Friday, November 28, 2003

स्टैम्प घोटाले से हर आम आदमी भयभीत



आस्ट्रेलिया के मेलबाॅर्न शहर से एसबीएस रेडियो की न्यूज प्रोड्यूसर हर हफ्ते शुक्रवार को फोन पर मुझसे भारत के घटनाक्रम की रिपोर्ट लेती हैं और इसे सोमवार को आस्ट्रेलिया में प्रसारित करती हैं। पिछले कई वर्षों से ये सिलसिला जारी है। आस्ट्रेलिया में रहने वाले भारतीयों के बीच यह कार्यक्रम काफी लोकप्रिय है। भारत में जब भी कोई बड़ा घोटाला होता है तो वे उसके बारे में सवाल पूछना नहीं भूलतीं। पिछले हफ्ते उन्होंने मुझसे मुंबई के स्टैम्प घोटाले के बारे में अपनी शैली में प्रश्न किया, ‘विनीत जी यह स्टैम्प घोटाला क्या है ?’ मैंने रिकार्ड होते हुए इंटरव्यू को बीच में रोक कर उनसे कहा कि आप इस सवाल को फिर से पूछिए कि, स्टैम्प घोटाले का लोगों के जीवन पर क्या असर पड़ेगा ? सच ही तो है कि ये घोटाला बाकी सब घोटालों से अलग है यूं तो हर घोटाला अपनी कोई ने कोई विशेषता लिए हुए होता है। जैसे बोफोर्स, चारा, हवाला, यूरिया,  प्रतिभूति, झामुमो रिश्वत कांड, पर स्टैम्प घोटाले ने तो लोगों का सरकार पर से रिश्वास ही हिला कर रख दिया है। इस घोटाले के प्रभाव का आकलन फिलहाल मुंबई के बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों के मुख्यालयों में ही किया जा रहा है। आम आदमी अभी इसका असर महसूस नहीं कर रहा। पर जैसे-जैसे इसकी परते खुलती जाएंगी वैसे-वैसे लोगों में दहशत फैलती जाएगी।

कारण बिलकुल साफ है। दूसरे सभी घोटालों में जनता के पैसे हजम किए गए और राष्ट्रहितों से समझौता किया गया। पर स्टैम्प घोटाले ने तो देश के करोड़ इकरारनामों को संदेह के घरे में लाकर रख दिया है। चाहे वह इकरारनामा संपत्ति की खरीद-फरोक्त का हो या दो व्यावसायिक कंपनियों के बीच व्यापारिक समझौते का हो या पति-पत्नी के बीच तलाक का हो या दिवंगत माता-पिता की वसीयत के रूप में हो या किसी कंपनी की साझेदारी लेने संबंधी हो। ऐसा कौन सा इकरारनामा है जिसमें स्टैम्प पेपर का प्रयोग नहीं होता ? हर उस बात के लिए जिसका रिकार्ड रखना जरूरी हो या उस घटना को कानूनी स्वीकृति दिलानी हो तो फैसले स्टैम्प पेपर  पर ही लिख कर उनको अदालत में दाखिल किया जाता है या रजिस्ट्रार आफिस में उनका पंजीकरण कराया जाता है। 

जरा सोचिए अगर किसी के पिता वसीयत अपने चारो बेटे के नाम कर गए और उनका वसीयतनामा जिस स्टैम्प पेपर पर लिखा गया उसके बारे में पता चले कि वो मुंबई के अबदुल करीम लाडा साहेब तेलगी की नकली प्रिटिंग प्रेस में छपा था, तो उस वसीयतनामे की वैधता को कोई भी बेटा चुनौती देकर बाकी सभी भाइयों को मुसिबत में डाल सकता है। कल्पना कीजिए कि आपने कोई संपत्ति खरीदी और जैसाकि होता है उसकी कीमत चैक और नकद दोनो तरह से चुकाई और अब बेचने वाला कहे कि जिस इकरारनामे पर बिक्री का सौदा रजिस्टर्ड हुआ था वह स्टैम्प पेपर नकली है। इसलिए सौदा रद्द हो गया। तो क्या आपके पैरों के नीचे से जमीन नहीं खिसक जाएगी? अगर किसी महिला ने श्वसुराल के अत्याचारों से तंग आकर तलाक लिया हो और बहुत लंबी लड़ाई के बाद उसे पति की संपत्ति में से कुछ हिस्सा मिला हो। अब पता चले कि तलाक की शर्तों को जिस स्टैम्प पेपर पर लिखा गया था वो फर्जी था और उस तलाकशुदा का पति इसी आधार पर उस फैसले को रद्द मान ले, तो वो बेचारी किसके दरवाजे पर जाकर न्याय की भीख मांगेगी ? ये तो हुई आम लोगांे की जिंदगी में स्टैम्प घोटाले के असर की बात। पर औद्योगिक जगत में तो मामला और भी संगीन हो जाता है। मान लीजिए किसी कंपनी ने एक दूसरी कंपनी के साथ एक बड़ा व्यापारिक अनुबंध किया और सैकड़ों करोड़ रूपया उस कंपनी को दिया। जिसके बदले में उसे वस्तुएं या सेवाएं आदि लेने का काम अभी पूरा भी नहीं हुआ और पता चले की अनुबंध नकली स्टैम्प  पेपर पर हुआ था तो सारा का सारा कारोबार खटाई में पड़ जाएगा। बड़े वकीलों को मोटी-मोटी फीस देकर औद्योगिक जगत में रोज हजारों किस्म के अनुबंध स्टैम्प पेपरों पर किए जाते हंैं। जबसे मुंबई का स्टैम्प घोटाला प्रकाश में आया है तब से देश की आर्थिक राजधानी में सब सकते में हैं और एक अप्रत्याशित भय से पूरी तरह भयभीत हैं। ऐसा नहीं है कि तेलगी के स्टैम्प घोटाले की चपेट में केवल मुबंई शहर आया हो। अब तक की जांच से पता चला है कि उसका जाल पूरे महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, दिल्ली और चंडीगढ़ तक फैला है। यानी इन राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में पिछले 8 वर्षों से कचहरियों में जो स्टैम्प पेपर खरीदे व बेचे जा रहे थे उनमें भारी तादाद में नकील स्टैम्प पेपरों की थी। इन सभी राज्यों के सभी कानूनी इकरारनामे अब संदेह के घेरे में आ चुके हैं। कभी भी किसी भी इकरारनामें को लेकर कहीं भी कोई भी चुनौती दे सकता है और संबंधित लोगों को भारी मुसीबत में डाल सकता है। ये बेहद खतरनाक बात है। इससे लोगों का विश्वास भारत सरकार में पूरी तरह हिल जाएगा। इसीलिए वित्त मंत्री जसवंत सिंह ने आनन-फानन में बयान दे डाला कि 1998 से 2002 तक के बीच किए गए सभी इकरारनामे वैध करने पर विचार किया जाएगा।

जाहिर है इतना बड़ा तंत्र तेलगी ने एक रात में खड़ा नहीं कर लिया। नासिक की सरकारी प्रिंटिंग प्रेस से छापे की पुरानी मशीने हासिल करने से लेकर देश को लगभग 35 हजार करोड़ रूपए का चूना लगाने वाला तेलगी काफी होशियारी से चला। उसने राजनीति, प्रशासन और पुलिस के तमाम आला लोगों को इसमें साझेदार बनाया। यह हमारे शासन के नैतिक पतन का वीभत्स चेहरा है। अभी तो महाराष्ट्र के कुछ नेता ही पकड़े गए हैं जिनमें वहां की इंका सरकार के लोग भी शामिल हैं। बावजूद इसके भाजपा या शिवसेना इस मामले पर ज्यादा शोर नहीं मचा रही हैं। नासिक की प्रिटिंग प्रेस भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के अधीन है। जहां भारत के नोट भी छपते हैं। इस प्रेस से जुडे़ आला अफसरों की तेलगी से सांठ-गांठ के बिना ये कारोबार पनप नहीं सकता था। इसलिए भारत सरकार के वित्त मंत्रालय और गृह मंत्रालय की भी इस मामले में पूरी जवाबदेही बनती है।  अगर इसकी ईमानदारी से जांच होगी, जिसकी संभावना न के बराबर है, तो देश के बड़े-बड़े राजनैतिक दिग्गज और आला अफसर इसकी चपेट में आ जाएंगे। इसलिए जिस तरह कश्मीर के आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन को विदेशों से आ रही अवैध वित्तीय मदद के तमाम सबूतों के बावजूद जैन हवाला कांड की जांच की मांग न तो इंका के नेताओं ने की और न भाजपा के, क्योंकि दोनों ही इसमें शामिल थे, उसी तरह इस कांड को भी पूरी तरह दबा देने की साजिश रची जाएगी। ये बड़ी भयावह स्थिति है। 

स्टैम्प पेपर छापना या नोट  छापना सरकार का काम है। कागज के एक टुकड़,े जिसकी कीमत चार आने से ज्यादा नहीं होती, उस पर जब सरकार एक हजार रूपए का नोट या एक हजार रूपए का स्टैम्प छाप देती है तो वही चार आने का टुकड़ा एक हजारा रूपए का बिकता है। इस विश्वास के साथ कि आम आदमी जो ये एक हजार रूपया दे रहा है वो सरकार के खजाने में जा रहा है और ऐसे हजारों रूपए के स्टैम्प लेकर लोग करोड़ों रूपए के इकरारनामें लिखते हैं


अगर स्टैम्प पेपर ही नकली होेंगे, जैसा कि अब सिद्ध हो गया है तो देश के गांव-गांव में सरकार के प्रति अविश्वास फैल जाएगा। लोगों के मन में भारी आसुरक्षा और भय व्याप्त हो जाएगा। जनता का विश्वास खो देने वाली सरकार या व्यवस्था चल नहीं सकती। वो ध्वस्त हो जाती है। हो सकता है कि हमारे दुश्मनों ने देश की सरकार के प्र्रति जनता का विश्वास खत्म करने को ही नकली नोटों और नकली स्टैम्प छापने के काम की साजिश रची हो। पर यह आरोप लगा कर मौजूदा हुक्मरान अपनी जवाबदेही से बच नहीं सकते है। क्योंकि कोई भी साजिश तब तक कामयाब नहीं हो सकती जब तक हमारी पुलिस, खुफिया एजेंसी और सत्ताधीश अपने इमान को गिरवी रख कर करोड़ों रूपए कमाने के लालच में देश की अस्मिता का नंगा सौदा करने को तैयार न हों। उन्होंने ये सौदा किया है तभी स्टैम्प घोटाला इस हद तक फैला हुआ है। अब भगवान ही इस देश की रक्षा करें।

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