खरीदने जाता है तो पता चलता है कि कोई दूसरा ड्योढ़ी कीमत देकर उसे हाथों-हाथ खरीद ले गया। आज देश में अचल संपत्ति के तेजी से बढ़ते दामों के पीछे यही अवैध कारोबार है। खुफिया ऐजेंसियों के स्रोत बताते हैं कि जेहादी और देशद्रोही ऐसे अवैध धन से देशभर में तेजी से अचल संपत्तियां खरीद रहे हैं। यदि जांच ऐजेंसियां चाहें तो इस तथ्य की पुष्टि भी आसानी से हो सकती है। अगर आयकर ऐजेंसियां धर पकड़ करना चाहें तो भी कोई मुश्किल नहीं आएगी। पर ऐसे कदम उठाकर बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधें।
एक के बाद एक गृहमंत्री आतंकवाद के बारे में श्वेत पत्र लाने की घोषणायें करता आया है। पर यह श्वेत पत्र आज तक जारी नहीं हुआ। संसद में हर मुद्दे पर बहस होती है। शोर मचता है। पर हवाला कांडों की जांच की मांग कोई दल नहीं करता, कम्युनिस्ट भी नहीं। साफ जाहिर है कि हवाला के पैसों से अपनी राजनीति और कारोबार चलाने वाले ये बड़े नेता क्यों ऐसा आत्मघाती कदम उठायेंगे ? इसलिए जयपुर में कितना ही बड़ा हत्या का तांडव क्यों न मचा हो। कितने ही घर बर्बाद हुए हो। कितने ही बड़े नेताओं ने आकर भावावेशपूर्ण बयान क्यों न जारी किए हों पर बदलेगा कुछ नहीं। फिर कहीं ऐसे ही बम फटेंगे। ऐसे ही निरीह लोग मरेंगे। ऐसे ही मीडिया दर्दनाक दृश्य दिखायेगा और ऐसे ही आरोपों प्रत्यारोपों की बौछार होगी। पर कुछ नहीं होगा। क्योंकि कोई बदलना ही नहीं चाहता।
अगर सब राजनैतिक दल ईमानदारी से आतंकवाद का मुकाबला करना चाहते हैं तो उन्हें तीन काम करने होंगे। पहला: सीबीआई के कब्रगाह में दफन हवाला संबंधी सभी केसों की ईमानदार और तेज जांच की मांग करना। दूसरा: आतंकवादियों को खत्म करने के लिए मध्ययुगीन कानूनों को लागू करना। जैसे कुरान शरीफ में बताए गए हैं। हिंसा करने वाले को कोई मुरव्वत नहीं। तीसरा: जेहादियों को पनाह देने वाले शहरों और मुहल्लों में सेना से सघन तलाशी अभियान चलवाना। जिससे अवैध जखीरा बाहर आ सके। जो राजनेता ये करने को राजी है और दबी जबान से नहीं बल्कि सिंह गर्जन के साथ ये मांग देश के आगे रखता है वही सच्चे मायनों में जनता का हमदर्द है और जनता को आतंकवाद से राहत दिला सकता है। दूसरा कोई नहीं। जनता को अपने विधायकों और सांसदों पर दबाव बना कर ऐसा करने की मांग करनी चाहिए।

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