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Monday, August 13, 2018

योगी आदित्यानाथ जी ध्यान दें!

पिछले दिनों जब उ.प्र. में निर्माण संबंधी हुई अनेक दुर्घटनाओं के बाद उ.प्र. के सिविल इंजीनियरों ने एक खुला पत्र मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी को संबोधित करते हुए लिखा। जिसका मसौदा निम्न प्रकार है-‘‘आज उत्तर प्रदेश में एक्सप्रेसवे धंस रहे हैं। बनारस में ब्रिज के बीम डिस्प्लेसड हो रहे हैं। सड़कों पर गढ्ढो के कारण दुर्घटनाएं हो रही हैं। नहरें टूट रही हैं। खेतों को समुचित पानी नहीं मिल पा रहा। बाँध पानी से लबालब भर नहीं पा रहे। किसी शहर का भी ड्रेनेज सही नहीं हैं। इन प्रोजेक्ट्स का पूरा फायदा लोगों को नहीं मिल पा रहा। शहरों के सीवर जाम हैं।  आखिर क्यों ? कभी किसी इंजीनयर से पूछा जाएगा या उन्हें केवल दण्डित किया जाएगा ? बच्चा भी 9 माह  पेट में पलता है तभी स्वस्थ पैदा होता है और आगे जीवन में स्वस्थ रहने की संभावना ज्यादा होती है। यहां तो इंजिनीयरों को बस डेट दी जाती है और फिर शुरू होता है समीक्षा - समीक्षा का टी 20 खेल। यह नही पूछा जाता की प्रोजेक्ट कब तक पूरा हो सकता है। दबाव होता है कि फलां तारीख तक प्रोजेक्ट पूरा हो जाए। ना तो मैनपावर मिलेगी ना आवश्यक सुविधाएं।

महाराज जी यह निर्माण का कार्य है। विध्वंस की तरह मत करवाइये। समय दीजिये। डी.पी.आर. बनाने में बहुत समय चाहिए होता है। एस्टीमेट बनाने में बहुत सारी जानकारियां चाहिए। दरों की एनालिसिस करना आसान काम नही है। कोई भी स्ट्रक्चर एक इंजीनयर के लिए उसकी कलात्मक अभिव्यक्ति है। उसका निर्माण एक सुखद पर पीड़ादायक घटना है। समय पूर्व प्रसव की तरह का व्यवहार किसी भी संरचना के साथ मत कीजिये। इंजिनीयरों ने राष्ट्र के विकास में बहुत योगदान दिया है। उनको पार्टी कार्यकताओं की हठधर्मिता के सहारे मत छोड़िये। नहीं तो कोई भी निर्माण मात्र विध्वंस का कारण ही बनेगा। विकास की आड़ में ठेकेदारी और जेब भरने का उपक्रम नही चलना चाहिए न।  ना तो भारत रत्न विश्वशरैया जी ने ना ही श्रीधरन जी ने दबाव में काम किया था। तभी उन्होंने मेट्रो जैसी धरोहरों का निर्माण किया।

हर राजनैतिक दल सत्तारूढ दल को भ्रष्टाचारी बताकर अपना चुनाव अभियान चलाता है और जनता से भ्रष्टाचारमुक्त शासन देने का वायदा करता है। पर हकीकत यह है कि हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और। ऐसा कभी नहीं सुना जाता कि किसी निर्माण कंपनी को उसके अनुभव और गुणवत्ता के आधार पर योनजाओं के क्रियान्वयन के लिए चुना जाए। यों चुनने की प्रक्रिया अब काफी पारदर्शी बना दी गई है। जिसमें ऑनलाईन निविदाऐं भरी जाती है और टैक्निकल व फायनेंसियल बिडिंग का तुलनात्मक अध्ययन करके ठेके आवंटित किये जाते हैं। पर ये सब भी एक नौटंकी से ज्यादा कुछ नहीं है। सरकार किसी भी दल की क्यों न हो, उसके मंत्री सत्ता में आते ही मोटी कमाई के तरीके खोजने लगते हैं और नौकरशाही के भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत से सभी परियोजनाऐं अपने चहेतों को दिलवाते हैं।’’

मंत्री के चहेते का मतलब होता है, जो मंत्री के घर जाकर निविदा दाखिल करने से पहले ही मंत्री को अग्रिम रूप से मोटी रकम देकर, इस बात को सुनिश्चित कर ले कि जो भी ठेका मिलेगा, वो उसे ही मिलेगा। इसके बाद निविदा की सारी प्रक्रिया एक ढकोसला मात्र होती है। और वही होता है जो, ‘जो मंजूरे मंत्री जी होता है’।

योगी जी जब सत्ता में आए थे, तो उन्होंने भी बहुत कोशिश की कि भ्रष्टाचारविहीन शासन दें। पर आज तक कुछ भी नहीं बदला। जो कुछ पहले चल रहा था। उससे और ज्यादा भ्रष्टाचार आज सार्वजनिक निर्माण के क्षेत्र में अनुभव किया जा रहा है। मैंने कई बार इस मुद्दे उठाया है कि भ्रष्टाचार का असली कारण ‘करप्शन इन डिजाईन’ होता है। यानि योजना बनाते समय ही मोटा पैसा खाने की व्यवस्था बना ली जाती है। जैसा उ.प्र. के पर्यटन विभाग में हमें अनुभव हुआ। जब उसने पिछले वर्ष ब्रज के 9 कुंडों के जीर्णोंद्धार का ठेका 77 करोड़ रूपये में उठा दिया। हमने इसका पुरजोर विरोध किया और परियोजना में तकनीकी खामिया उजागर की, तो अब यही काम मात्र 27 करोड़ रूपये में होने जा रहा है। यानि 50 करोड़ रूपया सीधे किसी की जेब में जाने वाले थे। इतना ही नहीं योगी जी ने बड़े प्रचार के साथ जिस ‘ब्रज तीर्थ विकास परिषद्’ की स्थापना की है, उसके मूल संविधान में छेड़छाड़ करके वर्तमान उपाध्यक्ष शैलजाकांत मिश्र ने उसे भारी भ्रष्टाचार करने के लिए सुगम बना दिया है। मूल संविधान में परिषद् में पर्यटन से संबंधित अनेक विशेषज्ञों को लेने का प्राविधान था, जिसे श्री मिश्रा ने बड़े गोपनीय तरीके से हटवाकर, ऐसी व्यवस्था बना ली कि अब किसी भी साधारण सामाजिक कार्यकर्ता या दलालनुमा व्यक्ति को बोर्ड में लाया जा सकता है। इसी तरह ‘सी.ई.ओ’ की ताकत भी इतनी बढ़ा दी कि अब कोई उन्हें ब्रज को बर्बाद करने से नहीं रोक सकता। केवल दो लोगों के अहमकपन से भगवान श्रीकृष्ण के ब्रज का विकास नियंत्रित हो गया है। जिसके निश्चित रूप से घातक परिणाम सामने आऐंगे और तब ये योगी सरकार के लिए ‘ताज कोरिडोर’ जैसा घोटाला खुलेगा।

अभी पिछले दिनों बनारस में निर्माणाधीन पुल की बीम गिरी और 18 लोग मर गऐ। आगरा में ‘रिंग रोड’ धंस गई। मथुरा के गोवर्धन रेलवे स्टेशन का नवनिर्मित चबूतरा बैठ गया। बस्ती जिले में पुल गिर गया। ऐसी दुर्घटनाऐं आए दिन हो रही है, पर सरकार कोई सबक नहीं ले रहीं। इससे उ.प्र. के मतदाताओं की जान जोखिम में पड़ गई है। पता नहीं कब, कहां, क्या हादसा हो जाऐ?

Monday, July 2, 2018

मगहर में प्रधानमंत्री मोदी का मजाक क्यों?

पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी, संत कबीर दास जी की समाधि दर्शन के लिए उ.प्र. के मगहर नामक स्थान पर गऐ थे। जहां उनके भाषण के कुछ अंशों के लेकर सोशल मीडिया में धर्मनिरपेक्ष लोग उनका मजाक उड़ा रहे हैं। इनका कहना है कि मोदी जी को इतिहास का ज्ञान नहीं है। इसीलिए उन्होंने अपने भाषण में कहा कि गुरुनानक देव  जी, बाबा गोरखनाथ जी और संत कबीरदास जी यहां साथ बैठकर धर्म पर चर्चा किया करते थे। मोदी आलोचक सोशल मीडिया पर लिख रहे हैं कि ‘बाबा गोरखनाथ का जन्म 10 वी शताब्दी में हुआ था। संत कबीर दास का जन्म 1398 में हुआ था और गुरुनानक जी का जन्म 1469 में हुआ था। उनका प्रश्न है? फिर कैसे ये सब साथ बैठकर धर्म चर्चा करते थे? मजाक के तौर पर ये लोग लिख रहे हैं कि ‘माना कि अंधेरा घना है, पर बेवकूफ बनाना कहाँ मना है’।

बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद’? अध्यात्म जगत की बातें अध्यात्म में रूचि रखने वाले और संतों के कृपा पात्र ही समझ सकते हैं। धर्म को अफीम बताने वाले नहीं। इस संदर्भ में मैं श्री नाभा जी कृत व भक्त समाज में अति आदरणीय ग्रंथ ‘भक्तमाल’ के प्रथम खंड से एक उदाहरण देकर ये बताने जा रहा हूं कि कैसे जो मोदी जी ने जो कहा, वह उनकी अज्ञानता नहीं बल्कि गहरी धार्मिक आस्था और ज्ञान का परिचायक है।

झांसी के पास ओरछा राज्य के नरेश के राजगुरू, शास्त्रों के प्रकांड पंडित पंडित श्री हरिराम व्यास जी का जन्म 16वीं सदी में हुआ था। बाद में ये ओरछा छोड़कर वृंदावन चले आए और श्री राधावल्लभ सम्प्रदाय के प्रमुख आचार्य श्रीहित हरिवंश जी महाराज से प्रभावित होकर उसी सम्प्रदाय में दीक्षित हुए। जिसमें भगवान श्रीराधाकृष्ण की निभृत निकुंज लीलाओं का गायन और साधना प्रमुख मानी गई है। इस सम्प्रदाय की मान्यतानुसार वृंदावन में भगवान श्रीराधाकृष्ण और गोपियों की रसमयी लीलाऐं आठोप्रहर निरंतर चलती रहती है। गहन साधना और तपश्चर्या के बाद रसिक संतजनों को इन रसमयी लीलाओं का दर्शन ऐसे ही होता है, जैसे भौतिक जगत का प्राणी टेलीवीजन के पर्दे पर फिल्म देखता है। इसे ‘अष्टायाम लीला दर्शन’ कहते हैं।

श्री हरिराम व्यास जी ने वृंदावन में रहकर घोर वैराग्य और तपश्चर्या से इस स्थिति को प्राप्त कर लिया था कि उन्हें समाधि में बैठकर आठों प्रहर की लीलाओं के दर्शन सहज ही हो जाया करते थे। इसलिए श्री हरिराम व्यास जी का स्थान राधावल्लभ सम्प्रदाय के महान रसिक संतों में अग्रणी माना जाता है।

भक्तमाल’ में वर्णन आया है कि एकबार श्री हरिराम व्यास जी यमुना तट पर समाधिस्थ होकर ‘अष्टायाम लीलाओं’ का दर्शन कर रहेे थे। तभी उनके मन में अचानक यह भाव आया कि जिस लीला रस का आस्वादन मैं सहजता से कर रहा हूं, वह रस संत कबीर दास जी को प्राप्त नहीं हुआ। ये विचार मन में आते ही उन्हें लीला दर्शन होना बंद हो गया। एक रसिक संत के लिए यह मरणासन्न जैसी स्थिति होती है। उनकी समाधि टूट गई, नेत्र खुल गये, अश्रु धारा प्रवाहित होने लगी और उनकी स्थिति जल बिन मछली जैसी हो गई। इस व्याकुलता में अधीर होकर, वे हित हरिवंश जी महाराज के पास गऐ और उनसे लीला दर्शन न होने का कारण पूछा। हित हरिवंश जी महाराज ने कहा कि अवश्य ही तुमसे कोई वैष्णव अपराध हुआ है। जाओ जाकर उसका चिंतन करो और जिसके प्रति अपराध हुआ है, उससे क्षमा याचना करो।

हरिराम व्यास जी पुनः यमुना तट पर आऐ और समाधिस्थ होकर अपराध बोध से चिंतन करने लगे कि उनसे किस संत के प्रति अपराध हुआ है। तब उन्हें ध्यान आया कि चूंकि कबीर दास जी ज्ञानमार्गीय संत थे, इसलिए व्यास जी के मन में ये भाव आ गया था कि कबीरदास जी को भगवान श्री राधाकृष्ण की अष्टायाम लीला के दर्शन का रस प्राप्त नहीं हुआ होगा। जो कि भक्ति मार्ग के रसिक संतों सहज ही हो जाता है। जैसे ही ये विचार आया, हरिराम व्यास जी ने अश्रुपूरित कातर नेत्रों से, दीनहीन भाव से संत कबीरदास जी के श्री चरणों में अपने अपराध की क्षमा याचना की।

व्यास जी यह देखकर आश्चर्यचकित हो गऐ कि संत कबीरदास जी उनके सामने ही यमुना जी से स्नान करके बाहर निकले और हरिराम व्यास जी से ‘राधे-राधे’ कहकर सत्संग करने बैठ गऐ। जबकि कबीरदास जी को पूर्णं समाधि लिए लगभग 150 वर्ष हो चुके थे। फिर ये कैसे संभव हुआ? हरिराम व्यास जी ने पुनः अपने अपराध की क्षमा मांगी और तब शायद उन्होंने ही यह पद रचा, ‘मैं तो जानी हरिपद रति नाहिं’। आज मैंने जाना कि मेरे हृदय में आज तक भगवान के श्रीचरणों के प्रति अनुराग ही उत्पन्न नहीं हुआ है। आज तक तो मैं यही मानता था कि हमारा ही सम्प्रदाय सर्वश्रेष्ठ है और हमारे जैसे ही रसिक संतों को निकुंज लीला के दर्शनों का सौभाग्य मिल पाता है। आज मेरा वह भ्रम टूट गया। आज पता चला कि प्रभु की सत्ता का विस्तार सम्प्रदायों में सीमाबद्ध नहीं है।

इसी तरह महावतार बाबाजी के शिष्य पूरी दुनिया में हैं और उनका विश्वास है और दावा है कि वे जब भी पुकारते हैं, बाबा आकर उन्हें दर्शन और निर्देश देते हैं। ऐसा हजारों वर्षों से उनके शिष्यों के साथ हो रहा है।

अब अगर नरेन्द्र भाई मोदी ने अपने इसी आध्यात्मिक ज्ञान और अनुभव को दृष्टिगत रखते हुए, यह कह दिया कि बाबा गोरखनाथ, संत कबीरदास और श्री गुरूनानक देव जी मगहर में एक साथ बैठकर धर्म चर्चा किया करते थे, तो इसमें गलत क्या है? हमारे देश का यही दुर्भाग्य है कि यवन और पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में हम अपनी सनातन संस्कृति को भूल गऐ हैं। उसमें हमारा विश्वास नहीं रह गया है और यही भारत के पतन का कारण है।

Monday, May 28, 2018

मोदी जी की साफ नीयत: सही विकास

राजनेताओं द्वारा जनता को नारे देकर, लुभाने का काम लंबे समय से चल रहा है। ‘जय जवान-जय किसान’, ‘गरीबी हटाओ’, ‘लोकतंत्र बचाओ’, ‘पार्टी विद् अ डिफरेंस’ व पिछले चुनाव में भाजपा का नारा था, ‘मोदी लाओ-देश बचाओ’। जब से मोदी जी सत्ता में आऐ हैं, भारत को परिवर्तन की ओर ले जाने के लिए उन्होंने बहुत सारे नये नारे दिये, जिनमें से एक है, ‘साफ नीयत-सही विकास’। पिछले 15 वर्षों से ब्रज क्षेत्र में धरोहरों के जीर्णोंद्धार व संरक्षण का काम करने के दौरान जिला स्तरीय, प्रांतीय व केन्द्रीय सरकार से बहुत मिलना-जुलना रहा है। उसी संदर्भ में इस नारे को परखेंगे।

भगवान श्रीराधाकृष्ण की लीलाओं से जुड़े पौराणिक कुण्डों, वनों और धरोहरों के जीर्णोंद्धार का जैसा काम ‘ब्रज फाउंडेशन’ ने बिना सरकारी आर्थिक मदद के किया, वैसा काम देश के 80 फीसदी राज्यों के पर्यटन विभाग नहीं कर पाये। यह कहना है-भारत के नीति आयोग के सीईओ. अमिताभ कांत का। इसी तरह  प्रधानमंत्री मोदी से लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री तक और देश के सभी प्रमुख संतों ने व लाखों ब्रजवासियों ने ब्रज फाउंडेशन द्वारा सजाये गये गोवर्धन के रूद्र कुंड, ऋणमोचन कुंड व संकर्षण कुंड, जैंत का जय कुंड व अजयवन, वृंदावन के ब्रह्म कुंड, सेवाकुंज व रामताल, मथुरा का कोईले घाट और बरसाना का गहवन वन आदि लाखों तीर्थयात्रियों का मन लुभाते हैं। अवैध कब्जाधारियों से लड़ने, इनकी गंदगी साफ करने और इनको बनाने में करोड़ों रूपया खर्च हुआ। जो देश के प्रमुख उद्योगपतियों जैसे- श्री कमल मोरारका, श्री अजय पीरामल, श्री राहुल बजाज, श्री रामेश्वर राव और अनेकों कम्पनियों ने अपने ‘सीएसआर. फंड’ से दान दिया। परंपरानुसार सभी दानदाताओं के नामों के शिलालेख, इन स्थलों पर लगाये गये हैं। पिछले दिनों योगी सरकार के एक छोटे अधिकारी ने अपने तुगलकी फरमान जारी कर, इन सभी शिलालेखों पर पेंट कर दिया। ऐसा काम ब्रज में औरंगजेब के बाद पहली बार हुआ। प्रदेश में जब सरकारे बदलती हैं, तो पिछली सरकार की बनाई ईमारतों या शिलालेखों को हाथ नहीं लगाते। चाहे वे विरोधी दल के ही क्यों न हों। पूरी दुनिया में इस तरह के शिलालेख लगाने की परंपरा बहुत पुरानी है। जिससे आनी वाली पीढ़ियां इतिहास जान सकें।
इस दुष्कृत्य के पीछे उन स्वार्थीतत्वों का हाथ है, जो ब्रज फाउंडेशन की सफलता से ईष्र्या करते रहे हैं। ब्रज फाउंडेशन ने मोदी जी के ‘सही नीयत-सही विकास’ और ’स्वच्छ भारत’ के नारे को शब्दसह चरितार्थ किया है। इस संस्था को छह बार भारत की ‘सर्वश्रेष्ठ वाटर एनजीओ’ होने का अवार्ड भी मिल चुका है। इन सार्वजनिक स्थलों का जीर्णोंद्धार करने से पहले मौजूदा कानून की सभी प्रक्रियाओं को पारदर्शी रूप से पूरा किया गया। जिला प्रशासन से लेकर प्रांत और केंद्र सरकार तक का प्रशासनिक सहयोग, इन परियोजनाओं को पूरा करने में बार-बार लिया गया। फिर भी ‘एनजीटी’ के एक सदस्य ने प्रमाणों को अनदेखा करते हुए संस्था को इन स्थलों के रख-रखाव से अलग कर दिया। ये आदेश भी दिया कि ‘ भविष्य में सारे कुंड सरकार बनाये’।  ब्रजवासियों का कहना है कि, ‘जो शासन गत 70 वर्ष में एक भी धरोहर का जीर्णोंद्धार व संरक्षण ब्रज फाउंडेशन द्वारा बनाई गई स्थलियों के सामने 10 गुनी लागत लगाकर 10 फीसदी भी नहीं कर पाया। वो जिला प्रशासन ब्रज के 800 सौ से भी ज्यादा वीरान और सूखे पड़े कुंडों को आज तक क्यों नहीं बना पाया?
उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग के अनुदान पर अब तक कम से कम 200 करोड़ रूपया पिछले 70 सालों में ब्रज में लग चुका होगा। बावजूद इसके उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग एक भी धरोहर को दिखाने लायक नहीं बना पाया। तो भविष्य में क्या कर पायेगा, उसका अनुमान लगाया जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय के ‘हिंचलाल तिवारी केस’ मामले में सब जिलाधिकारियों को अपने जिले के सभी कुंडों पर से कब्जे हटवाकर, उनका जीर्णोंद्धार करना था। पर आज तक इस आदेश का अनुपालन नहीं हुआ। यह सीधा सीधा अदालत की अवमानना का मामला है।
इससे भी गंभीर प्रश्न ये है कि एक तरफ तो भारत सरकार उद्योगपतियों से अपने सीएसआर फंड को समाज के कामों में लगाने के लिए आह्वान करती है और दूसरी तरफ उसी भाजपा के मुख्यमंत्री की जानकारी में ऐसा काम करने  वालों के नामों निशान तक मिटा दिये जाते हैं। ऐसे में कोई क्यों सेवा करने सामने आऐगा? नीयत साफ वाले और ठोस काम करने वाले लोगों को अपमानित किया जाऐ और खोखले और नाकारा सलाहकारों को लाखों रूपये फीस देकर, उनसे वाहियात् परियोजनाऐं बनवाई जाऐ और उन पर बिना सोचे समझे, पानी की तरह पैसा बहा दिया जाऐ। तो कैसे होगा सही विकास?
इस संदर्भ में एक और अनुभव बड़ा रोचक हुआ। उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग ने ब्रज के 9 कुंडों के जीर्णोंद्धार के लिए 77 करोड़ रूपये का ठेका लखनऊ के ठेकेदारों को दे दिया। जबकि हमने बढ़िया से बढ़िया कुंड बनाने में ढाई, तीन करोड़ रूपये से ज्यादा खर्च नहीं किया। हमारे विरोध पर ठेका निरस्त करना पड़ा और हमसे कार्य योजना मांगी। अब यही 9 कुंड मात्र 27 करोड़ रूपये में बनेंगे। जाहिर है कि योगी सरकार के मंत्रीं और अधिकारी इस एक परियोजना में 50 करोड़ रूपये हजम करने की तैयारी करे बैठे थे, जो हमारे हस्तक्षेप से बौखला गये और साजिश करके उन्होंने पिछले हफ्ते इन सारी धरोहरों पर कब्जा कर लिया। जबकि ब्रज फाउंडेशन वहां निःस्वार्थ भाव से बाग-बगीचे, मंदिर आदि की इतनी सुंदर सेवा कर रही थी कि हर आदमी उसे देखकर गद्गद् था। पिछले चार साल में केंद्र सरकार और पिछले सवा साल में योगी सरकार तमाम शोर-शराबे के बावजूद एक भी परियोजना नहीं बना पाई। इसका कारण है, भ्रष्ट नौकरशाही, राजनैतिक दलालों का हस्तक्षेप और नाकरा सलाहकारों से परियोजनाऐं बनवाना।
हमने कई बार प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव केंद्र सरकार के मंत्रियों व सचिवों और प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी और आला अफसरों के साथ बैठकें कर-करके प्रशासनिक व्यवस्था की खामियों को दूर करने के अनेक ठोस और व्यवहारिक सुझाव दिये। जिससे काम बेहतर और कलात्मक हो और लागत आधी से भी कम आए। पर कोई सुनने या बदलने को तैयार नहीं है। दावें और बातें बहुत बड़ी-बड़ी हो रही है, पर जिलास्तर पर हलातों में कोई बदलाव नहीं। बाकी प्रदेश को छोड़ो, भगवान श्रीकृष्ण, राम और शिव की भूमि में भी वही हाल है। दीवाली और होली मनाने से राजनैतिक प्रचाार तो मिल सकता है, पर जमीन पर ठोस काम नहीं होता है। ठोस काम होता है, ‘सही नीयत-सही विकास’ के नारे को अमल में लाने से। जो अभी तक कहीं दिखाई नहीं दे रहा है।

Monday, May 7, 2018

जैट ऐयरवेज के इतने घोटालें सामने आने पर भी सरकार मौन क्यों है ?

पिछले वर्ष से तीन लेखों में हमने देश की सबसे बड़ी निजी ऐयरलाईंस जैट ऐयरवेज और भारत सरकार के नागरिक उड्डयन मंत्रालय के भ्रष्ट अधिकारियों की सांठ-गांठ के बारे में बताया था। इस घोटाले के तार बहुत दूर तक जुड़े हुए हैं। वो चाहे यात्रियों की सुरक्षा की बात हो या देश की शान माने जाने वाले महाराजा एयर इंडिया की बिक्री की बात हो। ऐसे सभी घोटालों में जैट ऐयरवेज का किसी न किसी तरह से कोई न कोई हाथ जरूर है।
आश्चर्य की बात ये है कि इतने घोटाले सामने आने के बाद सत्ता के गलियारों और मीडिया में उफ तक नहीं हो रही। जबकि इस पर अब तक तूफान मच जाना चाहिए था। हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय की ‘एक्टिंग मुख्य न्यायाधीश’ न्यायमूर्ति गीता मित्तल व न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर की खंडपीठ ने नागरिक उड्ड्यन मंत्रालय, डीजीसीए व जैट ऐयरवेज को कालचक्र ब्यूरो के समाचार संपादक राजनीश कपूर की जनहित याचिका पर नोटिस दिया। उन तमाम आरोपों पर इन तीनों से जबाव तलब किया जो कालचक्र ने इनके विरुद्ध उजागर लिए हैं। याचिका में इन तीनों प्रतिवादियों पर सप्रमाण ऐसे कई संगीन आरोप लगे हैं, जिनकी जांच अगर निष्पक्ष रूप से होती है, तो इस मंत्रालय के कई वर्तमान व भूतपूर्व वरिष्ठ अधिकारी संकट में आ जाऐंगे।
इस याचिका का एक आरोप जैट ऐयरवेज के एक ऐसे अधिकारी, कैप्टन अजय सिंह के विरुद्ध  है, जो पहले जैट ऐयरवेज में उच्च पद पर आसीन था और दो साल के लिए उसे नागरिक उड्ड्यन मंत्रालय के अधीन डीजीसीए में संयुक्त सचिव के पद के बराबर नियुक्त किया गया था। यह बड़े आश्चर्य की बात है कि कालचक्र की आरटीआई के जबाव में डीजीसीए ने लिखा कि ‘उनके पास इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि कैप्टन अजय सिंह ने डीजीसीए के ‘सी.एफ.ओ.आई.’ के पद पर नियुक्त होने से पहले जैट ऐयरवेज में अपना त्याग पत्र दिया है या नहीं‘। कानून के जानकार इसे कन्फ्लिक्ट आफ इन्ट्रेस्ट’ मानते हैं। समय-समय पर कैप्टन अजय सिंह ने ‘सी.एफ.ओ.आई.’ के पद पर रहकर जैट ऐयरवेज को काफी फायदा पहुंचाया। जब कालचक्र ने एक अन्य आरटीआई में डीजीसीए से यह पूछा कि कैप्टन अजय सिंह ने ‘सी.एफ.ओ.आई.’ के पद से किस दिन इस्तीफा दिया? उसका इस्तीफा किस दिन मंजूर हुआ? उन्हें इस पद से किस दिन मुक्त किया गया? और इस्तीफा जमा करने व पद से मुक्त होने के बीच कैप्टन अजय सिंह ने डीजीसीए में जैट ऐयरवेज से संबंधित कितनी फाइलों का निस्तारण किया? जवाब में यह पता लगा कि इस्तीफा देने और पद से मुक्त होने के बीच कैप्टन सिंह ने जैट ऐयरवेज से संबंधित 66 फाइलों का निस्तारण किया। ये अनैतिक आचरण है।
दिल्ली उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीशा गीता मित्तल ने सुनवाई के दौरान इस बात पर सरकारी वकील को खूब लताड़ा और कहा कि ‘‘यदि यह बात सच है, तो यह काफी संगीन मामला है’’। यदि कोई निजी ऐयरलाईंस से आया हुआ व्यक्ति नागरिेक उड्ड्यन मंत्रालय में ‘सी.एफ.ओ.आई.’ के पद पर नियुक्त होता है, तो यह बात स्वाभाविक है कि उसकी वफादारी अपनी एयरलाइन्स के प्रति होगी न कि सरकार के प्रति। ‘सी.एफ.ओ.आई.’ का काम सभी एयरलाईंस के आपरेशंस की जांच करना व उनकी खामियां मिलने पर समुचित कार्यवाही करना होता है। 
इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता कि भारत के राष्ट्रीय कैरियर ‘एयर इंडिया’ को मुनाफे वाले रूट व समय न देकर  घाटे की ओर ढकेलने का काम यहीं से शुरू हुआ है। अब जब एयर इंडिया के विनिवेश की बात हो रही है, तो उसे खरीदने के लिए जैट ऐयरवेज ने भी दिलचस्पी दिखाई।
ये अलग बात है कि कालचक्र द्वारा दायर याचिका व लगभग 100 आरटीआई के चलते जैट ऐयरवेज ने एयर  इंडिया के विनिवेश में ‘‘काफी कड़े नियम व कानून‘‘ का हवाला देते हुए, अपना नाम वापिस ले लिया।
कालचक्र की याचिका पर नागरिक उड्डयन मंत्रालय, डीजीसीए व जैट एयरवेज को नोटिस की खबर, भारत की एक मुख्य समाचार ऐजेंसी ने चलाई लेकिन कुछ अखबारों को छोड़कर यह खबर सभी जगह दबाई गई। यह हमें हवाला कांड के दिनों की याद दिलाता है। जब हमारे आरोपों को राष्ट्रीय मीडिया ने गंभीरता से नहीं लिया था, लेकिन जब 1996 में 115 ताकतवर लोगों को भारत के इतिहास में पहली बार भ्रष्टाचार के मामले में चार्जशीट किया गया, तो पूरी दुनिया के मीडिया को इस पर लिखना पड़ा।
जेट के मामले में कालचक्र की याचिका पर हुए नोटिस को अब लगभग तीन हफ्ते हो चुके हैं और राष्ट्रीय मीडिया के कई ऐसे मित्रों ने हमसे इस मामले की पूरी जानकारी व याचिका की प्रति भी ले ली है और यह भरोसा दिलाया कि वे इस पर खबर जरूर करेंगे। पर उनकी खबर रुकवा दी गई।
पता चला है कि जैट ऐयरवेज के मालिक नरेश गोयल का ‘पी.आर.’ विभाग उन सभी को, जो जरा भी शोर मचाने की ताकत रखते हैं, मुफ्त की हवाई टिकट या अन्य प्रलोभन देकर, शांत कर देता है। अब वे व्यक्ति चाहे राजनीतिज्ञ हों, चाहे वकील या मीडिया के साथी, वो देर-सवेर इस सब के आगे घुटने टेक ही देते हैं। लेकिन ‘बकरे की मां कब तक खैर मानायेगी’। चूंकि आम भारतीय को आज भी न्यायपालिका पर पूरा विश्वास है और वो न्यायपालिका के समक्ष सभी तथ्यों को रखकर उसके फैसले का इंतजार करता है।  कालचक्र को भी न्यायपालिका से कुछ ऐसी ही उम्मीद है कि सभी दस्तावेज और आरोपों का मिलान करने के बाद, वह राष्ट्र हित में ही अपना फैसला सुनायेगी।

Monday, April 30, 2018

चीन नीति पर मोदी का कमाल

विपक्षी दल प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति को विफल बता कर सवाल खड़े कर रहे हैं। उनका आरोप है कि डोकलम में झटका झेलने के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी ने चीन को कड़क जबाव नहीं दिया। बल्कि एक के बाद एक मंत्रियों और अधिकारियों को चीन भेजकर और खुद अचानक वहां जाकर, यह संदेश दिया है कि भारत ने चीन के आगे घुटने टेक दिये हैं। विपक्षी दलों का यह भी आरोप है कि चीन ने नेपाल, भूटान, वर्मा, बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव व पाकिस्तान पर अपनी पकड़ मजबूत बनाकर भारत को चारों तरफ से घेर लिया है और इस तरह मोदी की पड़ोसी देशों के साथ विदेश नीति को विफल कर दिया है।
जबकि हकीकत यह है कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व में अजीत डोभाल, सुषमा स्वराज और निर्मला सीतारमन आदि ने भारत-चीन संबंधों के मामले में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है। आज जबकि चीन के राष्ट्रपति शी शिनफिंग दुनिया के सबसे ताकतवर नेता के रूप में स्थापित हो चुके हैं और आजीवन वहां राष्ट्रपति रहने वाले हैं, तो उनसे लड़कर भारत को कुछ मिलने वाला नहीं था। इसलिए उनसे मिलकर चलने में ही भलाई है, इसे प्रधानमंत्री ने तुरंत समझ लिया। वैसे भी चीन की ताकत आज दुनिया में बहुत ज्यादा बढ़ चुकी है। ऐसे में चीन को बंदर घुड़की दिखाने से काम बनने वाला नहीं था। 
औपचारिक शिखर सम्मेलन अनेक दबावों के बीच हुआ करते हैं। उसमें नौकरशाही की बड़ी भूमिका रहती है। संधि और घोषणाऐं करने का काफी दबाव रहता है। साझे बयानों को तैयार करने में ही काफी मशक्क्त करनी पड़ती है। जबकि अगर दो देशों के नेता पारस्परिक संबंध बना लें, तो बहुत सी कूटनीतिज्ञ समस्याऐं सुगमता से हल हो जाती है और उनके लिए नाहक वार्ताओं के दौर नहीं चलाने पड़ते। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पिछले वर्षों की विदेश नीति की सबसे बड़ी सफलता यह रही है कि उन्होंने दुनिया के लगभग हर देश के नेता से अपने व्यक्तिगत संबंध बना लिये हैं। अब वे कभी भी किसी से फोन पर सीधे बात कर सकते हैं। यही उन्होंने चीन जाकर किया।
भारत-चीन सीमा पर आए दिन चीनी फौज डोकलम जैसे उत्पात मचाती रही है। वहां की फौज सीधे कम्युनिस्ट पार्टी के निर्देश पर काम करती है। जिसे केवल सैन्य स्तर पर निपटना भारत के लिए आसान नहीं था। प्रधानमंत्री मोदी ने इस चीन यात्रा में एक नया अध्याय जोड़ा है। अब चीन की सेना और भारतीय सेना के अधिकारियों के बीच नियमित संवाद होता रहेगा। जिससे गफलत की गुंजाईश न रहे।
इसके साथ ही इस यात्रा से भारत-चीन संबंध खासी गति से विकसित हुआ है। इसी पर दोनों देशों का आर्थिक उदारीकरण और सुरक्षा व्यवस्था निर्भर करती है। चीन का व्यापार अमेरिका, यूरोप और भारत के साथ बहुत ज्यादा हैं, शेष विश्व के साथ उसका व्यापार घाटे का ही है। इस लिहाज से यदि चीन का भारत के साथ व्यापार बढ़त भारत-अमेरिका व्यापार से ज्यादा हो जाती है, तो फिर दिल्ली और बिजिंग को राजनीतिक मुद्दे अलग-अलग करने होंगे।
भारत और पाकिस्तान के मध्य चल रहे विवादों में चीन की भूमिका किसी न किसी तरह से हमेशा ही पाई जाती रही है। चीन ने पाकिस्तान के मिसाइल कार्यक्रमों को मदद देने का संकेत भी दिया था। चीन के सरकारी मीडिया ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने अपने एक संपादकीय में लिखा था कि यदि पश्चिमी देश भारत को एक परमाणु ताकत के रूप में स्वीकारते हैं और भारत तथा पाकिस्तान के बीच बढ़ती परमाणु होड़ के प्रति उदासीन रहते हैं, तो चीन चुप नहीं बैठेगा।
लेकिन अब ‘द्विपक्षीय मैत्री’ एव सहयोग संधि के बाद पाकिस्तान दबाव में आ जायेगा। भारत-चीन की मार्फत पाकिस्तान को आतंकवाद नियंत्रित करने के लिए मजबूर कर सकता है। साथ ही चीन को इस बात के लिए राजी कर सकता है कि वह महमूद अजहर को आतंकवादी घोषित किये जाने की अंतराष्ट्रीय मांग का विरोध न करें। साथ ही परमाणु शक्ति के मामलों में भारत और चीन के बीच में जो कई मूल मुद्दे अंतराष्ट्रीय स्तर पर उलझ रहे थे। उनका भी समाधान होने की संभावना है। जाहिर है कि अजित डोभाल ने इन परिस्थितियों से निपटने के लिए पर्दे के पीछे रहकर काफी मेहनत की है। इसके साथ ही चीन ने भारत को मुक्त व्यापार समझौते का सुझाव दिया है, ताकि दोनों एशियाई देशों के बीच संबंधों को व्यापक प्रोत्साहन दिया जा सके।
भारत और चीन संबंधों में सुधार दोनों ही देशों के हित में है। प्रश्न है कि  क्या यह सुधार भारत को अपनी सम्प्रभुता और सुरक्षा की कीमत चुकाकर करनी चाहिए? क्या चीन पर भरोसा किया जा सकता है कि भविष्य में वह धोखा नहीं देगा? उम्मीद के सहारे दुनिया टिकी है। बदलते अंतराष्ट्रीय परिदृश्य में दोनों देशों के लिए यही बेहतर है कि वे मिलकर चलें, जिससे एक बड़ी ताकत के रूप में उभरें। जिससे क्षेत्र का आर्थिक विकास भी तेजी से हो सकेगा।

Monday, March 12, 2018

क्या नागरिक उड्डयन मंत्रालय का भ्रष्टाचार दूर करेंगे सुरेश प्रभु ?

नागरिक उड्डयन मंत्रालय का कार्यभार सुरेश प्रभु को सौंप कर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने एक सकारात्मक संकेत दिया है| उल्लेखनीय है कि यह मंत्रालय पिछले एक दशक से भ्रष्टाचार में गले तक डूबा हुआ है | हमने कालचक्र समाचार ब्यूरो के माध्यम से इस मंत्रालय के अनेकों घोटाले उजागर किये और उन्हें सप्रमाण सीबीआई और केन्द्रीय सतर्कता आयोग को लिखित रूप से सौंपा और उम्मीद की कि वे इस मामले में केस दर्ज कर जांच करेंगे| लेकिन यह बड़ी चिंता और दुःख की बात है कि पिछले तीन साल में बार बार याद दिलाने के बावजूद इन घोटालों की जांच का कोई गम्भीर प्रयास इन एज्नेसियों द्वारा नहीं किया गया| जबकि भ्रष्टाचार की जांच करने की ज़िम्मेदारी इन्ही दो एजेंसियों की है | मजबूरन हमें अपने अंग्रेजी टेबलायड ‘कालचक्र’ में सारा विस्तृत विवरण छापना पड़ा| जिसे हमने सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट के न्यायधीशों, राष्ट्रिय मीडिया (टीवी व अखबार) के सभी प्रमुख लोगों, वरिष्ठ सरकारी अधिकारीयों, सभी सांसदों और कुछ महत्वपूर्ण लोगों को भेजा| आश्चर्य की बात है कि इस अखबार का वितरण हुए आज तीन हफ्ते से ज्यादा हो गए हैं और मीडिया में कोई हलचल नहीं हो रही| जो भी रिपोर्ट इसमें हमने तथ्यों के आधार पर छापी हैं वो हिला देने वाली हैं| जो भी इस अखबार को पढ़ रहा है वो हतप्रभ रह जाता है कि इतनी सारी जानकारी उस तक क्यों नहीं पहुंची | जबकि हर अखबार में प्रायः एक सम्वाददाता नागरिक उड्डयन मंत्रालय को कवर करने के लिए तैनात होता है | तो इन संवाददाताओं ने इतने वर्षों में क्या किया जो वो इन बातों को जनता के सामने नहीं ला सके ?
इसके अलावा संसद का सत्र भी चालू है पर अभी तक किसी भी सांसद ने इस मुद्दे को नहीं उठाया और शायद इस समबन्धित प्रश्न भी नहीं डाला है, आखिर क्यों ? उधर न्यायपालिका यदि चाहे तो इस मामले में ‘सुओ मोटो’ नोटिस जारी करके भारत सरकार से सारे दस्तावेज़ मंगा सकती है और सीबीआई को अपनी निगरानी में जांच करने के लिए निर्देशित कर सकती है | पर अभी तक यह भी नहीं हुआ है | चिंता की बात है कि कार्यपालिका अपना काम करेगी नहीं| विधायिका इस मुद्दे को उठाएगी नहीं| न्यायपालिका अपनी तरफ से पहल नहीं करेगी और मीडिया भी इस पर खामोश रहेगा | तो क्या भ्रष्टाचार को लेकर जो शोर टीवी चैनलों में रोज़ मचता है या अख़बारों में लेख लिखे जाते हैं वो सिर्फ एक नाटकबाज़ी होती है? इसमें कोई हकीकत नहीं है ? क्योंकि हकीकत तो तब होती जब इस तरह के बड़े मामले को लेकर हर संस्था उद्व्वेलित होती तब देश को इसकी जानकारी मिलती और दोषियों को सज़ा | लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हुआ है |
कारण खोजने पर पता चला कि जेट एयरवेज भारी तादाद में महत्वपूर्ण लोगों को धन, हवाई टिकट या एनी फायदे देती है | जिससे ज्यादातर लोगों मूह बंद किया जाता है | कुछ अपवाद भी होंगे जो अन्य कारणों से खामोश होंगे |
हमारे लिए ये कोई नया अनुभव नहीं है| 1993 में जब हमने जैन डायरी हवाला काण्ड का भांडा फोड़ किया था तो अगले दो ढाई वर्ष तक हम अदालत में लड़ाई लड़ते रहे और साथ ही क्षेत्रीय अख़बारों व पर्चों के माध्यम से अपनी बात जनता तक पहुंचाते रहे | क्योंकि उस वक्त भी राष्ट्रिय मीडिया ने हवाला काण्ड को शुरू में महत्व नहीं दिया था| पर आगे चल कर जब 1996 में देश के 115 लोगों को, जिसमें दर्जनों केंद्रीय मंत्रियों, राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों, विपक्ष के नेताओं और आला अफसरों को भ्रष्टाचार में चार्जशीट किया गया था तब के बाद सारा मीडिया बहुत ज्यादा सक्रीय हो गया| वही स्थिति इस उड्डयन मंत्रालय के काण्ड की भी होने वाली है| जब यह मामला कोर्ट के सामने आएगा तभी शायद मीडिया इसे गंभीरता से लेगा |
जब सुरेश प्रभु रेल मंत्री थे तो उनके बारे में यह कहा जाता था कि वे अपने मंत्रालय में किसी भी तरह कि ‘नॉन सेंस’ सहन नही करते थे | इस कॉलम के माध्यम से सुरेश प्रभु का ध्यान नागरिक उड्यन मंत्रालय में व्यप्त घोटालों की ओर लाना है जिसे उनसे पहले के सभी मंत्री व अधिकारी अनदेखा करते आये हैं |
सोचने वाली बात यह है कि इस मंत्रालय में हो रहे भ्रष्टाचार, जो मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार के समय से चल रहा था, उसे पूर्व मंत्री अशोक गजपति राजू ने तमाम सुबूत होने के बावजूद लगभग चार वर्षों तक अनदेखा क्यों किया ? यह सभी मामले नरेश गोयल की जेट एयरवेज से जुड़े हैं, जिसने देश के नियमों और कानूनों की खुलेआम धज्जियां उड़ाईं |
मिसाल के तौर पर अगर जेट एयरवेज के बहुचर्चित बीच आसमान के ‘महिला व पुरुष पायलट के झगड़े’ की बात करें तो उन दोनों पायलटों का इतिहास रहा है कि उन दोनों के ‘रिश्ते’ के चलते वे ज्यादातर ड्यूटी साथ साथ ही करते थे| यह नागरिक उड्यन मंत्रालय के कानूनों के खिलाफ है, लेकिन इसकी जांच कौन करेगा ? मंत्रालय के कई बड़े अधिकारी तो नरेश गोयल कि जेब में हैं | चौकाने वाली बात तो यह है कि यदि कोई सवारी विमान के पायलट या क्रू से बदसलूकी करता है तो उसके खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जाती है और उसका नाम ब्लैकलिस्ट किया जाता है | लेकिन इस मामले में इन दोनों पायलटों के खिलाफ एफ.आई.आर का न लिखे जाना इस बात का प्रमाण है कि नागरिक उड्यन मंत्रालय के अधिकारी किसके इशारे पर काम कर रहे हैं |
अगर जेट एयरवेज की खामियों को गिनना शुरू करें तो वह सूची बहुत लम्बी हो जाएगी | हाल ही में चर्चा में रहे इसी एयरलाइन्स के एक विमान का गोवा के हवाई अड्डे पर हुए हादसे स्मरण आते ही उस विमान में घायल दर्जनों यात्रियों के रौन्कटे खड़े हो जाते हैं | यह हादसा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि उस विमान को उड़ाने वाले पायलट हरी ओम चौधरी को जेट एयरवेज के ट्रेनिंग के मुखिया वेंकट विनोद ने किसी राजनैतिक दबाव के कारण से पायलट बनने के लिए हरी झंडी दे दी| जबकि वे इस कार्य के लिए सक्षम नहीं था | नतीजा आपके सामने है | अगर सूत्रों की माने तो उन्हीं हरी ओम चौधरी को इस हादसे की जांच के चलते रिलीज़ भी कर दिया गया है | यानि जांच की रिपोर्ट जब भी आए जैसी भी आए, इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता ये तो हवाई जहाज़ उड़ाते रहेंगे और मासूम यात्रियों की जान से खिलवाड़ करते रहेंगे|
अगर नागरिक उड्यन मंत्रालय के अधिकारीयों का यही हाल रहेगा तो हमें हवाई यात्रा करते समय इश्वर को याद करते रहना होगा और उन्ही के भरोसे यात्रा करनी होगी | इस डर और खौफ से बचने के लिए सभी यात्रियों की उम्मीद एक ऐसे मंत्री से की जानी चाहिए जो अपने अधिकारीयों को बिना किसी खौफ के केवल कानून के दायरे में रह कर ही कम करने की सलह दे किसी बड़े उद्योगपति या देशद्रोही के कहने पर नहीं |

Monday, February 19, 2018

नीरव मोदी, गुप्ता बंधु और नरेश गोयल में क्या समान है ?


नीरव मोदी का घोटाला 20 हजार करोड़ तक पहुंचने का अनुमान ।

पंजाब नेशनल बैंक ही नहीं, अभी और भी कई बैंक इसकी चपेट में आने वाले हैं। उल्लेखनीय है कि पिछले हफ्ते के 3 बड़े घोटालों के बीच एक व्यक्ति का नाम हर जगह उभर कर आ रहा है और वो है जैट ऐयरवेज़ के मालिक नरेश गोयल का। जैट ऐयरवेज़ की हवाई उड़ानों पर नीरव मोदी के विज्ञापन अभी तक प्रसारित हो रहे हैं। इन दोनों कंपनियों के बीच आर्थिक लेनदेन का जो कारोबार चल रहा है, क्या वह विशुद्ध व्यवसायिक शर्तों पर है या वहां भी मोटी रकम को इधर से उधर ठिकाने लगाने का धंधा चल रहा है? इसकी जांच होनी चाहिए। तस्करी और हवाला के कामों में इस तरह की कंपनियों का घालमेल होना समान्य सी बात होती है। अभी पिछले ही दिनों प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारीयों ने लखनऊ हवाई अड्डे पर जेट ऐयरवेज़ के अधिकारियो को गिरफ्तार किया जो खाड़ी से आने वाली जेट ऐयरवेज़ की उड़ानों में सोने और हीरे की तस्करी करवा रहे थे |

उधर दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति ज़ूमा को भारी भ्रष्टाचारों के आरोपों के बाद अपने पद से हटना पड़ा। संभावना ये है कि उन्हें जल्दी ही जेल भी हो सकती है। उन पर सहारनपुर के गुप्ता बंधुओं के साथ दक्षिणी अफ्रीका में हजारों करोड़ के घोटाले करने का आरोप है। उल्लेखनीय है कि गुप्ता बंधुओं के परिवार की शादी के लिए ही जैट ऐयरवेज़ का हवाई जहाज दिल्ली से उड़कर, अवैध रूप से दक्षिणी अफ्रीका के रक्षा क्षेत्र के प्रतिबंधित हवाई अड्डे पर उतरा था। जिस हवाई जहाज में तमाम ताकतवर लोगों के अलावा उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री शिवपाल यादव और आजम खान भी मेहमान बनकर गये थे। उस हवाई अड्डे पर कस्टम विभाग के अधिकारियों की तैनाती नहीं होती। जिसका लाभ उठाकर भारी मात्रा में अवैध सूटकेस हवाई जहाज से उतारकर मिनटों में गायब कर दिये गये थे। चूंकि दक्षिणी अफ्रीका के राष्ट्रपति ज़ूमा के इन गुप्ता बंधुओं से व्यापारिक नाते हैं, इसलिए यह सब बड़ी आसानी से हो गया। पर फौरन ही इस पर वहां मीडिया में तूफान मच गया। हमने जब इसी कॉलम में इस मामले को उठाया और नागरिक उड्डयन मंत्री महेश शर्मा से उसकी लिखित शिकायत की, तो उन्होंने इसे अपने से पहली सरकार के समय हुई घटना बताकर टाल दिया और कोई जांच नहीं करवाई। हमारे बार-बार पीछे पड़ने पर भारत सरकार का कहना था कि इससे हमारे दक्षिण अफ्रीका से संबंधों पर विपरीत असर पड़ेगा। इसलिए जांच नहीं की जा सकती।

अब जबकि पूर्व राष्ट्रपति ज़ूमा और गुप्ता बंधु दोनों दक्षिण अफ्रीका में भ्रष्टाचार के मामलों में जांच के घेरे में आ चुके हैं, तो भारत सरकार को भी इस मामले  प्रभावी जांच तेज़ी से करवानी चाहिए। अपने स्तर पर मैं दक्षिण अफ्रीका के नये राष्ट्रपति और भारत के प्रधानमंत्री जी को इस आशय का पत्र लिख रहा हूं।

उल्लेखनीय है कि ज़ूमा के गद्दी छोड़ने से पहले ही गुप्ता बंधु अफ्रीका से भाग निकले और दुबई में जाकर शरण ले ली है। जहां बसने के लिए उन्हें अपनी अकूत कमाई में से मोटी रकम देनी पड़ी है, ऐसा सूत्रों से पता चला है। उनके इस पूरे ऑपरेशन में मुख्य सूत्रधार की भूमिका जैट ऐयरवेज़ के मालिक नरेश गोयल ने  निभाई है। जो स्वयं दुबई में बसे हुए हैं।

भारत सरकार के लिए यह चिंता की बात होनी चाहिए कि जैट ऐयरवेज़ के तमाम घोटाले और देशद्रोह के आचरण के बावजूद उसकी जांच को सभी  ऐजेंसियां व सीबीआई दबाकर बैठे हैं। अब तो अपने घोटालों के अलावा जैट ऐयरवेज़ के मालिक  का नीरव मोदी और दक्षिण अफ्रीका के गुप्ता बंधुओं से गाढ़ा नाता सामने आ रहा है।

पिछले हफ्ते इसी कॉलम में हमने जैट ऐयरवेज़ के घोटालों की एक बानगी फिर से पेश की थी और बताया था कि हमने प्रधानमंत्री जी से देशद्रोह के इस कांड की ईमानदार जांच कराने की लिखकर अपील की है। उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रधानमंत्री जी अपने अधीन नागरिक उड्डयन मंत्रालय, वित्त मंत्रालय व गृह मंत्रालय की नीरव मोदी या नरेश गोयल जैसे बड़े घोटालेबाजों से साझ-गांठ की पारदर्शी जांच कराने में अब बिल्कुल देर नहीं करेंगे।

क्योंकि अगर इतने बडे़ कांडों में अब भी सही जांच नहीं की गई, तो भविष्य में जैट ऐयरवेज़ जैसी कंपनियां भारत की अर्थव्यवस्था को और भी बड़ा झटका दे सकती है। फिर कहीं ये न कहना पड़े, ‘‘अब पछताये होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत’’।

वैसे सीबीआई के मौजूदा निदेशक से तो इस मामले में कोई उम्मीद नहीं की जा सकती। क्योंकि वे जब से इस पद पर आए हैं, तब से उन्हें जैट ऐयरवेज़ और नागरिक उड्डयन मंत्रालय की मिलीभगत और भ्रष्टाचार की पूरी रिर्पोट मय सबूत दी जा चुकी है। पर फिर भी उन्होंने इस पर आजतक कोई कार्यवाही नहीं की। अलबत्ता सीबीआई के आला अफसरों को व्यक्तिगत स्तर पर हमारे 'कालचक्र समाचार ब्यूरो' ने जब ये दस्तावेज दिखाये, तो वे यह देखकर हैरान रह गये कि इतना ठोस मामला होने के बावजूद भी अभी जांच क्यों नहीं हुई।

नीरव मोदी के मामले में भी यही बात सामने आ रही है कि तीन बरस से उसके घोटालों की जानकारी, सभी संबंधित जांच ऐजेंसियों को कुछ लोगों द्वारा मय सबूत के दी जा रही थी। पर किसी ने न तो जांच की, न नीरव मोदी की पकड़-धकड़ की और न ही घोटाले को आगे होने से रोका।
प्रधानमंत्री के लिए ये बहुत चिंता की बात होनी चाहिए कि उनकी नाक के नीचे इतने बड़े घोटाले हो रहे हैं, आम जनता के खून-पसीने का हजारों करोड़ रूपया हजम कर मुट्ठीभर लोग दुनियाभर में अययाशी कर रहे हैं और फिर भी कानून की गिरफ्त से बाहर हैं।