Monday, October 21, 2019

राम जन्मभूमि विवाद: क्या फैसला आयेगा ?

सर्वोच्च न्यायालय में सबसे लंबा चला मुकदमा अब फैसले के इंतजार में है। अदालत फैसला 17 नंबवर को आऐगा। दोनों पक्ष दिल थामकर इसका इंतजार कर रहे हैं। यहां इस केस में दोनों पक्षों द्वारा दिये तर्क-वितर्काें का मैं कोई मूल्यांकन नहीं करूँगा। ये अधिकार तो माननीय सर्वोच्च न्यायालय का है। जाहिर सी बात है कि फैसला जिसके पक्ष में आएगा, दूसरा पक्ष उसका विरोध करेगा। यह भी निश्चित है कि अगर फैसला हिंदूओं के हक में आता है, तो मुसलमानों को उत्तेजित और आन्दोलित करने का भरसक प्रयास उनके राजनेताओं द्वारा किया जाएगा। अगर फैसला मुसलमानों के पक्ष में आता है, तो हिंदू भी सड़कों पर उतर आऐंगे। दोनों ही स्थितियाँ समाज के लिए अच्छी नहीं होंगी। पर जैसा कि 1990 से मैं और मेरे जैसे अनेकों निष्पक्ष पत्रकार लिखते और बोलते आऐ हैं कि जब तक अयोध्या, काशी और मथुरा में हमारे सबसे पवित्र तीर्थस्थलों पर से मस्जिदें नहीं हटेंगी, तब तक दोनों पक्षों के बीच में सद्भाव ही नहीं सकता। 

मैं ब्रजवासी हूँ। ब्रजवासी होने के नाते स्वाभाविक रूप से श्रीकृष्ण भक्त हूँ और जब से होश संभाला है, तब से श्रीकृष्ण जन्मस्थान मथुरा के दर्शन करने जाता रहा हूँ। हर बार वहां खड़ी विशाल मस्जिद को देखकर मन में एक चुभन होती है और उस क्षण की याद ताजा हो जाती है, जब वहां स्थित भव्य देवालय को आक्रांताओं ने तोड़कर मस्जिद चिनी थी। हम उस दृश्य के साक्षी नहीं है, पर इतिहास पढ़कर और सुनकर कल्पना करते हैं, तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि हमारे आराध्य की जन्मभूमि पर जिस समय उस भव्य मंदिर को तोड़ा जा रहा होगा, तो वहां मौजूद भक्तों, संतों और ब्रजवासियों कोे कितनी मानसिक यातना हुई होगी। यह भाव मेरी आने वाली पीढ़ियों को भी वैसा ही होगा जैसा हमारी पीढ़ी या हमसे पिछली पीढ़ियों को होता आया है। वह भी तब जबकि हम धर्मान्ध या कट्टरवादी नहीं हैं और दूसरे धर्मों का भी सम्मान करना हमें हमारे माता-पिता ने बचपन से सिखाया है। पर अपने हिंदू धर्म के प्रति हमारी गहरी आस्था है। इसलिए अयोध्या ही नहीं, हम तो मथुरा और काशी से भी इन मस्जिदों को हटाना चाहते हैं। आशा करते हैं कि ऊपर भगवान और नीचे इस देश के शासक सदियों की हमारी इस पीड़ा को शीघ्र दूर करेंगे।

इसलिए मैं बार-बार अपने मुसलमान भाईयों से बड़ी विनम्रता से यही निवेदन करता आया हूं कि वे इस पीड़ा को समझे और भविष्य में आपसी सौहार्द् का वातावरण बनाने के लिए स्वयं ही हिंदू धर्म की इन तीन दिव्य स्थलों से अपनी मस्जिदों को ससम्मान दूसरी जगह ले जाएं। तुर्की की राजधानी इस्तानबुल में मध्य युग की एक ऐतिहासिक इमारत जिसेसोफिया मस्जिदकहते थे, मौजूद है। दरअसल ये एक भव्य चर्च था, जिसे मुस्लिम शासकों ने जबरन कब्जा कर मस्जिद बना दिया था। पर तुर्की के दूरदृष्टि वाले आधुनिक शासकों ने इसकी संवेदनशीलता को समझा और उसे मुसलमानों की इबादत के लिए बंद कर दिया। इतना ही नहीं मुस्लिम आक्रंताओं ने यीशू मसीह के जीवन से संबंधित दीवारों पर जो विशाल भव्य चित्र बने थे, उन पर कई सदियों पहले पलस्तर करके उन्हें छिपा दिया था। पर अब वह सब हटा दिया गया है औरसोफिया चर्चजनता के दर्शनार्थ खोल दिया गया है। जहाँ जाकर आपको मस्जिद होने का कोई प्रमाण नहीं मिलता। ये उस देश में हुआ, जो मुस्लिम देश है। तो भारत में, जहाँ हिंदू धर्म की परंपरा इस्लाम से 4000 वर्ष से भी पहले की है और जहाँ की बहुसख्यंक आबादी हिंदू है, वहाँ ये क्यों नहीं हो सकता


अगर अदालत का फैसला हिंदूओं के पक्ष में आता है, तो उन्हें संयम बरतना चाहिए। हर्ष और उत्साह के अतिरेक में ऐसा कुछ करे जिससे समाज में वैमनस्य फैले और हिंसक संघर्ष हो। बल्कि मुस्लिम समाज को आश्वासन देना चाहिए कि वे अयोध्या में उनकी नई मस्जिद के निर्माण में तन, मन और धन से सहयोग करेंगे। अगर अदालत बहुसंख्यक हिंदूओं की भावना और वकीलों के तर्क को दरकिनार कर फैसला मुसलमानों के पक्ष में दे देती है, तो इसे अपनी कानूनी जीत मानकर, मुसलमानों को एक उदार भाई की तरह हिंदूओं को राम जन्मभूमि सौंप देनी चाहिए। यह कहते हुए कि हम कानून की लड़ाई जीत गये, पर अब हम आपका दिल जीतने का काम करेंगे। उम्मीद की जानी चाहिए कि फैसला जो भी आऐ, समाज में सौहार्द बना रहे और बहुसंख्यक हिंदूओं की आस्था के इतने बड़े केंद्र पर भविष्य में तनाव की जगह भजन और भक्ति का वातावरण बने। 

Monday, October 7, 2019

प्रधानमंत्री के ‘जल शक्ति अभियान’ को कैसे सफल बनाये?

देश में बढ़ते जल संकट से निपटने के लिए प्रधानमंत्री जी के अति महत्वपूर्ण ‘जल शक्ति अभियान’ की शुरूआत जुलाई 2019 में की भी। जिसका उद्देश्य जल संरक्षण और सबके लिए स्वच्छ पेयजल की आपूत्र्ति करना है। ‘स्वच्छता अभियान’ व ‘प्लास्टिक मुक्त भारत’  की ही तरह यह भी एक अति महत्वपूर्णं कदम है। जिसका क्रियान्वयन करने में देश के हर नागरिक, सामाजिक कार्यकर्ता, प्रशासनिक अधिकारी और राजनेताओं को ईमानदारी और निष्ठा से सहयोग करना चाहिए। जिससे बढ़ते जल संकट से निजात पा सके। 
आजादी के बाद से आजतक यही होता आया है कि बड़ी-बड़ी योजनाऐं सद्इच्छा से और देश को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से घोषित की जाती है। पर जैसा 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कहा था कि, ‘‘दिल्ली से चले 100 रूपये में से केवल 14 रूपये ही खर्च होते हैं, शेष रास्ते में भ्रष्टाचार की बलि चढ़ जाते हैं।’’ इस स्थिति में आज भी कोई अंतर नजर नहीं आ रहा। प्रधानमंत्री जी ने केंद्र सरकार के स्तर तक दलाली और भ्रष्टाचार को बिल्कुल खत्म कर दिया है। किंतु जिला और ग्रामीण स्तर पर कोई बदलाव नहीं पाया है। यह एक ऐसा नग्न सत्य है, जिसे बिना राग-द्वेष के कोई भी आम नागरिक सिद्ध कर सकता है। 
एक उदाहरण से यह बात हम ‘जल शक्ति अभियान’ के संदर्भ में देखे। जिसकी धज्जियाँ ‘ब्रज तीर्थ विकास परिषद’ के उपाध्यक्ष शैलजाकांत मिश्रा के निर्देशन में मथुरा प्रशासन खुलेआम उड़ा रहा है और आर्थिक मंदी से जूझते भारत के सीमित संसाधनों को भ्रष्टाचार की बलि चढ़ा रहा है। मथुरा के सभी अखबारों में गत 2 हफ्तों से यह खबर छप रही है कि मथुरा प्रशासन ने जिले के 1000 से ज्यादा कुंडों और सरोवरों को पिछले 3 महीने में खोदकर जल से भर दिया है। चूँकि हमारी संस्था ‘द ब्रज फाउंडेशन’ गत 17 वर्षों से ब्रज के दर्जनों पौराणिक कुंडो के जीर्णोद्धार का कार्य बिना किसी सरकारी आर्थिक मदद के निष्ठा से करती आ रही है, जिसके लिए हमें 6 बार ‘यूनेस्को’ समर्थित ‘कुंडों व सरोवरों के जीर्णोंद्धार के लिए भारत की सर्वश्रेष्ठ स्वयसेवी संस्था’ के अवाॅर्ड मिल चुके हैं। इसलिए जो लोग 1000 कुंड खोद चुकने का दावा कर रहे हैं, उनसे हम अपने कुछ अनुभवजन्य प्रश्न यहाँ पूछ रहे हैं, जिन पर योगी महाराज व मोदी जी को निष्पक्ष जाँच के आदेश देने चाहिए।
1. डिजिटल इंडिया के युग में क्या मथुरा प्रशासन ने हाल ही में खोदे गए इन 1000 कुंडों की सूची, वे किस ग्राम में स्थित हैं, खुदाई के पहले और बाद की इनकी तस्वीर और लागत की सूचना अपनी वेबसायट पर डाली है ? जिससे उस गांव के निवासी ये जान सकें कि उनके गांव का कुंड कब खुद गया और उस पर कितने दिन काम चला, कितने मजदूर लगे, कितनी ट्रैक्टर ट्रॉली लगीं, कितने अर्थमूवर्स मशीनें (जेसीबी) लगीं ? क्या इतनी जेसीबी मथुरा में एकसाथ उपलब्ध थीं ? अगर नहीं, तो कहाँ से कितने किराये पर मंगाई गईं ?
2. क्या मथुरा प्रशासन ने इसका हिसाब रखा है कि इतने बड़े खुदाई अभियान में कुंडों को कितने फुट गहरा खोदा गया ? कितने करोड़ टन मिट्टी निकली ? वो कहाँ बेची या डाली गयी ? या सैंकड़ों करोड़ रुपए की गीली मिट्टी रातों-रात हवा में उड़ गई ? हमारा हमेशा प्रयास रहा है कि हर कुंड की खुदाई इतनी गहरी की जाए कि उसके स्वाभाविक जल स्रोत खुल जाऐं। इसलिए हम औसतन 15 से 35 फुट गहरी खुदाई करते हैं। 
3. पूरे जिले के इतने बड़े खुदाई अभियान को शुरू करने से पहले क्या क्षेत्र के सभी कुंडों का व्यापक वैज्ञानिक सर्वेक्षण किया गया था ? जिससे उनके आकार, भूजल स्तर, जलसंग्रह क्षेत्र (कैचमेंट एरिया) उनमें गिरने वाले नालों को हटाने (डायवर्ट) की योजना आदि का अध्ययन किया गया ? अगर हाँ तो उसकी रिपोर्ट कहाँ है ? किस प्रफेशनल संस्था को इस काम पर लगाया गया ? कितने दिनों में उसके किन लोगों ने ये काम कब से कब तक किया ? उन्हें कितना भुगतान किया गया ? इसी से पता चल जाऐगा कि कार्य को कितनी गंभीरता से किया गया या कागजी खानापूत्र्ति की गई।
4. आदरणीय प्रधानमंत्री जी ने इस अभियान की शुरुआत जुलाई 2019 में की थी और 1000 कुंड खुद जाने का दावा प्रशासन ने सितम्बर 2019 के अंत में कर दिया । यानी तीन महीन में औसतन 14 कुंड रोजाना खोदे गए। इससे तो लगता है कि मथुरा प्रशासन ने कुंड खोदने में विश्व रिेकर्ड कायम कर दिया। वैसे हमारा अनुभव है वर्षाकाल में कुंडों की खुदाई का काम हो ही नहीं सकता। क्योंकि गीली मिट्टी पर जेसीबी मशीनें व ट्रैक्टर-ट्राॅली बार-बार फिसलती हैं, काम नहीं कर पातीं। इसके अलावा रोज-रोज बारिश होते ही खोदी गयी मिट्टी फिर से बहकर कुंड में चली जाती है। इससे सारी मेहनत और पैसा बर्बाद हो जाता है। इसलिए हम बरसात के बाद कुंड का पानी निकालकर उसे सूखने के लिए छोड़ देते हैं। फिर बरसात के 2 महीने बाद खुदाई शुरू करते हैं। इस तरह एक कुंड की खुदाई में द ब्रज फाउंडेशन की टीम को तीन साल तक लग जाते हैं। तब जाकर यह काम स्थायी होता है। आश्चर्य है कि मथुरा प्रशासन ने 3 से भी कम महीने में 1000 कुंड कैसे खोद डाले ?