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Sunday, April 17, 2011

जनलोकपाल विधेयक की सीमाऐं

Rajasthan Patrika 17 Apr 2011
जनलोकपाल विधेयक को तैयार करने वाली समिति की बैठकें होना शुरू हो गयीं हैं। साथ ही इस समिति के सदस्यों और उनके विचारों पर कई ओर से सवाल खड़े किए जा रहे हैं। जहाँ आन्दोलनकारी इस विधेयक को पारित कराने के लिए दृढ़ संकल्प लिये हुए हैं, वहीं राजनैतिक माहौल इसके विरूद्ध बन रहा है। हमें इन दोनों ही पक्षों का निष्पक्ष मूल्यांकन करना चाहिए। 

जहाँ तक जनलोकपाल विधेयक को लाने की बात है तो इस पर देशव्यापी बहस की जरूरत है। 40 बरस पहले जब आजादी नई-नई मिली थी, तब सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार का अंश नगण्य था। उच्च पदों पर बैठने वाले लोग चरित्रवान थे और समाज में भ्रष्टाचार के प्रति घृणा का भाव था। इसलिए तब अगर लोकपाल विधेयक पारित हो जाता तो हालात शायद इतने न बिगड़ते। पर आज यह विधेयक अपनी सार्थकता खो चुका है। जब देश की न्यायपालिका, सी.बी.आई., आयकर विभाग, पुलिस तंत्र आदि मिलकर भी भ्रष्टाचारियों को पकड़ नहीं पाते, उन्हें सजा नहीं दिलवा पाते तो एक अकेला लोकपाल कौन-सा तीर मार लेगा? लोकपाल क्या भारत के मुख्य न्यायाधीश से ज्यादा ताकतवर होगा? भारत के मुख्य न्यायाधीश को आज भी यह शक्ति प्राप्त है कि वह देश के प्रधानमंत्री को जेल भेज सकता है। उसका आदेश कानून बन जाता है जबकि लोकपाल को ऐसा कोई अधिकार नही होगा।

पर चिंता की बात यह है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश के पद पर भी एक के बाद एक कई भ्रष्ट आचरण वाले व्यक्ति बैठ चुके हैं। फिर लोकपाल कौन-से वैकुण्ठ से ढूंढ कर लाया जायेगा? ऐसी कौन-सी चयन समिति होगी जो इस बात की गारण्टी कर सके कि उनके द्वारा चुना गया व्यक्ति गलत आचरण नहीं करेगा? फिर लोकपाल शिकायत भी लेगा, जाँच भी करायेगा और सजा भी देगा, ऐसी मांग जन लोकपाल विधेयक में की जा रही है। क्या ऐसी व्यवस्था बनाना सम्भव है, जिसमें एक व्यक्ति को इतने सारे अधिकार दे दिए जायें?

महत्वपूर्ण बात यह भी है कि भ्रष्टाचार केवल राजनेताओं, अफसरों और न्यायपालिका तक ही सीमित नहीं, इसकी जड़ें काफी फैल चुकी हैं। जन लोकपाल विधेयक कैंसर का इलाज सिरदर्द की गोली से करने जैसा है। ऐसा काफी लोगों का मानना है।

जनलोकपाल विधेयक पर बहस हो, यह तो इस विचार के हित की बात है। पर अटपटी बात यह है कि अन्ना हजारे के धरने को अचानक मिली इस आशातीत सफलता से देश की राजनैतिक बिरादरी में हड़कम्प मच गया है। यू.पी.ए. के नेताओं से लेकर विपक्ष के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी तक अन्ना के विरूद्ध कड़ी प्रतिक्रियाऐं व्यक्त कर रहे हैं। राजनेताओं का यह व्यवहार उचित और समय के अनुकूल नहीं है। इस तरह की घटनाऐं जब बिना किसी पूर्व सूचना के होती हैं, तो उसे दैव इच्छा मानना चाहिए। परमशक्ति या प्रकृति, जो भी कहंें, समय पर ऐसी चेतावनियाँ देती रहती हैं। जिसे समझना चाहिए। सुनामी, भूकम्प, टोरनाडो और मौसम में तीखे बदलाव, इस बात की चेतावनी है कि हम अपनी पृथ्वी, सागर और आकाश से अविवेकपूर्ण व्यवहार कर रहे हैं। इसी तरह देशभर के लोगों का अन्ना के समर्थन में एक साथ जुट जाना और शोर मचाना, इस बात की चेतावनी है कि देश की जनता भ्रष्टाचार को अब और बर्दाश्त नहीं करना चाहती। अगर हमारे राजनेता इस पर तीखी प्रतिक्रिया करेंगे तो जनता और नेतृत्व के बीच संघर्ष बढ़ेगा, टकराव होगा और अराजकता भी फैल सकती है। अगर वे संजीदगी से इस चेतावनी को समझने का प्रयास करेंगे और जनता के आक्रोश का समाधान ढूढेंगे तो उन्हें किसी तरह का भय भी नहीं रहेगा और समाज और देश भी ठीक रास्ते पर आगे बढ़ेगा। इसलिए अन्ना का विरोध नहीं, सम्मान करना चाहिए।

महाराष्ट्र के रालेगाँव सिद्धि के एक वयोवृद्ध गाँधीवादी, निष्काम सेवी अन्ना हजारे जो कल तक केवल महाराष्ट्र सरकार के भ्रष्टाचार के विरूद्ध बिगुल फूंकते रहे थे, आज रातों-रात पूरे भारत के सितारे बन गये हैं। देश के हर कोने से अन्ना हजारे के समर्थन में शहरी मध्यम वर्ग ने आवाज उठायी है। यही वो वर्ग है जो मीडिया से प्रभावित होता है और मीडिया प्रायः इसी वर्ग को ध्यान में रखकर मुद्दे उठाता है।

जबसे अन्ना का धरना सफल हुआ है, तबसे दिल्ली के गलियारों में यह चर्चा है कि अन्ना को यू.पी.ए. सरकार ने प्रायोजित करके धरने पर बैठाया। क्योंकि वह गत् दो वर्षों से बाबा रामदेव के हमलों से तिलमिला गयी थी। इसलिए वह अन्ना हजारे को सामने लाकर बाबा रामदेव के आन्दोलन की हवा निकालनी चाहती थी। जो कुछ लोगों की नजर में निकल भी गयी है। बाबा रामदेव के अनुयायियों को भी इस बात पर आश्चर्य है कि धरने के शुरू के तीन दिन भारत माता के चित्र के सामने वन्दे मात्रम के नारे लगाने वाली भीड़ अचानक हट गई और मंच व जनता के बीच साम्यवादी नारे ‘इंक्लाब जिंदाबाद’ लगने लगे। उनका भी यह आरोप है कि इस धरने ने बाबा रामदेव के आन्दोलन का मंच छीन लिया।

इस विवाद में न पड़कर, जो देश के लिए आवश्यक है, उस पर ध्यान देने की जरूरत है। बाबा रामदेव हों, अन्ना हजारे हों या भ्रष्टाचार से लड़ने वाले देश के दूसरे योद्धा हों, समय की माँग है कि सब एकजुट होकर भ्रष्टाचार के विरूद्ध एक जंग छेड़ें और समाज को इस हद तक बदलें कि हमारा बाकी जीवन और हमारी आने वाली पीढ़ियाँ भ्रष्ट आचरण करने के लिए मज़बूर न हों।

जरूरत इस बात की है कि न्यायपालिका और पुलिस तंत्र में आ गयी खामियों और गिरावट को दूर करवाने का माहौल बनाया जाये। भ्रष्टाचार से लड़ने वाले सभी लोग साझे मंच से देशवासियों को बतायें कि वे अपने इर्द-गिर्द हो रहे भ्रष्टाचार पर कैसे निगाह रखें और जाँच एजेंसियों और न्यायपालिका पर कैसे दबाव बनायें कि भ्रष्ट आचरण करने वाले बच न सकें? यह ठोस और स्थायी प्रक्रिया होगी। इससे समाज में बदलाव आयेगा। एक लोकपाल लाकर बैठा देने से समाज नहीं बदलेगा। इस बात की पूरी सम्भावना है कि इस नई प्रस्तावित संस्था का भी वही हश्र हो, जो केन्द्रीय सतर्कता आयोग का हुआ। हमें सही दिशा में सोचना और आगे बढ़ना है व जनता के आक्रोश को उस दिशा में ले जाना है, जहाँ भ्रष्टाचार रूपी कैंसर का हल निकल सके।