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Monday, July 8, 2019

संघ के स्वयंसेवकों से इतना परहेज क्यों?

पिछले दिनों विदेश में तैनात भारत के एक राजदूत से मोदी सरकार के अनुभवों पर बात हो रही थी। उनका कहना था कि मोदी सरकार से पहले विदेशों में सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि का आयोजन दूतावास के अधिकारी ही किया करते थे। लेकिन जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है, तब से अप्रवासी भारतीयों के बीच सक्रिय संघ व भाजपा के कार्यकर्ता इन कार्यक्रमों के आयोजन में काफी हस्तक्षेप करते हैं और इन पर अपनी छाप दिखाना चाहते हैं। कभी-कभी उनका हस्तक्षेप असहनीय हो जाता है। सत्तारूढ़ दल आते-जाते रहते हैं। इसलिए दूतावास अपनी निष्पक्षता बनाए रखते हैं और जो भी कार्यक्रम आयोजित करते हैं, उनका स्वरूप राष्ट्रीय होता है, न कि दलीय।
इस विषय में क्या सही है और क्या गलत, इसका निर्णंय करने में भारत के नये विदेश मंत्री जयशंकर सबसे ज्यादा सक्षम हैं। क्योकि वे किसी राजनैतिक दल के न होकर, एक कैरियर डिप्लोमेट रहे हैं। कुछ ऐसी ही शिकायत देश के शिक्षा संस्थानों, अन्य संस्थाओं व प्रशासनिक ईकाईयों से भी सुनने में आ रही हैं। इन सबका कहना है कि संघ और भाजपा के कार्यकर्ता अचानक बहुत आक्रामक हो गए हैं और अनुचित हस्तक्षेप कर रहे हैं।
किसी भी शैक्षिक संस्थान, अन्य संस्थाओं या प्रशासनिक ईकाईयों में किसी भी तरह का हस्तक्षेप गैर अधिकृत व्यक्तियों द्वारा नहीं किया जाना चाहिए। इसके दूरगामी परिणामी बहुत घातक होते हैं। क्योंकि ऐसे हस्तक्षेप के कारण उस संस्थान की कार्यक्षमता और गुणवत्ता नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है।
पर प्रश्न है कि क्या ऐसा पहली बार हो रहा? क्या पूर्ववर्ती सरकारों के दौर में केंद्र या राज्यों में सत्तारूढ़ दल के कार्यकर्ताओं का इसी तरह का हस्तक्षेप नहीं होता था? ये हमेशा होता आया है। सरकारी अतिथिगृहों, सरकारी गाड़ियों व विदेश यात्राओं का दुरूपयोग व सरकारी खर्च पर अपने प्रचार के लिए बड़े-बड़े आयोजन और भोज करना आम बात होती थी। यहां तक कि कई राजनैतिक दल तो ऐेसे हैं, जिनके विधायक, सांसद और कार्यकर्ता अपने क्षेत्र में पूरी दबंगाई करते रहे हैं। पर तब ऐसी आपत्ति किसी ने क्यों नहीं की? इसलिए कि कौन सत्तारूढ़ दल का बुरा बने और अपनी अच्छी पोस्टिंग खो दे? इसके लालच में वे सब कुछ सहते आऐ हैं।
आज जो लोग दखल दे रहे हैं, उनका गुंडई और दबंगई का इतिहास नहीं है, बल्कि हिंदू विचारधारा के प्रति समर्पण और संघर्ष का लंबा इतिहास रहा है। सदियों से दबी इन भावनाओं को सत्ता के माध्यम से समाज के आगे लाने की उनकी प्रबल इच्छा उन्हें ऐसा करने पर विवश कर रही है। लेकिन इसके पीछे उनका अध्ययन, आस्था, देशप्रेम व भारत की श्रेष्ठता को प्रदर्शित करने का मूलभाव है।
ये सही है कि उत्साह के अतिरेक में संघ और भाजपा के कार्यकर्ता कभी-कभी रूखा व्यवहार कर बैठते हैं। इस पर उन्हें ध्यान देना चाहिए। मैंने पहले भी कई बार लिखा है कि संघ के कार्यकर्ताओं के त्याग, देश और धर्म के प्रति निष्ठा पर कोई प्रश्न चिह्न नहीं लगा सकता। पर उनमें से कुछ में व्याप्त आत्मसंमोहन और अंहकार विधर्मियों को ही नहीं, स्वधर्मियों को भी विचलित कर देता है। जिसका नुकसान वृह्द हिंदू समाज को सहना पड़ता है। उनके इस व्यवहार से संघ की विचारधारा के प्रति सहानुभूति न होकर एक उदासीनता की भावना पनपने लगती है।
भारत में करोड़ों लोग भारतमाता और सनातन धर्म के प्रति गहरी आस्था रखते हैं और अपना जीवन इनके लिए समर्पित कर देते हैं। पर वे जीवनभर किसी भी राजनैतिक दल या विचारधारा से नहीं जुड़ते। तो क्या उनका तिरस्कार किया जाए या उनके काम में हस्तक्षेप किया जाए अथवा उनके कार्य की प्रशंसा कर, उनका सहयोग कर, उनका दिल जीता जाए?
अभी कुछ समय पहले की बात है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डा. मोहन भागवत जी ने यह कहा था कि जो लोग भी, जिस रूप में, हिंदू संस्कृति के संरक्षण या उत्थान के लिए कार्य कर रहे हैं, उनका संघ के हर स्वयंसेवक को सम्मान और सहयोग करना चाहिए।
मेरा स्वयं का अनुभव भी कुछ ऐसा ही है भारत माता, सनातन धर्म, गोवंश आधारित भारतीय अर्थव्यवस्था और वैदिक संस्कृति में मेरी गहरी आस्था है और इन विषयों पर गत 35 वर्षों से मैं प्रिंट और टेलीवीजन पर अपने विचार पूरी ताकत के साथ बिना संकोच के रखता रहा हूं और शायद यही कारण है कि 20 वर्ष पहले ‘अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी’ के मुख्यालय में बैठे हुए गुलाम नवी आजाद ने राजीव शुक्ला से एकबार पूछा कि ‘‘क्या विनीत नारायण संघी है?’’ राजीव ने उत्तर दिया कि ‘न वो संघी हैं, न कांग्रेसी हैं। वो सही मायने में निष्पक्ष पत्रकार हैं और जो उन्हें ठीक लगता है, उसका समर्थन करते हैं और जो गलत लगता है, उसका विरोध करते हैं।’ विचारने की बात है कि हिंदू धर्म के लिए समर्पित किसी व्यक्ति को  नीचा दिखाकर, अपमानित करके, उनके अच्छे कार्यों में हस्तक्षेप करके संघ और भाजपा के कार्यकर्ता हिंदू धर्म का अहित ही करेंगे। भगवान राधाकृष्ण की लीलाभूमि ब्रज क्षेत्र में गत 17 वर्षों से हिंदू सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण और सौंदर्यीकरण में जुटी ‘द ब्रज फाउंडेशन’ की टीम का गत 2 वर्षों का अनुभव बहुत दुखद रहा है। जब ईष्र्या और द्वेषवश इस टीम पर अनर्गल आरोप लगाये गये और उनके काम में बाधाऐं खड़ी की गई। जबकि इस स्वयंसेवी संस्था के कार्यों की प्रशंसा प्रधानमंत्री श्री मोदी से लेकर हर हिंदू संत और ब्रजवासी करता है। संघ व भाजपा नेतृत्व को इस पर विचार करना चाहिए कि ब्रज में ऐसा क्यों हो रहा है?

Monday, April 29, 2019

सूचना क्रांति के फायदे

जहां एक तरफ भारत के समाचार टीवी चैनल सतही, ऊबाऊ, भड़काऊ, तथ्यहीन सनसनीखेज समाचारों और कार्यक्रमों से देश की जनता का समय बर्बाद कर रहे हैं, उनका ध्यान असली मुद्दों से हटाकर फालतू की बहसों में उलझा रहे हैं। वहीं सूचना क्रांति का एक लाभ भी हुआ है। भारत और विदेश के अनेक टीवी चैनलों ने अनेक तथ्यात्मक और ऐतिहासिक सीरियल बनाकर दुनियाभर के दर्शकों को प्रभावित किया है। इन सीरियलों से हर पीढ़ी के दर्शक का खूब ज्ञानबर्द्धन हो रहा है। मनोरंजन तो होता ही है। यहां मैं कुछ उन सीरियलों का जिक्र करना चाहूंगा, जिन्होंने मुझ जैसे गंभीर दर्शक को भी आकर्षित किया है। वह भी तब जबकि मैं सबसे कम टीवी देखने वालों में हूं।
इस श्रृंखला में एक महत्वपूर्णं सीरियल है, जिसने मेरे दिल और दिमाग पर गहरा असर डाला, वो हैबुद्ध भगवान गौतम बुद्ध की जीवनी पर आधारित इस सीरियल को हर आयु का व्यक्ति पसंद करेगा और उसे भारत की उस दिव्य शक्सियत के बारे में पता चलेगा, जिसने दुनिया के तमाम देशों में अपने संदेश को प्रसारित किया। आज भी चीन, जापान, कोरिया, वियतनाम, इंडोनेशिया भारत जैसे तमाम देश हैं, जहां के लोग भगवान बुद्ध में आस्था रखते हैं। इस सीरियल के अंतिम लगभग 1 दर्जन एपिसोड भगवान बुद्ध की शिक्षाओं पर आधारित हैं, जो किसी भी गंभीर दर्शक को प्रभावित किये बिना नहीं रहेंगे। बुद्ध के किरदार में जयपुर से निकले युवा कलाकार हिमांशु सोनी ने कमाल का अभिनय किया है। उन्हें देखकर ऐसा लगता है, मानों हम ईसा से 600 वर्ष पूर्व मगध साम्राज्य में पहुंच गऐ हैं, जहां हमें भगवान बुद्ध के साक्षात दर्शन हो रहे हैं। हिमांशु के अभिनय का ऐसा प्रभाव पड़ा कि बुद्ध धर्म को मानने वाले सभी देशों के लोग यहां तक कि बौद्ध धर्मगुरू तक हिमांशु के मुरीद हो गए और अपने-अपने देशों में बुलाकर उनका सम्मान किया।
दूसरा सीरियल जिसने मुझे बहुत ज्यादा जानकारी दी, वो हैवाइल्ड वाइल्ड कंट्रीये ओशो यानि आचार्य रजनीश के अमरीका स्थित ध्यान केंद्र आश्रम के अंदर हुई गतिविधियों का बड़े रोचक ढंग से दर्शन कराता है। इससे पता चलता है कि उन दिनों ओशो पूरे विश्व के  मीडिया में इतना क्यों छाए रहे थे। ये सीरियल है तो अंग्रेजी में, पर इसके मुख्य पात्र ज्यादातर भारतीय हैं, जो विवादों में रहकर पूरी दुनिया की सुर्खियों में छाए रहे।
इसी क्रम में एक और अंग्रेजी सीरियल जिसने पूरी दुनिया के दर्शकों को बेमोल खरीद लिया, वो हैक्राउन इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के राज्याभिषेक से लेकर अगले दो दशकों के बीच महारानी के जीवन पर इतनी बढिया प्रस्तुति की गई है कि अगर आप एक एपिसोड देख लो, तो अगले 6-8 एपिसोड देखे बिना उठोगे नहीं, ऐसा नशा चढता। इस सीरियल में दिखाया है कि कैसे नौकरशाह अपने राजा या मंत्री तक को अपनी ऊंगलियों पर नचाते हैं। शासक को कितने दबाव झेलने पड़ते हैं, इसका बहुत बेहतरीन प्रदर्शन इस सीरियल में है। चूंकि भारत पर अंग्रेजों ने 190 साल राज किया और हमारी प्रशासनिक कानूनी व्यवस्था इंग्लैण्ड के संविधान से प्रभावित है। इसलिए हम भारतीयों के लिए यह सीरियल और भी रूचि का है। इसे देखकर हम समझ सकते हैं कि आज भी हमारे देश की नौकरशाही राजनेताओं को कैसे ऊल्लू बनाती है।
एक और सीरियल जो आम भारतीयों को पसंद आया और मुझे भी बहुत अच्छा लगा, वो हैझांसी की रानीहालांकि यह सीरियल अंतराष्ट्रीय स्तर का नहीं है और ऐसा लगता है कि इसे नाहक लंबा खीचा गया है। फिर भी देशभक्ति का जज्बा पैदा करने के लिए और उस वीरांगना के जीवन को समझने के लिए ये एक अच्छा प्रयोग है। वो झांसी की रानी जिसने विपरीत परिस्थितियों में भी अंगेजों से लोहा लिया और हमारे इतिहास की अमर गाथा बन गई।
इसके अलावा कई अन्य सीरियल आजकलनैटफ्लिक्सयाअमेजनचैनल पर दिखाए जा रहे हैं, जो हमारी जानकारी में तेजी से वृद्धि कर रहे हैं। जैसे भारत की पाक विद्या पर, भारत के मंदिरों पर, हिंदू धर्म के देवी-देवताओं पर डा. देवदत्त पटनायक का विश्लेषण, विश्व पर्यटन के सीरियल, हमारे ग्रह पृथ्वी पर जो जीवन है, उसके विभिन्न आयामों पर दुनिया के तमाम उन देशों के इतिहास पर जिन्हें हम बचपन में अपनी किताबों में संक्षेप में पढते आऐ थे। जैसे- चीन का इतिहास, रोमन साम्राज्य का इतिहास जापान का इतिहास आदि।
दुनिया की कई बड़ी शक्सियतें ऐसी हुई हैं, जिनके जीवन के विषय में हर सदीं में लोगों को उत्सुकता बनी रही है। इस श्रेणी में ईसा मसीह, दलाईलामा जैसे व्यक्तित्व उल्लेखनीय हैं। इन पर भी बहुत अच्छे सीरियल अंतर्राष्ट्रीय चैनलों पर दिखाऐ जा रहे हैं। यहां मैं उन सीरियलों का उल्लेख नहीं कर रहा, जिनमें अपराध की जांच, खेल, सामाजिक सारोकार वाली फिल्में या कार्टून आदि शामिल हैं। ऐसे बहुत सीरियल हैं, जिनकी गुणवत्ता अति उत्तम है। हमारे देश के सीरियल निर्माताओं को उनसे सीखना चाहिए कि कैसे सार्थक सीरियल बनाकर भी लोगों का मनोरंजन किया जा सकता है।
आज इस चुनाव के दौर में जब सब ओर अनिश्चितता है, सरकारी कामकाज भी कछुए की गति से चल रहा है, ऐसे में जीवन की नीरसता को दूर करने में, ये तमाम सीरियल, भादों की फुहार बनके आऐ हैं। मुझे लगा कि आप पाठकों से ये अनुभव साझा करूं, जिससे आप भी इसका लाभ उठा सकें।